मुक्तक

मुक्तक ~ 1222 × 4
               तृष्णा

मिटा दो मन कि तृष्णा को, मुझे राधा नजर आए|
सुनोगे बात दिल की तुम, कभी बाधा न छू पाए|
मिलेगी  चाहतें  तेरी सुखी  सौगात बन  करके|
मिले जो प्रेम रसधारा, मिरा जीवन सँवर जाएँ|

©  डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

   करुणा
1222*4

बिछड़के यूँ मिरा दिलबर चला जब दूर जाता है|

तड़पता छोड़ जाता और हो मजबूर जाता है||

दिलों से फिर वही करुणा निकलती आग बनकरके|

कहूँ क्या हाल मैं दिल का लिए वो नूर जाता है||

         🌷साहिल😟

          संयोग
       1222×4

कहूँ क्या हाल इस दिल का मुझे तो रोग लगता है|
वही नाता  पुराना  सा  सही  ये योग  लगता  है|
धड़कती  धड़कने  मेरी  वही  तारा दिखाती हैं|
यही रब़ का  गजब़ देखो मुझे संयोग लगता है|

© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

               झील
       मुक्तक १२२२×४

पता भी ना चला मुझको दिवाना जग कहे सारा|
निगाहों में बसी हरपल मुहब्बत की हँसी धारा|
लहर झीलों कि देती है सुहानी शाम को दस्तक|
उसी साहिल सहारे पे  चमकता सा दिखे तारा|

© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

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