◆रंगी छंद◆
विधान-रगण गुरु ( 212 2 )
खोल तारा|
भेद सारा||
बोल भी दो|
मोल भी दो||
प्रेम मेरा|
है सवेरा||
ओज भी दो|
खोज भी दो||
रात न्यारी|
बात प्यारी||
बोल भी दो|
तोल भी दो||
संग गाओ|
संग खाओ||
मीत तू है|
प्रीत तू है||
साधना दो|
धारणा दो||
भावना दो|
कामना दो||
कामिनी तू|
दामिनी तू||
यामिनी तू|
भामिनी तू||
जीत है तू|
गीत है तू||
धन्य है तू|
दिव्य है तू||
मालिनी तू|
शालिनी तू||
धामिनी तू|
गामिनी तू||
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
◆रंगी छंद◆
विधान-रगण गुरु ( 212 2 )
भाग्य मेरा
खेल तेरा
हे विधाता
प्राण दाता
है बनाना
साथ खाना
देख लेना
तू जमाना
प्राण मेरे
संग है रे
झूमती हूँ
चूमती हूँ
फूल बेला
है अकेला
देखता है
सोचता है
है कराली
देख काली
कामिनी ये
भामिनी ये
ज्ञान में हो
मान में हो
भामिनी जो
मानिनी जो
मोहिता हो
लोहिता हो
यौवना का
अंगना का
म्यान सी हो
ब्यान सी हो
खोरनी सी
मोरनी सी
बोल ऐसी
प्रेम जैसी
कंठ डाले
फूल माले
गगन उपाध्याय"नैना"
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