फल
सुख - दुख इच्छाओं, अपेक्षाओं, शारीरिक आकर्षण, महत्वाकांक्षाओं और भौतिक सुखों की पूर्ति हो जाना ही संसार में मनुष्य के लिए सुख का प्रतीक है ।इनके अभाव में मनुष्य अपने आप को दुखी समझता है|
महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति न हो तो तो मनुष्य अपने आप को भाग्यहीन एवं दुखी समझता है। सांसारिक जीवन और सुखों की कतार और लगातर क्रम भी मनुष्य को आत्मिक सुख की अनुभूति नहीं करा सकता| सुख और दुख मनुष्य जीवन में दिन और रात की तरह है, बदलते मौसम की तरह है , दुख के बाद सुख जरूर आता है और सुख भी बड़े से बड़े धनवान के पास आजीवन नही रहता| इसीलिए पारिवारिक और सांसारिक दुखों से हम जिस हद तक संघर्ष कर सकें उतना ही करें उससे अधिक लम्बे समय तक किसी भी प्रकार का दुख हमें परेशान नहीं कर सकता या फिर उसके पीछे भी ईश्वर की कोई सतयुक्ति हो सकती है| आध्यात्मिक और आत्मिक शांति ,उन्नति और आनन्द ही परम सुख फल है। पुण्य कर्मों और सेवाभाव का फल सर्वोपरि है|
भक्ति के फल में जो आनंद है वह किसी फल में नहीं, संतोष का फल परमसुख है, शांति का फल परम आनंद है, भक्ति एवं ईश्वर की भजन का फल परमात्मा है, ब्रह्म है|
इसीलिए सुख-दुख को भूल कर ईश्वर की परम भक्ति का आनंद लें, ईश्वर की भक्ति का फल परमानंद है, परम सुख है, परम परमसुख है, परम ब्रह्म है,
सत्यम परम धीमहि|
सत्यम परम धीमहि|
सत्यं प्रियं धीमहि|
सत्यं प्रियं धीमहि|
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
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