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Showing posts from July, 2016

प्रेम !

27/07/2016  प्रेम जानने की इच्छा जिज्ञासा जिज्ञासा से होवे पहचान  पहचान पूर्वकम ज्ञान  ज्ञान से बनी रीति  बिन जाने होये न परतीति  बिन परतीति होये न प्रीति  प्रीति बिना न आवै भाव  भाव बिना न होवे लगाव  लगाव से होवे प्रेम  प्रेम बिना जीवन संग्राम  जीवन पार लगाये प्रेम  प्रेम बितावै जीवन  जीवन सुखदुख का पहिया  न हर्ष करो न द्वेष  आनन्द रहो  जब मन से न होवै काहू से बैर  सुख मिलत है प्रेम में  परमसुख है प्रेम ।।  - डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

महाराणा प्रताप !

।।महाराणा प्रताप स्तोत्र।। महाराणा श्रीरामपुत्रलववंशजे पन्द्रहसौचालीसईशवी है जन्मे सिसौदियाराजवंशपितृउदयसिंह मातारानीजीवतकँवर चितौड़राजशेखरे मृदापवित्रस्थले चेतक हेतक ताण्डवम प्रतापनाम मुगल हिले अष्टादशकिलोम भाल संग तलवार लम्बसुशोभिताम पृथ्वीराजपत्रम पठन तू मुगलशासन से लड़े तलवारभालचेतके प्रतापचन्द्रन झुके कीकानाम नझुके मुगलशासन सेनझुके स्वाभिमान से भरे हल्दीघाटी में लड़े अरावलीपर्वतशिखरते जने गुरू जैमलमेड़तियासे शस्त्रास्त्र है सीखे चितौड़पुत्रहै जने धरापरवीर ऐसे न जने प्रताप ईश है शिवम नमामि भोलेशंकरम इतिमहाराणाप्रताप स्त्रोतसमाप्तम।।        --   डाॅ• राहुल शुक्ल 'साहिल'

तम्बाकू सेवन से मुक्ति !

                                         ○ नशामुक्ति ○                कूड़े के ढ़ेर से निकाला हुआ भोजन किसी को दिया जाये तो क्या वो खायेगा? एक ऐसा खाद्य पदार्थ जिसे खाने से तिल तिल करके मन व तन खराब होता है। पाचन शक्ति क्षीण होकर 10 वर्ष से कम में ही पूरा शरीर सूख कर खराब हो जाता है । शरीर में तमस, क्रोध, चिड़चिड़ापन, अरूचि, उन्माद, भ्रम, अवसाद, भूख की कमी, प्यास की कमी पैदा करने वाला  सभी का सर्व प्रिय खाद्य पदार्थ कौन सा है ? प्रकृति के उपहारों में उपलब्ध सबसे निकृष्ट और जहरीला पदार्थ या पौधा कौन सा है ? जो शरीर, मन और धन को थोड़ा थोड़ा करके खत्म करता है । ऐसा खाद्य पदार्थ जिसकी कैद में समाज के  80% से ज्यादा लोग है । जिनको इस महा जहर ने कई पीढ़ियों से जकड़ रखा है, शरीर और मन को कब्जे में कर रखा है ।गिरफ्त से  निकलना हिमालय की चढ़ाई चढ़ना जितना दुष्कर है । आश्चर्य तो यह है कि पुरुष और महिला दोनों का जीवन फँसा है इस व्यसन में। सारे सवालों का जवाब या वह खाद्य पदार्थ तम्बाकू है जो एक जंगली पौधे के बीज, पत्तियों एवं तनों से तैयार किया जाता है। इस पौधे का वैज्ञानिक नाम लोबेलिया इन्फ्

प्रेम रस !

जीना आसान हो गया ,   जब से तुने जीना सीखा  दिया,   सूने भावों में जब से तूने,  मोहब्बत जगा दिया,   अब तो दुखों का एहसास नही होता,   प्रेमरस जब से तूने पिला दिया। साहिल 

सुख - दुख !

18/05/2016           सुख - दुख इच्छाओं, अपेक्षाओं, शारीरिक आकर्षण, महत्वाकांक्षाओं और भौतिक सुखों की पूर्ति  हो जाना ही संसार में मनुष्य के लिए सुख का प्रतीक है ।इनके अभाव में मनुष्य अपने आप को दुखी समझता है । महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति न हो तो तो मनुष्य अपने आप को भाग्यहीन एवं दुखी समझता है । सांसारिक जीवन और सुखों की कतार और लगातर क्रम भी मनुष्य को आत्मिक सुख की अनुभूति नहीं करा सकता । सुख और दुख मनुष्य जीवन में दिन और रात की तरह है, बदलते मौसम की तरह है , दुख के बाद सुख जरूर आता है और सुख भी बड़े से बड़े धनवान के पास आजीवन नही रहता। इसीलिए पारिवारिक और सांसारिक दुखों से हम जिस हद तक संघर्ष कर सकें उतना ही करें उससे अधिक लम्बे समय तक किसी भी प्रकार का दुख हमें परेशान नहीं कर सकता या फिर उसके पीछे भी ईश्वर की कोई सतयुक्ति हो सकती है । आध्यात्मिक और आत्मिक शांति ,उन्नति और आनन्द ही परम सुख की नींव है । धन मोह माया लोभ, चिन्ता निराशा क्षोभ, दुख  के  मूल  कारण, क्रोध जलन का विक्षोभ । सन्तोष सबसे बड़ा सुख है, प्रेम सबसे बड़ा सुख है, आत्म ज्ञान की सुख प्राप्ति, आनन्द ही पर

गुरू !

19/07/2016                卐 गुरू 卐 अभाष्य से भाष्य, अरूचि से रूचि, रुचि से सुरूचि, सुरूचि से साकार, साकार से स्वर्ग, लौकिक से अलौकिक, भौतिक से अभौतिक, लोक से  परलोक, कायिक से आत्मिक, दैहिक से दैविक, आसक्ति से आनन्द, आनन्द से भक्ति, भक्ति से शक्ति, शक्ति से शिव, शिव से सत्यम, सत्यम से सुन्दरम, सुन्दरम से सम्पन्न, सम्पन्न से समृद्ध, रोग से निरोग, भोग से योग, योग से जोग, जोग से भक्ति, भक्ति से पुरूषार्थ, पुरूषार्थ से परमार्थ, परमार्थ से परमतत्व, परमतत्व से परमात्मा, लोक से  परलोक, परलोक से देवलोक, सब दिखाता और, समझाता जो है, वो केवल गुरू है, सब भाषा जो, समझाता वो गुरु है।                                                      - डाॅ• राहुल शुक्ल

Love Fever !

21/07/2016  ♡ प्यार का बुखार ♡  अब तो किसी का अच्छा ,  न लगता व्यवहार ,  जब से लगा है ,  प्यार का बुखार ,  धड़कन बढ़ जाती है ,  बढ़ता शरीर का ताप ,  किस मापन से नांपू ,  अपने मन का हाल ,  थर थर कांपती है ,  कुछ कहने से जबान ,  बोलने से होती है ,  आंखें हमारी लाल ,  किस वैद्य को लाऊँ ,  किसको बताऊ हाल ,  नींद नहीं आती है ,  जब से चढ़ा है ,  प्यार का बुखार ,  भूख भूल कर ,  पीता हूँ अब ,  उनकी आँखों का नीर ,  सब कष्टों से मुक्ति मिले ,  वो समझे दिल की पीर ,  दीदार मिलें उनका ही ,  कर सकू मैं इजहार ,  गोली मिलें स्वीकार की ,  तब उतरे प्यार का बुखार।।  - साहिल

Love Fever !

Indian Army !

भारतीय सेना को समर्पित, 19/07/2016                             भारतीय सेना                                          एकता और  प्रणबद्ध रक्षा, देते सेनानी देश को सुरक्षा, जल थल वायु की अनीकनी अति  विशिष्ट  है भारत में। शरीर बल हथियार बल, भरपूर  तकनीकी संबल, तोप टैंक और मिसाइल, अति विशिष्ट है भारत में। पेट भी भरा घर है बना, नींद हमें है आती क्योंकि देश की  सीमाओं  पर, भारतीय सैनिक है खड़ा। टक्कर हम लें सकते हैं, गद्दार ढेर कर सकते हैं, सरकार यदि साथ दें तो, हर दुश्मन को मार सकते हैं।                               -  डाॅ • राहुल शुक्ल  

रो पड़ता है दिल मेरा !

रो पड़ता है दिल मेरा, जब देखता हूँ किसी परेशान को, भूख से तड़पते इन्सान को, टूटते गिरते हुए मकान को, जब देखता हूँ नशे में डूबे जवान को, बेरोजगार हैरान को, आत्म हत्या करते मरते हुए किसान को। रो पड़ता है दिल मेरा जब देखता हूँ मैं, राजनीति के मैदान को, आपस में लड़ते हिन्दू मुसलमान को,  तीर पर चढ़ी कमान को, आंतक से सहमें हिन्दूस्तान को। रो पड़ता है दिल मेरा, जब देखता हूँ लूटते नारी के सम्मान को, देखता हूँ देश के अपमान को, नेताओं के मकान को। रो पड़ता है दिल मेरा जब देखता हूँ, भूख से मरते इन्सान को, निर्दोषों की शमसान को, मिट्टी में मिलते फौजियों की शान को, भ्रूण में ही मरती, नन्ही सी जान को।                    ○ प्रेम पथ ○ मुहब्बत मान जाती  है,  अगर दिल सुरागी हो, प्यार में संगीत बजता है,  अगर सुर हमारे रागी हो, मुश्किल लाख आती है मोहब्बत पर, जमाना मान जाता है, अगर प्रेम पथ बैरागी हो।              साहिल

प्यार व दायित्व !

रचना -  1 16/07/2016                                           सत्य की कसौटी में जो कसा हो, उसे विचार कहते हैं। प्यार की डोर में जो बंधा हो, उसे परिवार कहते हैं। भावों से जो सजा हो, उसे जीवन का सार कहते हैं। अपेक्षाओं से जो भरा हो, उसे संसार कहते है। हर राह पर जो चला हो, उसे जानकार कहते है। बोध हर दायित्व का जो किया हो, उसे जिम्मेदार कहते है। विश्वास हर रिश्ते में जो किया हो, उसे एतबार कहते है। एहसास हर लम्हे का जो किया हो, उसे  प्यार  कहते है। सच्ची मेहनत जो किया हो, उसे साकार कहते है। मोहब्बत से दिल जो भरा हो, उसे प्यार कहते है। - डाॅ राहुल शुक्ल  ' साहिल'

कलियाँ !

काश कलियों को हम फूल बनते देख पाते,  उन फूलों को हम प्रिये की सूरत पर सजाते, सागर सी सुन्दर आँखों में डूब जाते, वो तो अनजानी आँखों का अदब है, वरना हम कब के इन आँखों में खो जाते, ऐसा लगता क्यूं है उनको देखने से एक बार, गम सारे खुशियों में बदल गये होते, कलियों को हम उनकी सूरत बनाते। सागर सी सुन्दर आँखों में डूब जाते । डाॅ• राहुल शुक्ल (साहिल)

प्यार झुकता नही !

बेदर्दों की दुनिया में लाख मुश्किलें आयें फिर भी सच्चा प्यार झुकता नहीं रोके से रूकता नहीं टोके से घटता नही मिठाई की मिठास दिल की दवा पेट की भूख इंसा की इंसानियत मुरब्बत की मोहब्बत सा सच्चा प्यार मिलता नही जीवन में भर दें जो मीत की मिठास करा दे सच्चे प्यार का एहसास प्रेम ऐसा सबको मिलता नहीं। गीत दिल में संगीत बने रीत जग की कुछ भी चलें सच्चा प्यार कभी झुकता नहीं। लाख मुश्किलें आयें फिर भी सच्चा प्यार झुकता नहीं डाॅ• राहुल शुक्ल [7:00PM, 7/8/2016]

कन्या भ्रूण हत्या/ महिला शोषण !

बिन प्रकृति के इन्सान की कल्पना, तो ऐसी है जैसे बिन पानी की नदियाँ, बिन सूरज के ताप, बिन पौधों की हवायें, पुंकेसर के परागकण बनायें कलियाँ, कलियाँ पूछती सवाल एक बढ़िया , फूल बनकर सुन्दरता हम फैलाते, खुद खिलकर सबको हँसना सिखाते, किसने हक दिया उन बेदर्दो को, मैं कली हूँ तो क्या, फूल बनने का हक नही मुझे, बेवजह बिन कारण तोड़ेगा मुझे, खिलता देख उस माँ से अलग करेगा मुझे, जिन टहनियों में मुझे जन्म मिला, पूरी होती हर तमन्ना, अब शुरू होता जीवन ही खत्म हो जायेगा, कैसे बनेगी कली फिर फूल , फूल कैसे देगा दुनिया को फल, जब समाप्त होगा पहले ही जीवन, मेरे लिए क्या कोई नही ईश्वर, क्यूँ नही मिलती उनको सजा, जो खिलने से पहले ही करते हमें जुदा, सब जीवों में शक्ति होती एक समान, फिर क्यूँ इंसाफ होते असमान, कलियों के जैसे समाज में अत्याचार, बिन नारी के कैसा संसार, फिर क्यूँ होता अत्कार, कलियाँ है पूछती प्रश्न हजार, पुरूषों के समाज में क्यूँ होता बलात्कार, बढ़ते अत्याचार, और भद्दा व्यवहार , कन्या भ्रूण हत्या कलियों की चीत्कार, गूंजती दहेज बलि की,करूण पुकार, प्रतिष्ठित समाज में महि

किस्मत / भाग्य !

कलयुग के जीवन में, सुख दुख की कहानी, लोग समझे इसको, किस्मत की रवानी, लोगों से आशायें, जीवन से अपेक्षायें, छोटी छोटी आशा, मिल जायें मनमाफ़िक, तो अच्छी किस्मतवाला, न मिलें मन का तो, बुरी किस्मतवाला, बदली इंसा ने, किस्मत की परिभाषा, कर्म में समाहित , भाग्य की आशा, ईश्वर पर विश्वास, लगन के साथ, सच्चा परिश्रम ही, कर्म की परिभाषा, कर्मो से बनती, किस्मत सुहानी, मुसीबत से न डरें, तो जीवन अभिमानी, जनहित हो सब काम , कौशल से भरपूर, मिलें सुखों का धाम, कर्म का कौशल ही, योग कहलाये, गीता में बतलाये, योग से हमें , परमात्मा मिल जाये, सच्चा हो काम, दुख से न डरें, मन में हो विश्वास, तो किस्मत भी बदलें, चित्रगुप्त मन में, अंकित सब हिसाब, कर्मों का जोखा लेखा, शुभ कर्म ही बनायें, किस्मत की रेखा, कर्मो से बदल जायें, भौतिक सुखों को, समझे न किस्मत, शिखर पर पहुँचें, साहिल पर कदम, छूँ लें आसमान , मिलें आपके, स्वर्ग पर निशान, बनें हम सब का, जीवन आसान ।।                                 साहिल

पहला प्यार !

रोके न कोई , टोके न कोई , दर्शन है पहली बार , शक्ति है सोई , होने दो दिव्य दर्शन , मन में भाव मर्दन , रोम रोम रोमांचित , देह करें नर्तन , मिटने दो मर्यादा , आत्मा का वादा , होने दो पहचान , मिलन का इरादा , शिव कान्ति संसार , निकलेगी बयार , स्वर्ग की डगर सा , मिलता पहला प्यार , ईश्वर की समझ , होता पहला प्यार ।                   डाॅ . राहुल शुक्ल                    04/05/2016

मैं किसान का बेटा हूँ !

प्रथम कार्यवाहक समाज का , धरती माँ का बेटा हूँ , खेत जोतकर बीज लगाता , सब अनाज उपजाता हूँ । ज्येष्ठ आषाढ़ की तपत दुपहरी , पूष माघ की जाड़ा में , घुसकर खेतों में करूँ रोपाई , फसलें सभी लगाता हूँ। पकी फसल की मण्डी में , बोली जब लगवाता हूँ , खून  पसीना बन कर जैसे , मेरे शरीर से बहता है। भू रूठी आकाश भी रूठा , सरकार का दाम है झूठा , सब वस्तु का दाम है निश्चित , उपज किसानी दाम अनिश्चित। सौतेला व्यवहार समाज का , मुझे समझ में आता है , मरता जब किसान है आँसू , झूठे कोई न दिखाता है। बड़े नसीब से जिनको मिलती , दो वक्त की रोटी है , वही समझते किसानों की , गुरबत कितनी होती है। मौसम की मार झेलता , मँहगाई का लेखा हूँ , अपने बेटों का भाव लगाते , नौकर शाहों को देखा हूँ। कृषि उपज से पेट है भरता , अन्न देव का बेटा हूँ , देश की सच्ची नींव बनाते मैं किसान का बेटा हूँ। प्रथम कार्यवाहक समाज का , मैं किसान का बेटा हूँ ,                                            डाॅ• राहुल शुक्ल