*मधुर /भावना*
∆ सुमति छंद ∆
विधान - नगण रगण नगण यगण ₹
(111 212 111 122)
2, 2 चरण समतुकांत,4 चरण
मधुर रागिनी सुर लय गाए|
करुण वेदना दुख तम जाए||
पहर बीतते तुम - बिन कैसे|
गहन रात की करवट जैसे||
सकल नेह की सुखमय काया|
नयन प्रेम ही निशदिन पाया||
मुदित हो गया तन- मन सारा|
चमक यामिनी झिल-मिल तारा||
सुभग मोहिनी अब तुम आओ|
नवल प्रीत की अलख जगाओ||
मिलन मीत का मधुरिम लागे|
सुखद नींद से प्रियतम जागे||
सरस भावना प्रियतम प्यारी|
सरल साधना सुखमय नारी||
विरह धीर की कब तक ताकूँ|
कबहुँ तो मिलो इत उत झाकूँ||
मिलन कामना तन-मन प्यासा|
सकल स्नेह से झरत कुहासा||
शुभम प्रेम है शरण सहारा|
चमक चाँदनी मधुरिम तारा||
छन्दमुक्त *भावना*
भावना जगे तभी,
साधना जगे तभी,
राह में जो शूल हो,
भक्ति पथ मूल हो|
प्रेम भाव साथ हो,
मित्र का हाथ हो,
प्रीत की सौगात हो,
सुकून भरी रात हो|
भाव से ही मान है,
नर नारी सम्मान है,
भाव से सत्कार है,
आपसी सहकार है|
*भावना*
_रथोद्धता छंद_
विधान~ [रगण नगण रगण+लघु गुरु]
(212 111 212 12) 11वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चारण समतुकांत]
कामिनी हृदय हार हो रही|
रागिनी सकल नेह दो सही||
भावना सरल सी बुनो यहीं|
चाहतें सफल मेल है कहीं||
रोकना चमन शोर हो रहा|
बैर से अमन चैन है बहा||
दामिनी करुण मान ताकती|
मोरनी 'मधुर' दिव्य नाचती||
बोलिए अब गुहार चाहिए|
शीघ्र ही मनु पुकार चाहिए||
मानसी गुन विचार लाइए|
साथियों वचन तो निभाइए||
©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
Comments
Post a Comment