मनः प्रदूषण

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        *प्रदूषण*

*विधा* - * बरवै छंद *

शिल्प~
[विषम पदों में12 मात्राएँ
सम पदों में 7 मात्राएँ]
पद अंत गुरु लघु से,

कलीयुग में बढ़ रहा , है संताप   
महादेव ही हरते, है हर पाप।
मन विकृति से बदलते, सुगढ़ विचार।
चरित्र हनन से बदले, है आचार। 

खर दूषण दनुज बना, गंदा नाँच।
अनाचार की कैसे, होगी जाँच।
रोको मनः प्रदूषण, हे जगपाल।
तन मन को करो साफ, हो शिवलाल।

वायु जल को बचाये, हो गुणगान।
वनस्पति लगाये है, थल की शान।
बनायें स्वच्छ भारत, मनुज महान।
गन्दगी को हटाओ, हो अभियान।

  ✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

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