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कुछ लघुकथा (इन्दु शर्मा शचि द्वारा लिखित)

     लघु कथा

    💐 विश्वास 💐

निर्मला कान्हा  की भक्त थी। वो
सिर्फ कान्हा को ही अपना इष्ट
मानती थी।  कान्हा की पूजा अर्चना में अपनी खुशियाँ ढूंढती
रहती थी।  एक संत मिले उन्होने
निर्मला से कहा, सुबह से शाम तक तुम अपने सारे कर्म कान्हा को अर्पण कर दिया करो। और
एक गृहणी का कर्तव्य जो है उसे
निभाओ। झाड़ू कटका करते समय यह सोचो मैं कान्हा के मंदिर की सफाई कर  रही हूं। खाना बनाओ, तो सोचो कान्हा के लिये प्रसाद बना रही हूँ । हर
काम कान्हा के लिये करो,तुम्हारी
पूजा सेवा स्वतः होती रहेगी।
निर्मला वैसे ही करने लगी। उसके
नकारात्मक  विचार सकारात्मक
होने लगे। निर्मला साधारण  परिवार  से थी। एक दिन उसे पैसे
की सख्त जरूरत थी। पर इन्तजाम हो नही रहा था। उसने कान्हा से अर्जी लिख कर कान्हा के सामने रखदी। दूसरे दिन मामा
का लड़का  आया,और बोला ये कुछ रुपये  आपको देने थे। पर मैं
भूल गया था। मेरी पत्नी ने कल याद  दिलाया।  निर्मला समझ गई
पत्नी के रूप में मेरा कान्हा अपना काम कर गया। विस्वास में
बहुत शक्ति होती है। जयश्रीकृष्ण

इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

जैसी करणी वैसी भरणी

नैना और प्रदीप अपनी गृहस्थी  से बहुत खुश थे। प्रदीप के एक बेटा था ,बहू थी,और एक प्यारा सा पोता था भी था। एक दिन वो लोग घर आ रहे थे,  कि राश्ते में कार का एक्सीडेंट हो जाता है।
जिसमें   प्रदीप की मृत्यु हो जाती है। इस हादसे ने नैना को तोड़ कर रख दिया था।  समय बीतता गया। प्रदीप को गुजरे10 साल हो गये थे। अब नैना बहू को बोझ लगने लगी थी। बात बात पर झिड़क  देती थी। नैना को दमे की सिकायत हो गई  थी। दिन भर खांसते रहती थी। नैना की बहू  को यह बिल्कुल नही सुहाता था।  नैना को एक कमरा दे रखा था,नैना उसी में रहती थी।  नैना
का पोता अब 11 साल का हो गया था। वह अपनी दादी से बहुत प्यार करता था। छुप छुप कर नैना से मिलने जाया करता था।
एक दिन नैना की बहू ने देख लिया। फिर क्या था लगी चिल्लाने ।  खुद तो बिमार है।
पति को खा गई अब मेरे बच्चे के
पीछे पड़ी है। नैना ने तो बस चुप्पी साध रखी थी। संजय के आते ही बहू बोली। अपनी माँ को वृद्धाश्रम  छोड़ कर आओ वर्ना
मैं मयके चली जाऊँगी। संजय ने सोचा घर बचाना है तो कुछ तो करना पड़ेगा। संजय बोला सुबह
माँ से बात करता हूँ । सुबह संजय ने नैना को आवाज लगाई। माँ
पर कोई हलचल नही। फिर झकझोर कर बोला माँ तुमसे कुछ
बात करनी है। पर कोई उत्तर नही।  संजय जोर से चिल्लाया माँ
नही है। देखते ही देखते अंतिम यात्रा की तैयारी हो गई । पोता अपनी दादी को एक टक निहार रहा था। और सोच रहा था,कि
आज भी दादी माँ के चेहरे पर कितना वात्सल्य है। जैसे ही नैना
के कपड़े बर्तन बाहर निकालने लगे। पोता बोला यहीं रहने दो।
संजय बोला बेटा अब यह किस काम का। तुम्हारी दादी माँ बिमार थी। यह उनके बर्तन है। पापा मुझे
पता है,इसी लिये तो रखना चाहता हूं। कल आप भी बिमार पड़ सकते हैं मम्मी भी बिमार पड़ सकती है। तब ये काम आयेंगे ना,मुझे भी अपनी पत्नी की बात मान कर मम्मी को दादी माँ के रूम में सिप्ट करना होगा। तब यह बर्तन रजाई तकिये सब काम आयेंगे।  संजय और उसकी पत्नी आवाज रह गये और एक दूसरे का मुह देखने लगे। बच्चे वही सीखते हैं जो घर में देखते हैं।

इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

लघु कथा   (आइसक्रीम)

कृष्णा बहुत ही खुद्दार लड़का था।   कृष्णा की  उम्र 8 साल की थी।   कृष्णा के पिता का देहान्त
जब कृष्णा एक साल का तब ही
हो गया था।    कृष्णा की माँ  का
नाम बिमला था।
            बिमला  कपड़े सील कर
घर का और कृष्णा की पढ़ाई का
खर्च चलाती थी। बिमला ने कृष्णा को अच्छे संस्कार  देकर
पाला था। एक दिन कृष्णा स्कूल
से घर लौट रहा था। तोआइस्क्रीम
देख कर वहीं खड़ा हो गया । पर उसके पास पैसे नही थे। इतने में एक गाड़ी आकर रुकी ,और आइसक्रीम पेक करवाने लगी। पेसे देते वक्त उसकी पर्स से 1000  रु0 का नोट नीचे गिर गया। कृष्णा की नजर उस नोट पर थी। जैसे ही महिला गाड़ी में
बैठने लगी,कृष्णा ने दौड़ कर कहा। मेडम आपके रु0 आपकी
पर्स से गिर गये थे। महिलाउसकी
इमानदारी से बहुत प्रभावित हुई ।
उसने 100 का नोट निकाल कर
कृष्णा की और बढ़ाया। और बोली बेटे यह लो तुम्हारा इनाम।
पर ये क्या,कृष्णा ने लेने से इन्कार कर दिया। और बोला यह
तो मेरा फर्ज था,   इसमें इनाम क्यों। मेरी माँ मुझे रोज इमानदारी
का पाठ पढ़ाती है।  महिला ने एक आइसक्रीम निकाली और बोली अब इन्कार मत करना। और कृष्णा का माथा चूम लिया।
महिला मन ही मन सोचने लगी,
कास भारत के सभी नागरिक
कृष्णा जैसे होते।    खुद्दार और इमानदार ।

इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

    लघुकथा
    💐 प्रेम 💐

कमला बिमला दोनो देवरानी जेठानी थी। दोनो में परस्पर प्रेम भी था। दोनो  के प्रेम से उसकी
पड़ोसन बहुत जलती थी।
एक दिन कमला कहीं गई हुई थी।  पड़ोसन को मौका  मिल गया आग लगाने का। 
पड़ोसन---बिमला अरी ओ बिमला  कहा हो।
बिमला--आई बहन जरा काम में लगी हुई थी।
सरला---क्या दिन भर काम ही करती रहोगी।       कहीं घूमने भी जाया करो।  तुम्हे घुटन नही होती
घर पर पड़े पड़े। कमला को देखो
मौका मिलते ही निकल जाती है,  घर तुम्हारे  भरोसे छोड़ कर। मेरी
मानो आज दब कर रहने का जमाना नही है। जितना दबोगी वो और दबायेंगी।  मानती हू कमला तुम्हारी  जेठानी है,इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम्हे नौकरानी ही
बनादे।
बिमला -- सरोज बहन आपने तो मेरी आखें खोलदी। मैने कभी यह
सोचा ही नही, कि मुझे सारा काम करना पड़ता है,और दीदी आराम
करती रहती है। आप बहुत अच्छी हो।
सरला-- क्या करूं मेरा तो दिल ही ऐसा है। तुम पर दया आई तो सोची तुम्हे समझा दू। अच्छा तो मैं चलती हूँ ।
बिमला---कल आना आपके सामने मैं दीदी का क्या करती हूँ, देखना।
सरला----👍 ये हुई न बात। और घर चली जाती है। कितने दिनों से
इनका प्रेम मुझे खटक रहा था। अब स्वाहा😃
दूसरे दिन कमला आती है, बिमला उसे सारी बात बता देती है।
सरला-- कमला बिमला कहा हो।
कमला,बिमला ---  हम यहाँ है।
सरला---ये क्या ये दोनो के हाथ में
डंडे क्यों है।
बिमला---ये आपकी खातिरदारी के लिये है। क्या समझी आप मैं
आपके बहकावे में आ जाऊंगी।
और अपनी दीदी से झगड़ा करूंगी।  हमारे बीच आप एक
हल्की सी रेख भी नहीं खीच सकती। चोट इन्हे लगती पर दर्द
मुझे होता है। हमारा प्यार बहुत गहरा है,आप वहाँ तक नही पहुच
सकती। अपनी सलाह अपने तक रखिये।🙏🙏🙏

© इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

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