देवता/दिव्यता
भाव में हो भव्यता, राग में हो रम्यता|
देवता की दिव्यता, नूतन हो नव्यता|
स्वभाव में हो नम्रता, आदर विनम्रता|
अंत हो अधीनता, काम में तल्लनीता|
धर्म में हो दिव्यता, प्रेम में हो तन्यता|
मनु में हो मनुष्यता, दंश है दनुजता|
गुरुवर की शिष्यता, विषय में हो विज्ञता|
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
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