छंद दुर्मिल सवैया
सगण(112*8)
तुमसे मन छंद अमंद मिला,
तिहुँ लोक सदैव प्रताप रहे|
तुम जीत गये हम हार गये,
हँसके हम तो चुपचाप रहे|
मन मान समान नहीं कुछ भी,
सब अन्दर अन्दर नाप रहे|
तन की मन की गति जीवन की,
सुखधाम धरा मम आप रहे|
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
सगण(112*8)
तुमसे मन छंद अमंद मिला,
तिहुँ लोक सदैव प्रताप रहे|
तुम जीत गये हम हार गये,
हँसके हम तो चुपचाप रहे|
मन मान समान नहीं कुछ भी,
सब अन्दर अन्दर नाप रहे|
तन की मन की गति जीवन की,
सुखधाम धरा मम आप रहे|
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
Comments
Post a Comment