Skip to main content

जनचेतना नियमावली


जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति, पंजि० २२६

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

  समूह के मुख्य व अनुषंगी पटलों हेतु

★ अनिवार्यताएँ (नियमावली) ★

१.
इस पंजिकृत पटल व इसके अनुषंगी पटलों पर सभी आयोजन दैनिक कार्यक्रमानुसार ही संचालित होंगे | कार्यक्रम से इतर व्यवहार अनुशासनहीनता ही होगा, जिस पर संबंधित को पटल-मुक्त या पटल वर्जना दी जा सकेगी |
२.
पटल परिवार में पारस्परिक सद्भाव व गतिविधि आधारित व्यवहार सर्वोपरि है | किसी भी प्रकार की दुविधा, विवाद या अस्पष्टता की स्थिति में पटल प्रबंधन से ही वार्त्ता हो | पटल पर वर्जना दिये जाने पर किसी भी परिस्थिति में तर्क-वितर्क न हो |
३.
मुख्य व अनुषंगी पटलों पर दैनिक उपस्थिति की व्यवस्था है, जो प्रति सप्ताह पटल पर भी रखी जायेगी |अत: प्रत्येक पटल प्रतिभागी के लिये सप्ताह में न्यूनतम एक उपस्थिति अनिवार्य है | लगातार दो सप्ताह की अनुपस्थिति\निष्क्रियता पटल से पृथक करने का सशक्त कारण होगी |
४.
यदि अनुपस्थिति की अपरिहार्यता हो, तो संबंधित पटल को (न कि एडमिन को)  लिखित में सूचित करें | आपको अनुपस्थिति न मानकर अवकाश पर माना जायेगा, परन्तु अवकाशोपरान्त नियम ३ की पालना होगी |
५.
दिवस विशेष पर प्रासंगिक व सामयिक लेखन कार्यक्रम में अधिसूचित न होने पर भी किया जा सकेगा | पर इसके साथ उस दिन के विषयादि की पालना भी होनी चाहिए , अन्यथा इसे उच्छृंखलता माना जायेगा |
६.
नित्य विषयानुरूप सदस्यगण कितनी भी रचनाएँ पटलार्पण कर सकेंगे, परन्तु समीक्षा व किसी विशेष उद्देश्य से होने वाले चयन में एकमात्र प्रथम रचना को ही वरीयता दी जायेगी | इस हेतु किसी भी प्रकार का निवेदन अस्वीकृत ही होगा |
७.
पटल पर किसी भी प्रकार के धार्मिक, जातीय, राजनैतिक, जादू-टोना-चमत्कार, टॉक-टाईम, कोई भी लिंक, इस से भिन्न प्रचार-प्रसार, कपोल-कल्पना, अमर्यादित शब्दावली व किसी भी दृष्टि से आपत्तिजनक चित्र, ऑडियो, वीडियो, संदेश इत्यादि न रखें जाए | यदि ऐसा किया जाता है , तो तत्क्षण पटल-मुक्त किया जा सकेगा |
८.
रविवार को पटल विषय-मुक्त रहेगा , अत: समुचित व सामयिक रचनाएँ, चित्र, ऑडियो, वीडियो रखें जा सकेंगे | परन्तु दैनिक कार्यक्रम की पालना इस दिन भी अनिवार्य होगी |
९.
रविवार से इतर दिवस वंदनाकाल में स्वयं की रचना के साथ ही ऑडियो रखा जा सकेगा | इसके अतिरिक्त चित्र, ऑडियो, वीडियो पूर्णत: प्रतिबंधित रहेंगे , परन्तु प्रशासक मंडल की संस्तुति पर पदाधिकारियों द्वारा ऑडियो रखे जा सकेंगे |
१०.
छंदशाला व ग़ज़लशाला संबंधित कार्यक्रम के साथ विषय प्रमुख या उनके सहयोगी द्वारा उस दिन के छन्द व ग़ज़ल का ऑडियो रखा जायेगा, ताक़ि सर्जनकारों को सर्जन में सुविधा हो सके | इसके साथ ही कोई भी स्वयं के या किसी की रचना के प्रशंसात्मक ऑडियो रख सकेगा |
११.
सनद रहे कि किसी भी परिस्थिति में बिना संबंधित से सार्वजनिक अनुमति लिये परस्पर इंबॉक्स में संपक्र न किया जाए | यदि ऐसा किया जाता है तो यह निजता व मर्यादा का उल्लंघन होगा, जिस पर वैधिक कार्यवाही हो सकती है | इसकी नैतिक व वैधिक जिम्मेदारी मात्र  दोनों पक्षों की होगी | पटल का इसमें कोई प्रभार न होगा |
१२.
समूह में किसी को जोड़ने-निकालने का अधिकार प्रशासक मंडल के पास सुरक्षित रहेगा | अब से प्रवेश प्रक्रिया से ही समूह की सदस्यता दी जा सकेगी | बिना प्रशासक मंडल की स्वीकृति के कोई एडमिन भी अपने स्तर पर निर्णय न कर सकेगा |  साथ ही यदि बिना कुछ कहे कोई प्रतिभागी पटल छोड़ता है तो उसे पुन: जोड़ने पर प्रशासक मंडल की संस्तुति अनिवार्य होगी |
१३.
पटल पर वय व अनुभव का समादर होना ही चाहिए , परन्तु कनिष्ठ व नवागतों को संबल देते हुये उनके मान की रक्षा करना भी हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है | अत: सबके प्रति सम व्यवहार होना ही चाहिए |
१४.
परिवार में संभव है कि किसी विषय , प्रविधि या अन्यान्य प्रकार से समस्या उत्पन्न हो , ऐसी स्थिति में हम सभी को बिना उद्वेलित हुये तार्किकता व सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में सम्मानजनक ढंग से समाधान का प्रयास करना चाहिए | ऐसा न हो कि किसी से हठधर्मिता व पक्षपातपूर्ण हो जाए, यदि हुआ तो प्रशासक मंडल का निर्णय अंतिम होगा |
१५.
प्रशासक मंडल सहित मुख्य व अनुषंगी पटलों पर भी यह नियमावली सर्वमान्य रहेगी और कोई भी इन नियमों से मुक्त नहीं हैं |

🙏 पटल को आशा व पूर्ण विश्वास है कि आप सब व्यक्तिश: व समूहश: हमारा गौरव बनेंगे और. साहित्यिक क्षेत्र में कुछ सार्थक करने में हमारे सहयोगी होंगे |

🙏 सादर सूचनार्थ व पालनार्थ|

Comments

Popular posts from this blog

वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

[18/04 1:52 PM] Rahul Shukla: [20/03 23:13] अंजलि शीलू: स्वर का नवा व अंतिम भेद १. *संवृत्त* - मुँह का कम खुलना। उदाहरण -   इ, ई, उ, ऊ, ऋ २. *अर्ध संवृत*- कम मुँह खुलने पर निकलने वाले स्वर। उदाहरण - ए, ओ ३. *विवृत्त* - मुँह गुफा जैसा खुले। उदाहरण  - *आ* ४. *अर्ध विवृत्त* - मुँह गोलाकार से कुछ कम खुले। उदाहरण - अ, ऐ,औ     🙏🏻 जय जय 🙏🏻 [20/03 23:13] अंजलि शीलू: *वर्ण माला कुल वर्ण = 52* *स्वर = 13* अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अब *व्यंजन = 37*         *मूल व्यंजन = 33* *(1) वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन -*    क ख ग घ ङ    च छ ज झ ञ    ट ठ ड ढ ण    त थ द ध न    प फ ब भ म      *25* *(2) अन्तस्थ व्यंजन-*      य, र,  ल,  व  =  4 *(3) ऊष्म व्यंजन-*      श, ष, स, ह =  4   *(4) संयुक्त व्यंजन-*         क्ष, त्र, ज्ञ, श्र = 4 कुल व्यंजन  = 37    *(5) उक्षिप्त/ ताड़नजात-*         ड़,  ढ़         13 + 25+ 4 + 4 + 4 + 2 = 52 कुल [20/03 23:14] अंजलि शीलू: कल की कक्षा में जो पढ़ा - प्रश्न - भाषा क्या है? उत्तर -भाषा एक माध्यम है | प्रश्न -भाषा किसका

तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य