Skip to main content

समुद्र मंथन/ मनुज मंथन

🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻

       समुद्र मन्थन/ मनुज मन्थन 

मनुष्य अपने चमत्कारिक गुणों एवं विचार शक्ति से ही अन्य जीवों से भिन्न विशेष विवेकवान है।
मनुष्य के अन्दर अपार मानसिक शक्ति है, अपार शारिरिक एवं आत्मिक शक्ति है।
जरुरत है उन्हें समझने और जागृत करने की,
जिस प्रकार से देवासुर संग्राम के समय समुद्र मन्थन से चौदह प्रकार के रत्नों की उत्पत्ति हुई थी।
उसी प्रकार कलीयुग में मनुष्यों को जागरण, उत्थान, आत्मिक उन्नति व परमात्मात्व की प्राप्ति के लिए स्वयमेव ही जागरण व प्रयास की आवश्यकता है।

जिस प्रकार समुद्र मंथन से *हलाहल विष* निकाला था वो मनुष्य की चित्त प्रवृति है जैसे कोध्र मद लोभ ईर्ष्या द्वेष की भावना भी किसी विष से कम नही,

धेनू अर्थात गाय माता या *कामधेनु*
गौ की सेवा से तन मन निरोगी होता है और वातावरण शुद्ध।

श्वेत *उच्चै श्रवा अश्व (घोड़ा)* मनुष्य के उच्च स्तरीय कौशल पूर्ण पुरुषार्थ व यश का प्रतीक है।

*ऐरावत हाथी* सफेद हाथी बल बुद्धि सच साहस व परिश्रम का प्रतीक है।

*कौस्तुभ मणि* अति दुर्लभ आत्मिक दैविय शक्तियों या जागृत कुण्डलिनियों का द्योतक है।

*कल्पद्रुम* निरोगता व सहयोग सहकार का प्रतीक है।

*रंभा देवी* नारी शक्ति सुन्दरता व नारी सम्मान को समाज में बनाये रखने के लिए समुद्र मन्थन से उत्पन्न हुई।
🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🙏🏻

*लक्ष्मी देवी* स्वच्छता समृद्धि सम्पन्नता व धन ऐश्वर्य का प्रतीक है।

*वारुणी या मदिरा* या विषाक्त पदार्थ  मनुष्य के शरीर में भी विद्यमान है, शरीर के 75% जल में से आधे से ज्यादा विषाक्त या अवशिष्ट पदार्थो से भरा होता है, जिसको निकालने के लिए हमारा खानपान प्राकृतिक होना चाहिए।

*चन्द्रमा* भी मन्थन रत्नों में से एक विशेष है जिस हमें हमें शीतलता धैर्य सौहार्द व सामञ्जस्य की सीख देता है।

*परिजात या कल्पवृक्ष* की तरह यदि हम वृक्षों वनस्पतियों व पौधों की रक्षा सुरक्षा करें तो वो  हमें इच्छित फल व सम्पन्नता प्रदान करते हैं।

*पांचजञ्य शंख* भी समुद्र मंथन से निकला था जिस मनुष्य के जीवन में विजय, शान्ति, सुख, यश व कीर्ति का प्रतीकमान है।

*धनवन्तरि  वैद्य* जी ने तो मनुष्य जाति के लिए वनस्पतियों से निकाल कर औषधीय गुणों वाले पौधों से सेहत व स्वास्थ्य दिया जिससे मनुज निरोगी व दिर्घायु हो सकें।

अगला मन्थन घटक  अमृत, यानि अमरता मनुष्य के श्रेष्ठ व सर्वजनहिताय कर्म के प्रतिफल स्वरूप मरणोपरांत भी याद किये जाने वाली अमरत्व का प्रतीक है।

इति मनुज जीवनम् समुद्रः मंथनम् समाप्त

डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

Comments

Popular posts from this blog

वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

[18/04 1:52 PM] Rahul Shukla: [20/03 23:13] अंजलि शीलू: स्वर का नवा व अंतिम भेद १. *संवृत्त* - मुँह का कम खुलना। उदाहरण -   इ, ई, उ, ऊ, ऋ २. *अर्ध संवृत*- कम मुँह खुलने पर निकलने वाले स्वर। उदाहरण - ए, ओ ३. *विवृत्त* - मुँह गुफा जैसा खुले। उदाहरण  - *आ* ४. *अर्ध विवृत्त* - मुँह गोलाकार से कुछ कम खुले। उदाहरण - अ, ऐ,औ     🙏🏻 जय जय 🙏🏻 [20/03 23:13] अंजलि शीलू: *वर्ण माला कुल वर्ण = 52* *स्वर = 13* अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अब *व्यंजन = 37*         *मूल व्यंजन = 33* *(1) वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन -*    क ख ग घ ङ    च छ ज झ ञ    ट ठ ड ढ ण    त थ द ध न    प फ ब भ म      *25* *(2) अन्तस्थ व्यंजन-*      य, र,  ल,  व  =  4 *(3) ऊष्म व्यंजन-*      श, ष, स, ह =  4   *(4) संयुक्त व्यंजन-*         क्ष, त्र, ज्ञ, श्र = 4 कुल व्यंजन  = 37    *(5) उक्षिप्त/ ताड़नजात-*         ड़,  ढ़         13 + 25+ 4 + 4 + 4 + 2 = 52 कुल [20/03 23:14] अंजलि शीलू: कल की कक्षा में जो पढ़ा - प्रश्न - भाषा क्या है? उत्तर -भाषा एक माध्यम है | प्रश्न -भाषा किसका

तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य