मनहरण घनाक्षरी
८८८७ वर्ण
अखण्ड
माँ ज्योति ये अखण्ड है
तो रूप भी प्रचण्ड है
गले मुण्ड माल सुनो
काली को मनाइये।
दीप धूप मान रखो
श्रृंगारों से आन रखो
कपट को छोड़कर
प्रीति को बढ़ाइये।
नृत्य करो झूमकर
चरणों को चूमकर
एक हाजिरी अपनी
ऐसे भी लगाइये।
ये शक्ति भी अनंत है
अब दुष्टों का अंत है
भक्ति के सागर में यूँ
स्वयं को डुबाइये।
रति ओझा
~ परिचय ~
रचनाकार का नाम:- रति ओझा"व्यथा"
माता/पिता का नाम:- स्व.श्री ब्रह्मा शंकर ओझा
वर्तमान/स्थायी पता:-सचिन उपाध्याय D-48, नंगली विहार एक्सटेंशन पार्ट-1, डी-ब्लॉक, गली न0-२, नजफगढ़, नई दिल्ली-110043.
फोन/व्हाट्स एप/ ईमेल:-9717688083/
8266970715/ ratiojha2016@gmail.com
शिक्षा/जन्म तिथि:- बी.एससी / 3 जून 1984
व्यवसाय:-अध्यापिका (प्राइवेट)
प्रकाशन विविरण:-सुवर्णा में रचना प्रकाशित
संस्थाओं से संबंद्धता:- साहित्य साधिका सामिति आगरा
काव्य मंच/आकाशवाणी/दूरदर्शन/मंच पर यदि काव्य पाठ है तो विवरण :-४ बार आकाशवाणी से कविता प्रसारण.
राजस्थान चूरू (बिसाऊ) से मंच पर काव्य पाठ (राष्ट्रीय कवि सम्मेलन) साहित्य श्री सम्मान से सम्मानित.
"एक पृष्ठ मेरा भी" "सखी साहित्य" साझां संकलन में कविता प्रकाशित.
"हिन्दी साहित्य पत्रिका" "संगम ई मासिक पत्रिका" में रचनाऐ प्रकाशित।
साहित्यायन में रचना प्रकाशित
कोटा में साहित्य श्री सम्मान ,,,भारतेन्दु जी समिति द्वारा
नागपुर में सम्मानित
दूरदर्शन लखनऊ से काव्य पाठ
मंच पर कार्यरत
टी वी के रिअलिटी शो ता धिन धिन्ना में टोप 15 कंटेस्टेंट(शुभम सिनेमा,,,अंजन टीवी)
[10/27, 17:03] प्रभांशु कुमार
¤ पेट्रोमैक्स आैर बाराती ¤
~ प्रभांशु कुमार
लतपथ गहनों आैर चमकीले
वस्त्रों से लदे फदें
बारातियों को आैर राह को
जगमगाने के लिए
पेट्रोमैक्स सिर पर रखे
उजास भरते अपने आसपास
वे गरीब बच्चे
खुद मन में समेटे है
एक गहरा अन्धेरा उदास
थिरक रहे वे बाराती
कीमती सूट बूट पहने
बाजों की धुन पर
आैर ये नंगे पैर में चुभते कंकर
उछलते कूदते
ठण्ड से थरथराते देह से
मानो दे रहे साथ उनका
सब मगन
अपनी दुनिया अपनी खुशियों में
बस इन्हें ही अहसास
थकते रूकते पैरों
आैर लाइट थामे हाथों के जख्म का
पटाखों के धुएँ आैर धूल के गुबार में
कही गुम होते जाते
धुआँ धुआँ होते देखा
अपने सपनो को||
133/11ए अवतार टॉकीज के पीछे तेलियरगंज इलाहाबाद- 211004
मो-9235795931,7376347866
[10/27, 17:08] प्रभांशु कुमार:
बायो-डाटा
नामः प्रभांशु कुमार
जन्म तिथि: 02/06/1988
मोबाइल नंo: 9235795931, 7376347866
ई-मेलः prabhanshukumar63@gmail.com
शिक्षाः एमoएo(हिन्दी) बीoएडo
सम्प्रतिः शिक्षा अनुसंधान विकास संगठन इलाहाबाद में संभागीय निदेशक के पद पर कार्यरत
अभिरूचिः साहित्य तथा निबंध
सम्मान. : विश्व हिन्दी संस्थान हिन्दुस्तान एकेडमी इलाहाबाद से 11 जून 2017 में महादेवी वर्मा राष्टीय सम्मान मिला.
2-सितम्बर 2016 में साहित्य संगम संस्था से काव्य कमल सम्मान से नवाजा गया
प्रकाशित काव्यसंकलन- साहित्यमेध(साहित्य संगम संस्थान) इन्दौर-452016
प्रकाशित रचनाएँ:
1. 2009 मे बिहार राज्य से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका परती पलार में प्रकाशित रचना (आधुनिकता)।
2. दिसम्बर 2005 मे उत्तर प्रदेश में प्रकाशित रचना (खोजता हूं)
3. अप्रैल 2015 में कादम्बनी पत्रिका में प्रकाशित रचना (वक्त)
4. दिसम्बर 2015 में आजकल पत्रिका में प्रकाशित रचना (विदा हुई एक और साल की वनवास यात्रा)
5. फरवरी 2016 में कादम्बनी पत्रिका में प्रकाशित रचना (कूड़े वाला आदमी)
6. दैनिक जागरण एवं हिन्दुस्तान अखबार के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित समसमायिकी मुद्दे
7. मई 2016 में राजस्थान जयपुर के ऑनलाइन पत्रिका हस्ताक्षरवेब में प्रकाशित दो रचनाएं- (तुम्हारे जाने के बाद, सुनो ना)
8. मई 2016 में हिन्दुस्तान अखबार के सम्पादकीय पृष्ठ प प्रकाशित लेख-(स्मार्ट सिटी ने छीन लिया फुटपाथ)
9. अगस्त 2016 मे विश्व हिन्दी संस्थान इलाहाबाद से प्रकाशित काव्य संग्रह (मन की बात) में प्रकाशित मेरी चार कविताए
10.परिकथा मैंग्जीन में प्रकाशित कविता-ईश्वर कभी सोता नही,कढ़े वाला आदमी.
11-अमेरिका से प्रकाशित अन्तराष्टीय मैंग्जीन सेतुबन्ध में प्रकाशित कविता लेबर चौराहा आैर कविता
12-निबन्ध लेखन में राष्ट्रीय स्तर प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत।
13. आकाशवाणी इलाहाबाद से हर चार महीने पर मेरी कविताओं का प्रसारण
[10/28, 13:03] सन्तोष कुमार प्रीत: रचनाकार का नाम:- सन्तोष कुमार 'प्रीत'
पिता का नाम:- स्व. नागेंद्र कुमार श्रीवास्तव
माता का नाम:- सावित्री देवी
वर्तमान/स्थायी पता:-
एस 3/55 ए 1, डिठौरी महल,
अर्दली बाजार, वाराणसी,
उ0प्र0 - 221002
व्हाट्स एप न0/ ईमेल:- 9935040018/
skprit1975@gmail.com
शिक्षा/जन्म तिथि:-
M.Sc.(IT) / 24 मार्च1975
व्यवसाय:- प्रशिक्षक(ऑटोकैड)
रचना प्रकाशित :- समर्पन पत्रिका, ग्रीन अर्थ, भोजपुरी संगम।
संस्थाओं से संबंद्धता:- साहित्य कलश, उद्द्गार संस्था वाराणसी।
काव्य मंच :- नियमित कवि गोष्ठी व कविसम्मेलन में सहभागिता
[10/28, 13:12] सन्तोष कुमार प्रीत:
कभी खुद से बोलो बात करो
तेरे भीतर और इंसान है एक,
कहते जिसको भगवान है एक।
जो समझ नही पाया इसको ,
कुछ और नही नादान है एक।।
कभी उससे भी मुलाकात करो।
कभी खुद से बोलो बात करो।।
ओ सच्ची राह दिखता है,
जब मन विचलित हो जाता है।
अच्छा क्या बुरा क्या दुनिया में,
ओ ही तो तुझे समझाता है।।
उसकी सुनो उसका साथ करो।
कभी खुद से बोलो बात करो।।
तुम अकेले ही कमजोर नही,
तेरे जैसा कोई और नही।
घबराना न दुख की रातों से,
किस रात की होती भोर नही।।
उम्मीद से रौशन रात करो।
कभी खुद से बोलो बात करो।।
तुम दूर अभिमान करो पहले,
सबका सम्मान करो पहले।
जीवन आसान हो जाएगा,
खुद की पहचान करो पहले।।
तुम कौन हो इसको याद करो।
कभी खुद से बोलो बात करो।।
जानो पहले फिर मानो तुम,
सच्चाई को पहचानो तुम।
ना यूँ लकीर का फकीर बनो,
करने की नया कुछ ठानो तुम।।
खुद पैदा नया हालात करो।
कभी खुद से बोलो बात करो।।
तेरे भीतर और संसार भी है,
है फूल भी जिसमें खार भी है।
मन की आंखों से देखो जरा,
नफरत भी इसी में प्यार भी हैं।।
तुम 'प्रीत' का ही बरसात करो।
कभी खुद से बोलो बात करो।।
सन्तोष कुमार 'प्रीत'
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