ग़ज़ल
बहर~221 1222 221 1222
तुम दूर खड़े हो तुमको पास बुलाना है |
जब प्यार किया है तो फिर प्यार निभाना है||
संसार हमारा ये खुशहाल तुम्हीं से है|
मुस्कान बिखेरे ऐसा दीप जलाना है||
ये सृष्टि तुम्हारी बन आधार गया सबका|
फिर छोड़ तुम्हें कब किसका और ठिकाना है।
दो बोल जरा मीठे दो बोल कि मौसम है |
सरकार बना तुमको आदेश सुनाना है|
फिर गर्म हवायें प्यासी छेंड़ रहीं देखो|
सब तार खिंचे तन मन स्वर साज सजाना है||
हो मौन गया उमड़ी है पीर सरस मन में|
हैं क्रूर लुटेरे इज्ज़त आज बचाना है||
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
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