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Showing posts from January, 2017

परिचय

              अथध्यानम् शान्ताकारं भुजगशयनम् पद्मनाभं सुरेशं। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाग्ङम्।। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं। वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।। भावार्थ जिनकी आकृति अतिशय शान्त है, शेषनाग की शय्या पर करते है शयन जो, जिनकी नाभि में कमल विद्यमान है, जो देवों के ईश्वर जगत के आधार है, जो आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त है, नील मेघ के समान जिनका वर्ण है, अति सुंदर जिनके सम्पूर्ण अंग है, जो योगियों द्वारा ध्यान से प्राप्त होते हैं, जो सम्पूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म मरण भय को हरने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान, श्री विष्णु का हम शत शत नमन करते हैं। 🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻🌷🙏🏻 सबसे बड़े गुरु संसार को चलाने वाले समस्त संसार में उपस्थित सभी जीवों व प्रकृति का प्रबन्धन  देखने वाले देव श्री हरि विष्णु के समान हमें जीवन को बनाने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार वह समस्त दूख संताप कष्ट परेशानियों रोग व्याधियों आदि को देखते हुए भी शान्त रहते है, शान्ति धारण किये रहते है उसी प्रकार हमें भी विभिन्न विपरीत परिस्थितियों में भी  

मलयज छन्द

     विधा  ◆मलयज छंद◆ शिल्प- 8 लघु प्रति चरण          चार चरण समतुकांत। सजर सवर नर ।         झटपट चल घर।। हरदम दम भर। तन मन भल कर।  अचल अटल बल। नमन सकल भल।। मत कर हलचल। बनत करम फल।।  दमन शमन थम। हट अब मन तम।। भजन मगन नम। सफल यजन मम।।      डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

वन्दना शिव शंकर

विषय ▪ इष्ट देव महादेव को समर्पित वन्दना रचियता ▪ डाॅ• राहुल शुक्ल'साहिल' मन में विचार उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं, वाणी में वचन उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं, इन्द्रियों में संयम उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं, श्रम में कर्म उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं।        जीवों के  देव  की वन्दना हम करते हैं , असुरों के देव की वन्दना हम करते हैं , मानव के देव की वन्दना हम करते हैं , देवों  के  देव  की वन्दना हम करते हैं । समय के देव की वन्दना हम करते हैं , प्रेम के  देव की वन्दना हम करते हैं , कलियुग के देव की वन्दना हम करते हैं , हर युग के देव की वन्दना हम करते हैं ।  सत्य  के  देवता की वन्दना हम करते हैं सौन्दर्य के  देवता की वन्दना हम करते हैं ,   शान्ति  के  देवता की वन्दना हम करते हैं ,  गणों   के  देवता की वन्दना हम करते हैं । विघ्नहर्ता की  वन्दना हम करते हैं , जगतकर्ता की वन्दना हम करते हैं , मंगलकर्ता की वन्दना हम

साहित्य संगम

       संगम की पुकार भागदौड़ भरी आपाधापी की जिन्दगी में लोगों के पास अपनी सेहत और अपनों की सेहत को रोगहीन रखना भी बड़ा दुष्कर हो गया है। आये दिन शारिरिक मानसिक रोगों एवं विकृतियों की संख्या बढ़ती जा रही है। हमें अपनी जीविका के लिए भागते भागते ही पूरा समय खर्च हो जा रहा है। इन सबके बीच बहुत से प्रतिभाशाली युवा व प्रौढ़ लोग अपने रूचिकर कार्यो के लिए या तो समय नही निकाल पाते या फिर कौशल और प्रतिभाओं का दहन होता है। कुछ स्वशाषी वित्तविहीन संस्थानों ने सूचना प्रौद्यौगिकी के सहयोग से साहित्य कला व विज्ञान के क्षेत्र में कदम बढ़ाया। बहुत से वैज्ञानिक शोधों और यंत्र यांत्रिकी सुख सुविधायों से मनुष्य का जीवन भर गया सराबोर हो गया। फिर भी मानसिक पटल विचलित है, कुरितियाँ व्याप्त है, शुद्ध विचार लुप्त है, अनाचार आप्त है, दुष्प्रवृत्ति प्लावित है। जरुरत है वैचारिक क्रान्ति की, आपसी सामन्जस्य की, समाकलित एकता की, जरूरत है अनुशासित जीवन की, सुपोषित सेहत पूर्ण जीवन की,जरुरत है सुन्दर तन, मन, समाजिक विचार और आत्मा की शुद्धि की।          इतने वैज्ञानिक विकास, सामाजिक विकास और राजनैतिक विकास के ब

वन्दना

[ इष्ट देव महादेव को समर्पित वन्दना रचियता ▪ डाॅ• राहुल शुक्ल'साहिल' मन में विचार उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं, वाणी में वचन उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं, इन्द्रियों में संयम उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं, श्रम में कर्म उत्पन्न करने वाले की वन्दना हम करते हैं, •••••वन्दना हम करते हैं।        जीवों के  देव  की वन्दना हम करते हैं , असुरों के देव की वन्दना हम करते हैं , मानव के देव की वन्दना हम करते हैं , देवों  के  देव  की वन्दना हम करते हैं ।  समय के देव की वन्दना हम करते हैं , प्रेम के  देव की वन्दना हम करते हैं , कलियुग के देव की वन्दना हम करते हैं , हर युग के देव की वन्दना हम करते हैं ।   सत्य  के  देवता की वन्दना हम करते हैं सौन्दर्य के  देवता की वन्दना हम करते हैं ,   शान्ति  के  देवता की वन्दना हम करते हैं ,  गणों   के  देवता की वन्दना हम करते हैं । विघ्नहर्ता की  वन्दना हम करते हैं , जगतकर्ता की वन्दना हम करते हैं , मंगलकर्ता की वन्दना हम करत

शपथ पत्र

           साहित्य-संगम            पावका नः सरस्वती           शपथ-पत्र मैं  ........................ *ईश्वर* को साक्षी मानकर शपथ लेता हूँ कि ♢ साहित्य-संगम के हित के लिए मन वचन धर्म से क्रियाशील रहते हुए सुन्दर सकारात्मक जन हितकारी गद्य व पद्य का सृजन करूँगा/ करूँगी। ♢ पूरी निष्ठा व लगन के साथ सभी से सामञ्जस्य रखते हुए संगठन के सभी कार्यों एवं पद व दायित्वों को पूरा करने का पूर्ण प्रयास करूँगा/ करूँगी। ♢ संगठन के नियम अनुशासन व उद्देश्य की पूर्ति हेतु कार्य एवं अनुकरण का पूर्ण प्रयत्न करूँगा/ करूँगी। ♢ किसी भी शारीरिक मानसिक व सामाजिक मानसिकता सोच व व्यक्तिगत दबाव का प्रभाव संगठन के कार्यकलाप पर नही पड़ने दूँगा/ दूँगी या किसी परेशानी की स्थिति में पूर्व सूचित कर दूँगा/ दूँगी। ♢ सर्वहित संगठन हित में ही कार्य करूँगा/ करूँगी एवं मेरे किसी कार्य में कोई कमी पाये जाने पर या कार्य, गरिमा के विपरीत पाये जाने पर कमी को स्वीकार करके संगठन के कार्यो में बाधा न बनते हुए सहयोग करूँगा/ करूँगी। ♢ समस्त स्रोत एवं साधनों से संगठन व साहित्य हित की साधना को सर्वोपरि मानकर अपना समय श्रम व अंश

उत्थान/ विकास/प्रगति

        प्रगति/विकास/उत्थान हार जीत की न बात, राह पे बढ़ो प्रभात, देश की पुकार शान, भारती  युवान हो। वान का बढ़े स्वमान, शान की चढ़े कमान, रात का न अंधकार, धूप से डरो नही। जीत का किशोर जान, राह का न हो गुमान, धीर हो निश्चय भान, जीत हो विकास हो। बाप का सम्मान जान, मात को जहान मान, देश का करो विकास, नाम हो पराग हो। शारदे महान साथ, कर्म से करो सनाथ, रात हो य हो प्रभात, जीत हो विकास हो। वाहिनी मराल रंग, राम दूत रूद्र संग, जीत लें जहान जंग, गान हो युवान हो। शेर साहसी युवान, वात सी विशाल चाल, आस है मशाल भाल, तान हो जवान हो। राह भू उत्थान जान दान पुण्य होय आन वेद हो पुराण होय जीत हो विकास हो।          डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल            अनमोल पल माँ का आँचल प्यारा था, पिता का हस्त सहारा था, जीवन के अनमोल वो पल, बचपन बड़ा ही न्यारा था। जब पहला कदम बढ़ाया था, जब कलम हाथ में पकड़ा था, था वो जीवन पल अनमोल, जब प्रथम शब्द में बोला था। जब पहला निवाला खाया था, जब भाई ने मुझे सिखाया था, जीवन के अनमोल वो पल, जब पहला वर्ण बनाया था। मन्दिर में कदम बढ़ाया था

बिंदिया

🏻        बिं दिया बिंदिया पहचान सजना प्रेम की धार सजना तू मेरी जान सजना। बिंदिया है प्यार सजना गोल आकार सजना मुखड़े की है सुन्दरता। बिंदिया है चाँद सजना फूल की फुहार सजना माथे का मान सजना। बिंदिया है दिल की रंगत साथी की भाती संगत प्यार का निशान सजना। बिंदिया है मेरी ज्योति सूना न होगा माथा मिलन की चाह सजना।     डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल हर दिन विकास की राह मिलें, हर दिन जीत की चाह मिलें, जीवन हो शुद्ध सरल समृद्ध, कौशल प्रतिभा से वाह मिलें, मन चाहा सुख संसार मिलें, यश कीर्ति सद् विचार मिलें, प्रचंड तेज सा पुरुषार्थ हो, जन्म दिन मंगलमय हो, गुरु अग्रजों का आशीष मिलें, स्नेहिल अनुजों का प्यार मिलें।    डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

निशान

*विधा* ◆ धुनी छंद ◆ विधान- [भगण जगण गुरु ] (211  121   2) 7 वर्ण,यति ,4 चरण, 2-2 चरण समतुकांत। रोशन निशान हो। प्रेम धन शान हो।। नेह मन मान हो।। जीवन जहान हो।। पावन निशान हो। जान पहचान हो।। चंदन सुभाष हो। फूल एहसास हो।। मौसम बहार हो। नूतन विचार हो। भाव सहकार हो। पूरब पुकार हो।। गीत गुन गंध हो। चाहत सुगंध हो।। वंदन भुवान हो। नंदन निशान हो।। ✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

अभिव्यक्ति

कुसुमसमुदिता छंद विधान~ [ भगण नगण नगण गुरु] (211   111   111  2) 10वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] मंथन तन मन धन का। वंदन जन भल दल का।। संगम अगम अचल हो। जीवन सृजन सफल हो।। प्रात रजस शुभ करनी। रात तमस दुख हरनी।। नेह नमन चमन मिलें। मंगलमय सुमन खिलें। डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल               अभिव्यक्ति          मुँह से निकले पहले बोल, जिव्हा से निकले पहले बोल, भाषा होती है, मन से निकले बोल प्रेम की भाषा होती है। हृदय से निकले उद्गार नेह की भाषा होती है, भाषा से निकले जो बोल समझ में आते हैं, वो सुन्दर सकल स्नेह की अभिव्यक्ति होती है।   हृदय के सकारात्मक भाव, मन के अंतस पटल सद् भाव, बोलने की लिखने की प्रदर्शित करने की, जताने की, बताने की, मन को प्रफुल्लित खुश कर जाने की लेखनी को बोली को अभिव्यक्ति कहते हैं। डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

मातृभूमि

विधा  ◆ गाथ छंद◆ विधान~ [ रगण  सगण गुरु गुरु] ( 212   112  2   2) 8 वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] मातृभू गुन गायेगें। धन्य भूमि बनायेगें।। प्रेम गान सुनायेंगे। भारतीय कहायेंगें।। आन बान बचायेंगे। देश शान बनायेंगे।। नौजवाँ समता छाये। मान भी बढ़ता जाये।। देश प्रेम जगे तेरा। भाव नेह सजे मेरा।। शक्ति से युग जागेगा। सृष्टि से तम भागेगा।। *डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल*

मौक्तिक दाम छन्द

विधा ◆ मौक्तिक दाम छंद◆ विधान~ [ जगण जगण जगण जगण] (121   121   121  121) 12वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] भजो मन राम चलो रघु धाम।   हरे सब दोष मिले जग नाम।। हटे हर लोभ लगे प्रभु भोग।  घटे तम क्षोभ मिटे सब रोग  ✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल