आ☆ प्रभांशु कुमार जी के स्वागत में समर्पित कुछ पंक्तियाँ,
स्वागतम् स्वागतम् स्वागतम्
स्वागतम् सुस्वागतम्
आगतम् अनवरत आगतम्
सुस्वागतम् स्वागतम्
संगम सृजन सुन्दरम्
साहित्य सृजन सुमधुरम्
शरणागतम् शिवम् शुभम्
सुखमय सुखम् सर्वम् सुखम्
साहित्य सम्मान सम
सर्वत्र संगम सुविख्यातम्
सृष्टिसृजनकर्ताः समक्ष
सृजनकार सम्मान प्राप्तम्
साहित्य संगम सृजन
सृष्टि संग सर्वत्रम्
स्वागतम् स्वागतम् स्वागतम्
स्वागतम् सुस्वागतम्
साहित्य संगम समर्पणम्
साहित्यकार समर्पितम्।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
आ• राजेश मिश्रा राज जी को समर्पित कुछ पंक्तियाँ
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देश का कर रहे है हम सदा गुणगान हैं,
आदमी की आदमी से हो रही पहचान है,
किसानों से ही देश का सम्मान है,
सीमा पर लड़ रहे, देश के जवान है।
साहिल
आ☆ बिजेन्द्र सिंह सरल जी के स्वागत में कुछ शब्दोपहार
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♧वर्ष छंद♧
(222 221 121)
गाऊँ मैं तेरा प्रभु नाम।
जाऊँ मैं तेरे शुभ धाम।।
नैया मेरी खेवत श्याम।
सेवा का हो सुंदर काम।।
✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
आ☆ जितेन्द्र चौहान जी के स्वागत में कुछ शब्दोपहार
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नूतन नवल रवि किरणें, आशा सकल अमोल।
मन में सदा सोच जगे,जीवन है अनमोल।।
✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
आ☆ कौशल कुमार पाण्डेय आस जी के स्वागत में कुछ शब्दोपहार
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विजय गीत
बहुत बोझ लाद कंधे पर,
कमर हमारी झुक जाती है,
तैर नही पाते सागर में,
नाव हमें ले जाती है।
लहरों से सीखा चलते रहना,
गहराई से साहस सीखा,
झंझावातों में तूफानों में,
साहिल पर चलना सीखा।
मझधारों से डरा नही मैं,
धाराओं को सहना सीखा,
कठिन राह के तमस काल में,
दीपक सा जलना सीखा।
भूली यादों का बसेरा तो है,
घनघोर रात का सवेरा तो है,
शीतल लहरें मनमीत बनी,
नेह भरा मन तेरा तो है।
मुश्किल राहों पर म़ात मिली,
सुख सपनों की रात मिली,
लगन दिलाती है मंजिल,
विजयी पथ की सौगात मिली।
विश्वास सफल बनाता है,
परिश्रम का गहरा नाता है,
विचारों की सफल शक्ति,
विजयी राह दिलाता है।
✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
आ• भगत सहिष्णु गुरुवर को समर्पित प्रेममय पंक्तियाँ🙏🏻👇🙏🏻🌺
नवल मिलन की, मधुवन है तू,मिली जुली।
हर पल मन की, हलचल है तू, नपी तुली ।
सतगुण रवि की,विकिरण है तू, घुली मिली।
सरल प्रखर सी, नटखट है तू, धुली खिली।।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
परम आदरणीय भगत सहिष्णु गुरुवर के शानदार अद्भुत अतुलनीय अविस्मरणीय अविवरणीय बेहतरीन उद्बोधन को समर्पित मेरा सृजन अंधकार को मिटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले गुरु को समर्पित
卐 गुरू 卐
अभाष्य से भाष्य,
अरूचि से रूचि,
रुचि से सुरूचि,
सुरूचि से साकार,
साकार से स्वर्ग,
लौकिक से अलौकिक,
भौतिक से अभौतिक,
लोक से परलोक,
कायिक से आत्मिक,
दैहिक से दैविक,
आसक्ति से आनन्द,
आनन्द से भक्ति,
भक्ति से शक्ति,
शक्ति से शिव,
शिव से सत्यम,
सत्यम से सुन्दरम,
सुन्दरम से सम्पन्न,
सम्पन्न से समृद्ध,
रोग से निरोग,
भोग से योग,
योग से जोग,
जोग से भक्ति,
भक्ति से पुरूषार्थ,
पुरूषार्थ से परमार्थ,
परमार्थ से परमतत्व,
परमतत्व से परमात्मा,
लोक से परलोक,
परलोक से देवलोक,
सब दिखाता और,
समझाता जो है,
वो केवल गुरू है,
सब भाषा जो,
समझाता वो गुरु है।
- डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
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