कुसुमसमुदिता छंद
विधान~
[ भगण नगण नगण गुरु]
(211 111 111 2)
10वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]
मंथन तन मन धन का।
वंदन जन भल दल का।।
संगम अगम अचल हो।
जीवन सृजन सफल हो।।
प्रात रजस शुभ करनी।
रात तमस दुख हरनी।।
नेह नमन चमन मिलें।
मंगलमय सुमन खिलें।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
अभिव्यक्ति
मुँह से निकले पहले बोल,
जिव्हा से निकले पहले बोल,
भाषा होती है, मन से निकले
बोल प्रेम की भाषा होती है।
हृदय से निकले उद्गार नेह की भाषा होती है, भाषा से निकले जो बोल समझ में आते हैं, वो सुन्दर सकल स्नेह की अभिव्यक्ति होती है।
हृदय के सकारात्मक भाव,
मन के अंतस पटल सद् भाव,
बोलने की लिखने की प्रदर्शित करने की, जताने की, बताने की, मन को प्रफुल्लित खुश कर जाने की लेखनी को बोली को अभिव्यक्ति कहते हैं।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
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