अथध्यानम् शान्ताकारं भुजगशयनम् पद्मनाभं सुरेशं। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाग्ङम्।। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं। वन्दे विष्ण...
जितना भी चाहता हूं, सब मिल ही जाता है, अब दुख किस बात का ॽ
जितना भी चाहता हूं, सब मिल ही जाता है, अब दुख किस बात का ॽ