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मनहरण घनाक्षरी
{8 8 8 7 प्रति चरण यति, चार चरण समतुकान्त}
शब्द - शब्द की पुकार, सुर ताल बने हार, भक्ति भाव प्रेम रस, साधना दिखाइए|
छन्द - छन्द काव्य रंग, तन - मन प्रीत संग, दिव्य रूप दर्शन की, कामना जगाइए|
माया लोभ दु:ख तज, नित्य देव गुन भज, काम क्रोध वासना को, मूल से भगाइए|
देवों में उत्तम देव, भोलेनाथ महादेव, मुक्ति मार्ग मोक्ष पथ, हमें दिख लाइए||
©️ डॉ• राहुल शुक्ल साहिल
घनाक्षरी
प्रात काल सूरज का,
हृदय में धीरज का,
मात- पिता गुरु देव,
मान होना चाहिए |
मन में विचार शुद्ध,
आचरण हो विशुद्ध,
प्रेममयी भाव जैसा,
ज्ञान होना चाहिए |
भूमि व्योम को नमन,
भक्ति भाव की लगन,
जगदाता का सदैव,
भान होना चाहिए |
कर्मरत रहे तन,
स्नेह से भरा हो मन,
सुन्दर शब्दों से सजा,
गान होना चाहिए |
©️ डॉ• राहुल शुक्ल साहिल
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मनहरण घनाक्षरी
{8 8 8 7 प्रति चरण यति, चार चरण समतुकान्त}
शब्द- शब्द की पुकार, सुर ताल बने हार, भक्ति भाव प्रेम रस, साधना दिखाइए|
छन्द - छन्द काव्य रंग, तन - मन प्रीत संग, दिव्य रूप दर्शन की, कामना जगाइए|
माया लोभ दु:ख तज, नित्य देव गुन भज, काम क्रोध वासना को, मूल से भगाइए|
देवों में उत्तम देव, भोलेनाथ महादेव, मुक्ति मार्ग मोक्ष पथ, हमें दिख लाइए||
©️ डॉ• राहुल शुक्ल साहिल
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