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मैं किसान का बेटा हूँ !

प्रथम कार्यवाहक समाज का ,
धरती माँ का बेटा हूँ ,
खेत जोतकर बीज लगाता ,
सब अनाज उपजाता हूँ ।
ज्येष्ठ आषाढ़ की तपत दुपहरी ,
पूष माघ की जाड़ा में ,
घुसकर खेतों में करूँ रोपाई ,
फसलें सभी लगाता हूँ।
पकी फसल की मण्डी में ,
बोली जब लगवाता हूँ ,
खून  पसीना बन कर जैसे ,
मेरे शरीर से बहता है।
भू रूठी आकाश भी रूठा ,
सरकार का दाम है झूठा ,
सब वस्तु का दाम है निश्चित ,
उपज किसानी दाम अनिश्चित।
सौतेला व्यवहार समाज का ,
मुझे समझ में आता है ,
मरता जब किसान है आँसू ,
झूठे कोई न दिखाता है।
बड़े नसीब से जिनको मिलती ,
दो वक्त की रोटी है ,
वही समझते किसानों की ,
गुरबत कितनी होती है।
मौसम की मार झेलता ,
मँहगाई का लेखा हूँ ,
अपने बेटों का भाव लगाते ,
नौकर शाहों को देखा हूँ।
कृषि उपज से पेट है भरता ,
अन्न देव का बेटा हूँ ,
देश की सच्ची नींव बनाते
मैं किसान का बेटा हूँ।
प्रथम कार्यवाहक समाज का ,
मैं किसान का बेटा हूँ ,
              
                            डाॅ• राहुल शुक्ल

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