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पथ भ्रमित होती बाल शिक्षा

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पथ भ्रमित होती बाल शिक्षा

क्यूँ नहीं होता नया जगत में,
शिक्षा क्यूं भरमाये
क्यूँ नहीं लगता मन वंदन में,
क्यूँ किशोर शरमाये।

क्यूँ नहीं मिलती सीख जगत में,
क्यूँ भाषा भरमाये।
क्यूँ सीखे हम आंग्ला भाषा,
बात समझ न आये।

क्यूँ नहीं होती नैतिक शिक्षा,
बस पढ़े और कमाये।
क्यूँ नहीं हमको कोई सिखाता,
कैसे देश बचाये।

क्यूँ नहीं मिलती गुरुकुल शिक्षा,
कोई हमें बतलाये।
क्यूँ वेदों को हम नहीं पढ़ते,
कोई आज समझाये।

क्यूँ नहीं होता नया सवेरा,
कोई हमें बतायें।
क्यूँ नहीं होती जन हित शिक्षा,
कोई तो सुझाये।

क्यूँ नहीं होती खेल खेल में,
विद्या और पढ़ाई।
क्यूँ नही मिलता सुविचार जो,
मन मंगल बनाये।

क्यूँ आते हैं दूषित विकार,
कोई तो बताये।
क्यूँ नही बढ़ती हमारी इच्छा,
किसको शीश नवायें।

क्यूँ मिलती है भ्रमित रीत,
सुझाव कोई सुझाये।
शिक्षा में होती कला सुरुचि तो
मन भी लग जाये।

क्यूँ नहीं पढ़ते गान गीत में,
सब याद हो जाये।
क्यूँ होता हैं विषय का बोझा,
इसको कम करवायें।

क्यूँ नहीं मिलती जीने की शिक्षा,
दुख अंत हो जाये।
क्यूँ धुत है नशे में युवा किशोर,
कोई  इन्हें  बचायें। 

✍  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

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