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परिवार
मन की अभिव्यक्ति, हृदय के उद्गार एवं स्वस्थ विचार हम जिनसे व्यक्त कर सकें, जो हमारे जीवन को जन्म से सँवारकर परिपक्वता तक पहुँचा सकें, वो परिवार है| जिसमें एक - एक व्यक्ति माला के मोती समान है, मोतियों को जोड़ने वाली रिश्तोंं की डोर प्रेम स्नेह, सौहार्द, विश्वास और समान्जस्य से बनी होती है| सामन्जस्य गड़बड़ाने पर डोर कमजोर हो जाती है | एक - एक मोती की अपनी ही अहमियत है, कोई कम नही, कोई ज्यादा नही, सभी का महत्व बराबर है| ऐसा अगर वास्तविक जिन्दगी में आत्मसात किया जाए तो रिश्ते में खटाश, और मनमुटाव की स्थिति न बने और न ही रिश्ते टूटे, न बिखरें|
मान सम्मान और सहकारिता तो अति आवश्यक है ही परन्तु हर रिश्ते को पौधें की तरह सँजोना सँवारना पड़ता है तब जाकर परिवार रूपी सामाजिक निकाय संस्कार, नैतिकता, संस्कृति एवं सहिष्णुता का उदाहरण बनता है| श्रमशीलता, पुरुषार्थ एवं सेवा परिवार को सुगढ़ एवं संगठित बनाती है| कष्ट और वेदनाओं से निपटने हेतु पारिवारिक शक्ति का संबल एवं सहयोग सर्वोपरि है| सुख और दुख को साथ - साथ भोगना आनन्द में बढ़ोत्तरी करता है, यदि जीवन रूपी वीणा को संग संग में स्वर दिया जाए तो आनन्द दो गुना हो जाता है, यदि इसमें आध्यात्मिक गुणों एवं आत्मज्ञान का समावेश हो जाए तो परमानन्द का उच्च सोपान प्राप्त हो जाता है|
रिश्तों में कभी - कभी आवश्यकतानुसार वीणा के तारो के समान कसना और ढ़ीला करना पड़ता है तभी जीवन रूपी वाद्ययंत्र (वीणा) मधुर स्वरों का गान करता है| कभी रिश्तों में कड़ाई और अनुशासन भी जरुरी है और कभी रिश्तों में स्नेह दुलार एवं अतिरिक्त प्यार की भी जरुरत है|
बस परिवार रूपी तपोवन में संयम, सेवा, सहिष्णुता, सम्मान, सहकारिता, सामन्जस्य, आपसी समन्वय, सहजता, सरलता और सकारात्मकता बनी रहे तब ये गृहस्थ जीवन धरती पर स्वर्ग के समान है | पारिवारिक शक्ति संवर्धन एवं संबलता ही सशक्त सम्पन्न एवं सम्पूर्ण राष्ट्र की नींव हैं |
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
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