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लघु कथा (बीभत्स.. रस) डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

बस उससे मिलकर यूँ लगा कि सारी दुनिया की खुशी मिल गयी, धारा नाम था उसका, उम्र 25 वर्ष, गोरा रंग, गोल चेहरा, भरा हुआ शरीर, मन को रोमांचित कर देने वाली मनमोहक सूरत को देखकर मैं मूरत बन जाता था,  कुछ ही पल में वो दूर चली गयी, जैसे छिन गया कुछ जिन्दगी से, हृदय से करूणा के भाव निकले, वियोग की धारा बह चली| संयोग में वियोग खलता चला गया, शारीरिक और मानसिक सामन्जस्य विखंडित होने लगा| आत्मा अनचाही घटनाओं से भयभीत होने लगी, रात में बुरे- बुरे स्वप्न पीछा करते थे| बस उम्मीद यह थी कि वो एक न एक दिन आएगी और मुझे जरुर अपनाएगी| हाल खबर लेने के सारे माध्यमों को अपनाने के लिए हाथ - पाँव - दिमाग चलाता रहा, परंतु मन अजीब सी सम्भावनाओं और अपेक्षाओं के बीच गोते लगाता रहता था| लगभग छह माह बाद मेरे एक मित्र के द्वारा खबर मिली कि  वो लड़की धारा मुम्बई बम विस्फोट में सपरिवार समाप्त हो गयी |  हृदय और आत्मा बिन आँसुओं के पिघल गयी, मन बीभत्स.. में डूब गया| ऐसा भयानक दर्द यदि ईश्वर दें तो सहने की अपार क्षमता भी दें| कई माह तक उस दर्द से उबर नही पाया था मेरा हृदय, उद्वेलित भावनाएँ और मन का विचार|
     कुछ सोचने और करने का मन ही नहीं करता था, व्यामोह की स्थिति बन गयी थी|
   अब भी वो घटना मन को व्यथित कर देती है|
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

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