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शिक्षा में परिवर्तन

देश की शिक्षा व्यवस्था यही है, आजकल जो बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, उसका कोई महत्व नहीं समझ में आता| शिक्षा रोजगारपरक भी नहीं है, क्या पढ़ा रहे हैं, क्यों पढ़ा रहे हैं ?  उससे बच्चे के अंदर नैतिकता संस्कार, भारतीय संस्कृति को बढ़ाने हेतु, व्यवहार एवं शैक्षिक परिवर्तन कुछ भी विकसित नहीं हो पा रहा है, वाकई में शिक्षा व्यवस्था अत्यंत बिगड़ चुकी है|
      
            यह बहुत ही सोचनीय विषय है, हम सब को खुलकर आगे आना होगा| शिक्षा व्यवस्था में बदलाव हेतु सभी कदमों की ओर ध्यान देना होगा और यदि जरूरत पड़ी तो आंदोलन भी करना होगा |  हमारे बच्चों के संस्कार नैतिकता सामाजिक व्यवहार एवं रहन- सहन बोलचाल आदि सभी चीजों में बहुत बड़ा परिवर्तन हो रहा है, नकरात्मक व्यवहार देखने को मिल रहा है जो कि हमारे बच्चों परिवार एवं समाज के लिए अत्यंत हानिकारक है| रोजगारपरक, आध्यात्मिक, वैदिक यौगिक एवं संस्कार पूर्ण शिक्षा का समावेश करना होगा तभी बच्चों युवाओं एवं देश का उत्थान संभव है|

*वर्तमान शिक्षा पद्धति में सकारात्मक सार्थक एवं संस्कार पूर्ण परिवर्तन की विशेष आवश्यकता है|*
शिक्षा, शिक्षक एवं शिक्षा  व्यवस्था समाज निर्माण की मूलभूत आवश्यकता है|

○ शिक्षा के माध्यम से मनुज रूपी जीव व समाज को बदलने व सही दिशा दिखाने का कार्य सकल व सुगम है|

○ सुव्यवस्थित शिक्षा व्यवस्था से व्यक्ति विशेष का लाभ नही पूरे समाज का लाभ है|

○ समाज में अन्ध विश्वास का अन्त होता है व रुढ़िवादिता का अंत होता है एवं समाज में जागरूकता आती है|

○ बुराई, अत्याचार  कुरितियों के प्रति जागरूकता आयें व सामान्य जन उससे लड़ सकें।ऐसी नैतिक शिक्षा व सर्व शिक्षा की व्यवस्था की आवश्यकता है|

○ शिक्षा से बच्चों किशोरों व युवाओं में  ओजस्व, तेजस्व, प्रेरणा, ज्ञान व विद्या का अद्भुत संचार होता है जो व्यक्ति निर्माण समाज निर्माण व राष्ट्र निर्माण के लिए परम आवश्यक है|

○ गीतबद्ध, सुरूचिपूर्ण व सरल अध्यापन तकनीकी व पाठ योजना बच्चों के लिए सुगम और आसान हो जाती है| 

०  संस्कार, नैतिकता, जीवन जीने की कला सिखाने वाली शिक्षा का अभाव, द्वेष, विषाद एवं दुख/ कष्ट को कम करने वाली शिक्षा का अभाव ही बच्चों एवं युवाओं को पथभ्रष्ट कर रहा है|

० वर्तमान शिक्षा में वैदिक शिक्षा का समावेश अति आवश्यक है और व्यवहारिक शिक्षा भी जरुरी है|

© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

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