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इन्दु शर्मा शचि जी (वन्दना)

    जय श्री कृष्ण

कृष्णा नाम  अमृत घुले,
इसकी अजब  मिठास।
दूर कभी     जाना नही,
रहना    हरदम    पास।

मैने    तुमको    सौपदी ,
अपनी    जीवन   डोर।
तुम बिन    मेरा कौन है,
बोलो    नंद     किशोर।

इतना  मत   तड़पाइये,
रखिये  सर    पर  हाथ।
सुखदुख तुझको सौपदी,
तुम   जानो     हे  नाथ। 

इन्द्र शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

     अंतर्मन

अंतर्मन   कहता   है,
मानव क्यूं   डरता है,
अच्छे अच्छे कर्मकर,
जीवन        सँवारले।

अंतर्मन     दर्पण   है,
कर्मो का संघर्शण  है,
नेकी वाली  राह चुन,
जिंदगी       गुजारले।

अंतर्मन     ही राम है,
ये तेरा  स्वाभिमान है,
बात इसकी  मान  के,
ईश को      पुकारले।

अंतर्मन      सागर  है,
सच्चाई की  चादर  है,
अंतर्मन  की सीख ले,
कर्मो को     सुधारले।

इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

जय श्री कृष्णा 

चौपाई छंद

सुनलो मोहन अरज हमारी,
डूब रही है      नाव हमारी।

तुम बिन मेरा  को गिरधारी,
बन जाओ  पतवार हमारी।

करुणासागर    दौड़े आओ,
नैया मोरी      पार लगाओ।

यशोदा नन्दन  दीन दयाला,
इन्दू  पुकारे   सुन  गोपाला।

इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

    रौद्र रूप

लिये  त्रिशूल  हाथ हो,
असुरों का विकास हो,
माँ  रौद्र रूप   धारणी,
कल्याण कीजिये।

माँ पाप का नास कर,
जन का     संताप हर,
त्रिशूल  पास धारिणी,
संहार  कीजिये।   

धरा  तुझे    पुकारती,
माँ  कष्ट में है  भारती,
विपदाओं को टारणी,
माँ प्यार कीजिये।

गौरी तूं   मात संकरा,
पाप ताप को दे जरा,
माँ   संकट निवारणी,
शरण लीजिये।

इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

चौपाई छंद

उठ जा कान्हा   मात जगावे,
दाऊ  आ    आवाज  लगावे।

आँगन  डाले        पंछी डेरा,
उठ  मनमोहन   हुआ सवेरा।

अँखियाँ  मलते   बोले कान्हा ,
मैया  मुझको   माखन खाना।

गोद  उठा        मैया  दुलरावे,
स्नान करो  फिर माखन पावे।

रुदन मचावे    नटखट कान्हा,
पहले मैया       माखन खाना।

व्रज की सखियाँ   दौड़ी आई,
क्यों रोया है     कृष्ण कन्हाई।

कान्हा माखन     भोग लगावे,
शचि मनमोहन     दर्शन पावे।

इन्दू  शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

    जयश्रीकृष्ण 🙏

हे मन मोहन दरस दिखादो,
सब की पीर  मिटाने  वाले।
जीवन मेरा   सहज बनादो,
सब को  धीर  बंधाने वाले।

भवसागर  में  अटकी नैया।
तुम बिन मेरा कौन खिवैया,
नैया   पार    लगाने   वाले।
हे मनमोहन---

मुझको तेरा   नाथ  सहारा,
तूम ने ही    प्रह्लाद  उबारा,
ध्रुव को गोद  बिठाने वाले।
हे मनमोहन---

तूं है नाथ   दया का सागर।
फिर क्यूं खाली मेरी गागर,
प्रेम  का रस बरसाने वाले।
हे मनमोहन---

इन्दू आ गई  शरण तिहारी।
राखो गिरधर  लाज हमारी,
सबकी  लाज  बचाने वाले।
हे मनमोहन---

इन्दू  शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

Comments

  1. आ० इन्दु शर्मा शचि दीदी जी को उत्तम उत्कृष्ट सर्जन हेतु हृदय तल से बधाई एवं शुभकामनाएँ|
    शब्द संयोजन सर्वोत्तम है,

    ReplyDelete

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कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

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