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हिन्दी साहित्य की नवीन विधाएँ

" हिन्दी साहित्य की नवीन विधाएँ "

विधा का अर्थ है, किस्म, वर्ग या श्रेणी, अर्थात विविध प्रकार की रचनाओं को उनके गुण, धर्मों के आधार पर अलग- अलग विभाजित करना, नामकरण और वर्गीकरण   करना| साहित्य में विधा शब्द का प्रयोग, एक वर्गकारक के रूप में किया जाता है| विधाएँ अस्पष्ट श्रेणियाँ हैं, इनकी कोई निश्चित सीमा रेखा नहीं होती ; इनकी पहचान समय के साथ कुछ मान्यताओं के आधार पर निर्मित की जाती है| हिन्दी साहित्य के साथ- साथ अन्य विषय, कला एवं चिकित्सा के क्षेत्र में भी विधाएँ होती है, परन्तु हम केवल हिन्दी साहित्य की नवीन विधाओं पर चर्चा करेंगे |

         संस्कृत साहित्य के आचार्यों ने सम्पूर्ण साहित्य को दो भागों में विभाजित किया है:——

(1) दृश्य काव्य में नाटक

(2) श्रव्यकाव्य में पद्य (कविता या काव्य) और गद्य ये प्रमुख दो साहित्य के भेद हैं|

           दृश्यकाव्य का आँखों द्वारा तथा श्रव्यकाव्य का श्रवणेंद्रिय (कानों) द्वारा रसास्वादन किया जाता है|संस्कृत साहित्य के समान ही हिन्दी साहित्य में भी नाटक (अनेकांकी एकांकी, रेडियोरूपक आदि) तथा पद्य (महाकाव्य, खण्डकाव्य, मुक्तक, तुकान्त, अतुकान्त, छन्द, माहिया, सायली, हायकू इत्यादि) और गद्य की अनेक विधायें : लघुकथा, कहानी, उपन्यास, व्यंग्य, प्रहसन (कामेडी), यात्रा वृत्तान्त, निबन्ध, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी, गद्यकाव्य आलोचना तथा पुस्तक समीक्षा या पर्यालोचन इत्यादि हैं| इन सभी विधाओं में सृजनात्मक तथा विचारात्मक साहित्य दीर्घकाल से निरंतर विद्वानों द्वारा लिखा जा रहा है|
प्रमुख साहित्यिक विधाएँ हैं, जिसमें वर्तमान समय में प्रचलित नवीन विधाएँ भी निम्नलिखित हैं |

कविता (तुकान्त व अतुकांत)

छन्दबद्ध काव्य (मात्रिक व वार्णिक)

लघुकथा, लघु फिल्म कथा, फीचर फिल्म लेखन

कहानी

उपन्यास

एकांकी

नाटक

प्रहसन (कामेडी)

निबन्ध

आलोचना

रिपोर्ताज

डायरी लेखन

जीवनी

आत्मकथा

संस्मरण

गल्प (फिक्शन)

विज्ञान कथा (साइंस फिक्शन)

व्यंग्य

रेखाचित्र

पुस्तक-समीक्षा या पर्यालोचन

साक्षात्कार

स्तंभ लेख

संपादकीय और ललित निबंध

विभिन्न भाषाओं की पुस्तकों का अनुवाद

टिप्पण लेखन

गीत व नवगीत

मुक्तक, शेर, शायरी, दोहा गीत

गज़ल व सज़ल

प्रारूप लेखन या प्रतिवेदन

गद्यात्मक काव्य इत्यादि

           _वर्तमान समय में प्रचलित हो रही कुछ नवीन विधाओं को विधान व उदाहरण सहित आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ |_

*माहिया छन्द या टप्पा छन्द—*
माहिया पंजाब प्रान्त से उपजा एक लोकप्रिय, गेय छंद है। इसे 'टप्पा छन्द' भी कहते हैं। पंजाबी में माहिया का अर्थ होता है “जीवन साथी या माही” – इस छंद में प्रायः नायक-नायिका (प्रेमी-प्रेमिका) की नोंक-झोंक होती है। स्त्रियाँ अपने माही के साथ अनेक प्रकार से प्यार भरी छेड़-छाड़ करती हैं।
माहिया' तीन पंक्तियों का छन्द है, जिसमें पहली और तीसरी पंक्तियों में बारह मात्राएँ और दूसरी पंक्ति में दस मात्राएँ होती हैं| प्राय: पहली और तीसरी पंक्ति में बराबर मात्राएं और तीनों पंक्तियों में, चरणान्त में गुरु आ सकते हैं|  हिन्दी में कवियों ने मात्राओं के 12-10-12 के क्रम में ही माहिया रचा है|
उदाहरण ~ 
इसकी परिभाषा से
हम अनजान रहे
जीवन की भाषा से

सब कुछ पढ़कर देखा
पढ़ न सके लेकिन
जीवन  की  हम रेखा

आँखों  में  पानी है
हर इक  प्राणी की
इक राम कहानी है

भावुकता में खोना
चलता आया है
मन का रोना-धोना

उड़ते गिर जाता है
कागज़ का पंछी
कुछ पल ही भाता है

नभ के बेशर्मी से
सड़कें पिघली हैं
सूरज की गर्मी से

कुछ ऐसा लगा झटका
टूट गया पल में
मिट्टी का इक मटका

हर बार नहीं मिलती
भीख भिखारी को
हर द्वार नहीं मिलती

सागर में सीप न हो
यह तो नहीं मुमकिन
मंदिर में दीप न हो

हर कतरा पानी है
समझो तो जानो
हर शब्द कहानी है

क्यों मुंह पे ताला है
चुप---चुप है राही
क्या देश- निकाला है

हर बार नहीं करते
अपनों का न्यौता
इनकार नहीं करते|
                    ~ प्राण शर्मा

*कुण्डलिया छन्द —*
कुण्डलिया मात्रिक छन्द है, जो दोहा और रोला छन्दों के मिलने से बनता है| दोहे का अन्तिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है, अर्थात् 'दोहा' एवं 'रोला' छन्द एक दूसरे में कुण्डलित रहते हैं| इसीलिए इस छन्द को 'कुण्डलिया' कहा जाता है| एक अच्छे कुण्डलिया छन्द की यह विशेषता होती है कि वह जिस शब्द से प्रारम्भ होता है, उसी पर समाप्त भी होता है|
उदाहरण~
         विषय – वर्षा            
होते  वर्षा  काल  में,  हर्षित सभी किसान|
जब  होती  है  रोपनी, तभी उपजता धान||
तभी उपजता धान,कर्ज भी चुक पाता है|
घर का भी हर कार्य,पूर्ण तब हो जाता है||
नहीं  उपजता  धान,  दुखी हो  वे  हैं रोते|
वर्षा  की ले आस, कृषक सब  बैठे होते|| 
                ~ बाबा बैद्यनाथ झा जी

*टिप्पणी —*
किसी विशेष घटना पर विचार व्यक्त करना ही टिप्पणी (Remark)है| समाज में कुछ घटनाएं और क्रियाएं ऐसी भी हो जाती है, जिस पर कम से कम शब्दों में कुछ सकारात्मक और आत्म-मंथन करने वाली बातें कहना और लिखना जरुरी हो जाता है, इसीलिए आजकल टिप्पणी का प्रयोग भी धीरे -धीरे बढ़ रहा है| टिप्पणी लेखन में हम गन्दे और अनर्गल शब्दों का प्रयोग किए बिना उस विशेष परिस्थिति पर अपने विचार रखते हैं|

*टिप्पण लेखन (Noting) —*
किसी भी विचारधीन पत्र या आवेदन पर उसके निष्पादन (Disposal) को सरल बनाने के लिए जो टिप्पणियाँ सरकारी कार्यालयों में लिपकों, सहायकों तथा कार्यालय अधीक्षकों द्वारा लिखी जाती है, उन्हें टिप्पण-लेखन कहते हैं|
टिप्पण सरकारी कार्यालयों में कार्य सम्पादन का एक माध्यम है। कार्यालयों में आए हुए विचारधीन पत्रों को निपटाने के लिए लिपिक अथवा अधिकारियों के द्वारा पूर्व सन्दर्भ, वर्तमान तथ्य और आवश्यक सुझावों का उल्लेख करते हुए अधिकारी के अन्तिम निर्णय लेने की दिशा में दी गई अभ्युक्तियाँ टिप्पण कहलाती है|
       ''किसी भी विचारधीन पत्र के निस्तारण को सुगम और सरल बनाने के लिए जो टिप्पणी लिखी जाती है, वह टिप्पण कहलाती है|''
मन्त्री, प्रधानमन्त्री अथवा राष्ट्रपति के द्वारा लिखी गई टिप्पणी को 'मिनट' कहते हैं| टिप्पण का मुख्य उद्देश्य विचारधीन पत्रों से सम्बन्धित सभी बातों को इस प्रकार प्रस्तुत कर देना है कि उसकी बातें स्पष्ट हो जाएँ और अधिकारी को निर्णय लेने में कठिनाई न हो
जब किसी पत्र के निस्तारण के लिए संक्षित्प्त टिप्पण करना होता है तो उसे मूल पत्र के हाशिये पर लिख दिया जाता है
संक्षिप्त टिप्पणों के लिए निम्नलिखित प्रकार के वाक्य प्रस्तुत किए जाते हैं|
1. देख लिया
2. मैं सहमत हूँ
3. आदेशार्थ प्रस्तुत है
4. अग्रसरित एवं संस्तुत
5. आलेख अनुमोदनार्थ प्रस्तुत है
6. आवेदन स्वीकार कर लिया जाए
7. मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं
8. श्री........ कृपया अवलोकन करें
9. आवेदन अस्वीकृत
10. अवकाश स्वीकृत
11. कार्यालय की टिप्पणी से सहमत हूँ। आदेश जारी कर दिया जाए
12. यह मामला पुलिस के हवाले किया जाए
13. इस सम्बन्ध में पृष्ठ ...... पर दी गई टिप्पणी देखें
14. इस मामले का शीघ्र निपटारा कीजिए
15. सभी प्रधानाचार्य को सूचित किया जाए
16. वित्त मन्त्रालय की भी सलाह ले ली जाए
17. अमुक कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए
18. अवकाश अस्वीकृत
19. वित्त मन्त्रालय की भी सलाह ले ली जाए
इन टिप्पणों में तीन बातें रहती हैं-
(1) उस पत्र से पूर्व के पत्र आदि का सारांश
(2) जिस प्रश्र पर निर्णय किया जाता है, उसका विवरण या विश्लेषण और
(3) उस सम्बन्ध में क्या कार्रवाई की जाय, इस विषय में सुझाव और क्या आदेश दिये जायँ, इस विषय में भी सुझावों का उल्लेख|
अभिप्राय यह है कि टिप्पण-लेखन में विचारधीन पश्र के बारे में वे सब बातें लिखी जाती हैं, जिनसे उस पश्र के सम्बन्ध में निर्णय करने और आदेश देने में सुविधा होती है। उस विचारधीन पश्र का पुराना इतिहास क्या है ? उस सम्बन्ध में नियम क्या है ? सरकारी नीति क्या है ? इत्यादि सारी बातों का उल्लेख कर अन्त में यह सुझाव देना चाहिए कि इस सम्बन्ध में अमुक प्रकार का निर्णय करना उचित होगा| इसके बाद वह पत्र निर्णय करनेवाले उच्च अधिकारी के सामने रखा जायेगा। ऊपर दिये गये निर्देशों के साथ लिखे गये टिप्पण को पढ़कर उस अधिकारी को निर्णय करने में आसानी होगी|

टिप्पण के सम्बन्ध में कुछ विशिष्ठ बातें इस प्रकार हैं-

(1) टिप्पण बहुत लम्बा या विस्तृत नहीं होना चाहिए। उसे यथासम्भव संक्षिप्त और सुस्पष्ट होना चाहिए।
(2) कोई भी टिप्पण मूलपत्र (original letter) पर नहीं लिखा जाना चाहिए। उसके लिए कोई अन्य कागज या बफ-शीट का प्रयोग करना चाहिए।
(3) टिप्पण में यदि किसी पत्र का खण्डन करना हो, तो वह बहुत ही शिष्ट और संयत भाषा में किया जाना चाहिए और किसी भी दशा में किसी प्रकार का व्यक्तिगत आरोप या आक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
(4) यदि एक ही मामले में कई बातों पर अलग-अलग आदेश लिए जाने की आवश्यकता हो तो उनमें से हर बात पर अलग-अलग टिप्पण लिखना चाहिए।
(5) टिप्पण लिखने के बाद लिपिक या सहायक को नीचे बाई ओर अपना हस्ताक्षर करना चाहिए। दाई ओर का स्थान उच्च अधिकारियों के हस्ताक्षर के लिए छोड़ देना चाहिए।
(6) कार्यालय की ओर से लिखे जा रहे टिप्पण में उन सभी बातों या तथ्यों का सही-सही उल्लेख होना चाहिए जो उस पत्रावली के निस्तारण के लिए आवश्यक हों।
(7) यथासम्भव एक विषय पर कार्यालय की ओर से एक ही टिप्पण लिखा जाना चाहिए।
(8) जहाँ तक सम्भव हो, टिप्पण इस ढंग से लिखा जाना चाहिए कि पत्रावली में पत्र जिस क्रम से लगे हों, टिप्पण में भी उनका वही क्रम रहे।
(9) टिप्पण सदा स्याही से लिखे या टंकित होने चाहिए।
(10) लिपिक, सहायक और कार्यालय अधीक्षक को कागज की बाई ओर अपने नाम के प्रथमाक्षरों का ही प्रयोग करना चाहिए। उच्च अधिकारी को अपना पूरा नाम लिखना पड़ता है।
(11) टिप्पणों में ऐसे शब्दों का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए, जिनके अर्थ समझने में कठिनाई हो।

*सायली विधा —* सायली एक पाँच पंक्तियों और नौ शब्दों वाली कविता है | मराठी कवि विशाल इंगळे ने इस विधा को विकसित किया हैं | बहुत हि कम वक्त में यह विधा मराठी काव्यजगत में लोकप्रिय होकर कई अन्य कवियों ने भी इस तरह कि रचनायें रची है |
नियम आसान हैं. ..
◆ पहली पंक्ति में एक शब्द
◆ दूसरी पंक्ति में दो शब्द
◆ तीसरी पंक्ति  में तीन शब्द
◆ चौथी पंक्ति में दो शब्द
◆ पाँचवी पंक्ति में एक शब्द

        कविता आशययुक्त हो, इस तरह से सिर्फ नौ शब्दों में रचित पूर्ण कविता को सायली कहा जाता हैं |
यह शब्द आधारित होने के कारण अपनी तरह कि एकमेव और अनोखी विधा है |
हिंदी में इस तरह कि रचनायें प्रथम शिरीष देशमुख की कविताओं में नजर आती हैं |
उदाहरण~
इश्क
मिटा गया
बनी बनायी हस्ती
बिखर गया
आशियाँ......|

तुझे
याद नहीं
मैं वहीं बिखरा
छोड़ा जहां
तुने......|

प्यार
करते रहें
मीठी-मीठी बातें
लुभाती रही
हमें |

प्रेम
कुछ ऐसा
था कि होश
ही नहीं
हमें |

आशिकी
हर कदम
नशा बढ़ता रहा
मजा था
ऐसा |

इश्क
ना होता
जीवन रंगहीन होता
सारा संसार
उदास |

अन्य बहुत सी नवीन विधाओं का प्रचलन वर्तमान समय में हिन्दी लेखन में किया जाता है, परन्तु सभी का उल्लेख संभव नही है| कुछ और नवीन विधाओं का उल्लेख अगले लेख में अवश्य करूँगा|

संकलन एवं लेखन ~ डाॅ• राहुल शुक्ल "साहिल"

Comments

  1. अगले लेख में अन्य विधाओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी देने का प्रयास करता रहूँगा |
    धन्यवाद आपका अपना डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल प्रयागराज, उ•प्र•

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