संजीवनी वेलफेयर सोसायटी के स्नेहिल साथियों के स्वभावानुसार दोहा लेखन

*ऋषि~*
बेताबी सह ना सकूँ, मीत तके है नैन|
सौ बिमारी घेर रही, तन मन है बेचैन||

*गिरीश~*
देश प्रेम की भावना, भजते निशदिन ईश|
हमसफर नही चाहिए, मन में बसे गिरीश||

*डॉ० विशाल~*
खाने के शौकीन हैं, मन के है गम्भीर|
बहुत दिनों में ही मिले, देखो विकट शरीर||

*डॉ० द्विवेदी~*
दवा दुआ भण्डार है, अतुल ज्ञान के वीर|
सबके दिल में है बसे, बाबा है गम्भीर||

*श्रवण शुक्ल~*
तन का भार बढ़ाइए, मन हो निश्चल नीर|
गलत काज ना सह सके, कहकर मारे तीर||

*मिथलेश~*
दवा दुआ दारू मिलै, जीवन है संग्राम|
समय पे अपना काम करो, कह गय हैं श्री राम||

*सतीश~*
दुनिया लगती गोल है, साहब जी के बोल|
आँख नशीली कह रही , शिव भक्ति अनमोल||

*तनुज~*
कम्प्यूटर सा तेज है, तन मन जिसका वीर|
मोबाइल पे नाचता, देखो मनुज शरीर ||

   *डॉ० पीयूष~*
लम्बे चौड़े हो गये, बचपन माँगै रोज|
सब के प्यारे मित्र हैं, सदा निरखते भोज||

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