दुर्मिल सवैया छन्द (सरस)

छंद दुर्मिल सवैया
सगण(112*8)

तुमसे मन छंद अमंद मिला,
तिहुँ लोक सदैव प्रताप रहे|

तुम जीत गये हम हार गये,
हँसके हम तो चुपचाप रहे|

मन मान समान नहीं कुछ भी,
सब  अन्दर  अन्दर नाप रहे|

तन की मन की गति जीवन की,
सुखधाम  धरा  मम  आप  रहे|

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दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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