[4/6, 16:23] Dr. Rahul Shukla: *मधुर /भावना*
∆ सुमति छंद ∆
विधान - नगण रगण नगण यगण ₹
(111 212 111 122)
2, 2 चरण समतुकांत,4 चरण
मधुर रागिनी सुर लय गाए|
करुण वेदना दुख तम जाए||
पहर बीतते तुम - बिन कैसे|
गहन रात की करवट जैसे||
सकल नेह की सुखमय काया|
नयन प्रेम ही निशदिन पाया||
मुदित हो गया तन- मन सारा|
चमक यामिनी झिल-मिल तारा||
सुभग मोहिनी अब तुम आओ|
नवल प्रीत की अलख जगाओ||
मिलन मीत का मधुरिम लागे|
सुखद नींद से प्रियतम जागे||
सरस भावना प्रियतम प्यारी|
सरल साधना सुखमय नारी||
विरह धीर की कब तक ताकूँ|
कबहुँ तो मिलो इत उत झाकूँ||
मिलन कामना तन-मन प्यासा|
सकल स्नेह से झरत कुहासा||
शुभम प्रेम है शरण सहारा|
चमक चाँदनी मधुरिम तारा||
छन्दमुक्त *भावना*
भावना जगे तभी,
साधना जगे तभी,
राह में जो शूल हो,
भक्ति पथ मूल हो|
प्रेम भाव साथ हो,
मित्र का हाथ हो,
प्रीत की सौगात हो,
सुकून भरी रात हो|
भाव से ही मान है,
नर नारी सम्मान है,
भाव से सत्कार है,
आपसी सहकार है|
*भावना*
_रथोद्धता छंद_
विधान~ [रगण नगण रगण+लघु गुरु]
(212 111 212 12) 11वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चारण समतुकांत]
कामिनी हृदय हार हो रही|
रागिनी सकल नेह दो सही||
*भावना* सरल सी बुनो यहीं|
चाहतें सफल मेल है कहीं||
रोकना चमन शोर हो रहा|
बैर से अमन चैन है बहा||
दामिनी करुण मान ताकती|
मोरनी *मधुर* दिव्य नाचती||
बोलिए अब गुहार चाहिए|
शीघ्र ही मनु पुकार चाहिए||
मानसी गुन विचार लाइए|
साथियों वचन तो निभाइए||
©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
[4/7, 00:06] Dr. Rahul Shukla: *मजा मधुर ही लीजिए, जीत बने मनमीत|*
*आज समय है बोलिए, अपने हिय की प्रीत;*
प्रेम का गीत सुनाओ, मधुरिम बंशी बजाओ||
[4/7, 00:06] Dr. Rahul Shukla: विषय~मधुर
विधा~दोहा
मधुर मधुर मुस्कान है, मधुर मधुर से बोल|
देख उसे बस डोलता, तन मन का भूगोल||
एक शराबी बन गया, देख नशीले नैन|
देख न लूँ मैं जब तलक,आता है नहिं चैन||
एक अनोखी झील से, नयना गोलमटोल |
लख मृगनयनी मोहिनी, तन मन जाता डोल||
हँसकर के संकेत से,अपने पास बुलाय|
कहती है मुझको मधुर, मंद मंद मुस्काय||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस 😀
[4/7, 00:06] Dr. Rahul Shukla: *तारे चमके रात में, प्रीत बढ़े चहुँ ओर|*
*मधुर भावना नेह से, सरस बने चितचोर||*
डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
[4/7, 00:06] Dr. Rahul Shukla: *भावना*
(चौपाई )
आप भावना रखना ऐसी।
प्रभु दीवानी मीरा जैसी।।
रोम रोम बस नाम पुकारे।
आयेंगे वो द्वार हमारे।।
हँसकर पीया विष का प्याला।
मन में फेर रही थी माला।।
जोगन लगती प्रेम में रानी।
दुनिया जाने यही कहानी।।
रेनू सिंह
[4/7, 00:06] Dr. Rahul Shukla: संशोधित
*मुक्तक*
शुद्ध रहे यदि भावना बढ़े प्रेम व्यवहार।
स्नेहिल उर चाहता नहीं कभी मनुहार।
मधुर मधुर बातें करो तज स्वारथ की बात,
सत्य वचन यह मान लो हो सुंदर संसार।।
कौशल कुमार पाण्डेय "आस"
बीसलपुर(पीलीभीत)
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