लघुकथा
चैता व पिया दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे।साथ जीवन जीने की ठान ली थी उन दोनों ने। गाँव के कुछ लड़कों के आँखों में ये दोनों नही सुहाते थे। वे ऐसे मौके की तलाश में रहते थे जब उन्हें पकड़ा जाय और मजा सिखाया जाय। उन दोनों में सात्विक प्रेम था।मर्यादा व अनुशासन में रहना उन्हें खूब आता था। एक दिन गाँव के मेले में उन दोनों को गाँव के उचक्कों ने साथ-साथ देख लिया। वे दोनों मलाइबर्फ खाते हुए बात कर रहे थे। उचक्कों ने उन्हें घेर लिया और मुखिया जी के पास ले गए। कानों-कान सबों को खबर मिल गयी।पंचायत बैठी, वहां यह निर्णय लिया गया कि दोनों स्वजातीय हैं तथा बालिग भी हैं अतः इनका विवाह करवा दिया जाय। यह भी तय किया गया कि दोनों को यह गाँव छोड़ कर जाना होगा। पास के शिव मंदिर में उन दोनों का विवाह करवा दिया गया। पंचायत के आगे उनके मातपिता भी कुछ ना बोल सके। सुबह होते ही उन्हें गाँव छोड़ देना पड़ा।
चैता पढ़ाई में बहुत अव्वल था तथा वह मूर्ति भी बहुत सुंदर बनाता था। आस-पास के गाँवों में भी उसकी बहुत ख्याति थी। सरस्वती पूजा में उसकी बनाई हुई मूर्तियां खूब बिकती थी। पिया भी उससे कम नही थी, लोकसंगीत की कोकिला थी वह। लोक त्योहारों में उसके गीतों पर युवतियां खूब थिरकती थीं। दोनों गाँव छोड़ने के बाद पास के एक गावँ में एक विधवा ब्राह्मणी के यहाँ भाड़े पर रहने लगी। विधवा को कोई संतान नही थी जिसके कारण वह इन दोनों को मन-ही-मन पुत्र व पुत्रवधु मानने लगी थी। चैता व पिया दोनों उन्हें काकी कहकर बुलाने लगे थे। दोनों मिलकर गाँव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम करने लगे। जल्द ही कई लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए वहाँ भेजने लगे।
सावन का महीना था अगले माह गणेश पूजा थी।सावन की झमाझम बारिश की रात दोनों एक दूसरे की बाहों में थे। चाँद भी शरमाकर बादलों में छुप गया था।घंटों की खामोशी को तोड़ते हुए चैता, पिया से कहता है कि मैं सोंचता हूँ कि पंद्रह दिनों के लिए कोलकाता चला जाऊँ, वहां जाकर मूर्तिकला की बारीकियों को और सीख लूं ताकि अगले माह गणेशजी की भव्य-भव्य मूर्तियां बना सकूँ। इतना सुनकर पता नही पिया को क्या हुआ कि उसे जोर से उबकाई आने लगी। आवाज सुनकर काकी दौड़कर आयी। कुछ देर में काकी सबकुछ समझ गयी और बोली कि रे ! चैता तू तो बाप बनने वाला है रे। चैता की खुशी का ठिकाना नही रहा।रात कैसे बीत गयी पता ही नही चला। सुबह चैता पिया को काकी के हवाले करते हुए कोलकाता चला गया।पिया अब अकेले ही बच्चों को पढ़ाती थी। काकी उसका बहुत ध्यान रखती थी। रोज रात को चैता उससे फोन पर बात कर लिया करता था। चैता को गए दस दिन हो गए थे। पांच दिन बाद चैता आने वाला था। पिया उसका बहुत इंतजार कर रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे चैता को देखे कई वर्ष बीत गए हो।
आज रात चैता कोलकाता से वापस लौटने वाला था पिया को फोन करके उसने कहा कि कल सुबह घर पहुँच रहा हूँ मेरे लिए मालपुआ बना के रखना, सुबह में दोनों साथ-साथ खाएंगे। पिया समान लाने के लिए दुकान जा रही थी तभी रास्ते में उसके गाँव के वही उचक्के घात लगाए हुए थे। उन सबों को पता था कि चैता कहीं बाहर गया हुआ है। उचक्के उसके साथ बलात्कार करते हैं और अंत में बड़े पत्थर से उसका सिर कूँच देते हैं।सुबह चैता जब गाँव आता है तो उसे पिया का वीभत्स चेहरा व समाज की वीभत्स कृत्य व अजन्में बच्चे की मौत से सामना करना पड़ता है।
महेश"अमन"
रंगकर्मी
17/07/18
आ० महेश अमन जी
ReplyDeleteमन दहल गया अंत पढ़कर
बहुत ही मार्मिक तरीके से भाव पिरोया है आपने,
सचमुच समाज की यही सच्चाई है, मनुष्य का घिनौना चेहरा कुकृत्यों से दिख जाता है|
भयावह और बीभत्स अंत प्रदान करके हृदय विचलन की स्थिति में पहुँचा दिया आपकी कथा ने|
आपकी लेखन प्रतिभा को कोटि कोटि नमन, माँ वरदा आपको उत्तरोत्तर प्रगति के सोपान पर ले जाएँ, हमारी शुभकामनाएँ सदैव आपके साथ हैं|
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