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कन्या भ्रूण हत्या/ महिला शोषण !

बिन प्रकृति के इन्सान की कल्पना,
तो ऐसी है जैसे बिन पानी की नदियाँ,
बिन सूरज के ताप, बिन पौधों की हवायें,
पुंकेसर के परागकण बनायें कलियाँ,
कलियाँ पूछती सवाल एक बढ़िया ,
फूल बनकर सुन्दरता हम फैलाते,
खुद खिलकर सबको हँसना सिखाते,
किसने हक दिया उन बेदर्दो को,
मैं कली हूँ तो क्या,
फूल बनने का हक नही मुझे,
बेवजह बिन कारण तोड़ेगा मुझे,
खिलता देख उस माँ से अलग करेगा मुझे,
जिन टहनियों में मुझे जन्म मिला,
पूरी होती हर तमन्ना,
अब शुरू होता जीवन ही खत्म हो जायेगा,
कैसे बनेगी कली फिर फूल ,
फूल कैसे देगा दुनिया को फल,
जब समाप्त होगा पहले ही जीवन,
मेरे लिए क्या कोई नही ईश्वर,
क्यूँ नही मिलती उनको सजा,
जो खिलने से पहले ही करते हमें जुदा,
सब जीवों में शक्ति होती एक समान,
फिर क्यूँ इंसाफ होते असमान,
कलियों के जैसे समाज में अत्याचार,
बिन नारी के कैसा संसार,
फिर क्यूँ होता अत्कार,
कलियाँ है पूछती प्रश्न हजार,
पुरूषों के समाज में क्यूँ होता बलात्कार,
बढ़ते अत्याचार, और भद्दा व्यवहार ,
कन्या भ्रूण हत्या कलियों की चीत्कार,
गूंजती दहेज बलि की,करूण पुकार,
प्रतिष्ठित समाज में महिला की नकार,
बहू विवाह प्रथा प्रदर्शित महिला की दुत्कार,
कलियाँ पूछती सवाल एक बढ़िया,
बिन कलियों के फूल की उम्मीद ?
बिन प्रकृति के संसार की कल्पना ?
बिन नारी के समाजिक परिकल्पना ?


डाॅ राहुल शुक्ल (साहिल)
29/04/2016

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