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Kavita chori

       कविता चोरी

शब्दों के भावों से सब सराबोर हो रहे है|
समझते थे अकेले हम ही है कविता चोर,
यहाँ तो सब के सब कविता चोर हो रहे हैं|

क्या हुआ जो हमने उनके शब्द लिखे हैं,
क्या हुआ जो हमने उनके भाव लिखे हैं,
क्या हुआ जो हम किसी के स्नेह में डूबे,
क्या हुआ जो दर्द और पीड़ा ही लिखे हैं|

ठीक  है कि  हमने रिश्वत नही खाई,
सुकून है कि हमने इज्जत नही चुराई,
अच्छा है कि ईमान की रोटी हमारी है,
शुक्र है भगवान का रोटी नही चुराई|

मोहब्बत में जाने लोग क्यूँ आँखे चुराते हैं,
दिल चुराकर फिर  कैसे भूल  जाते हैं,
प्यार के मद़मस्त दिवानों को तो रोको,
तोड़ते है वादे को  दिल तोड़ जाते है|

सरफ़िरे आशिकों से काव्य अच्छा है,
काव्य की इन पंक्तियों का भाव अच्छा है,
रच रहा कविवर हमारा भाव लेकर के,
इसको चोरी कहने का दाँव अच्छा है|

पर आत्मा के दर्द को समझो तो, चोरी है,
एक कवि के शब्द को समझो तो, चोरी है,
भावशिल्पी शब्दशिल्पी बन गया हूँ मैं,
अन्तःकरण की सोच को समझो तो, चोरी है|

कह रहा साहिल अकेला काव्य चोरी है,
जगत की सबसे बड़ी यही तो चोरी है,
जान भी पाए न कोई भाव किसके हैं,
हर कवि के काव्य का सारांश चोरी है|

   ©डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
    🙏 जय जय🙏

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