आज पटल पर आयी हुई रचनाओं की समीक्षा का लघु प्रयास
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् बढ़िया प्रस्तुति बधाईयाँ आदरणीया ।
मुक्त सृजन की विधि अपनाई। सुन्दरता से कलम चलाई ।।
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् बढ़िया प्रस्तुति बधाईयाँ बहन जी
मोहन के गुण गाती जातीं ।
जीवन धन्य बनाती जातीं ।।
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् अद्भुत सृजन किया है बधाईयाँ आदरणीय भगत सहिष्णु गुरुवर
नित्य नमन गुरुवर करते हैं । सबके मन में घर करते हैं ।। शीतल करती इनकी वानी ।
हनुमत की महिमा पहचानी।।
वेद पुराणन की ले गाथा।
शिवानन्द जी अपने साथा।।
सीख दे रहे हैं संस्कृति की । चुनीं सूक्तियाँ भी संस्कृत की।।
निशदिन रखते कोमल वाणी । शीतलता है जग कल्याणी।।
राखी की महिमा बतलाते ।
श्री कपूर जी हमें सिखाते ।।
कवि प्रचण्ड वन्दन करते हैं । विनय वरण चन्दन करते हैं ।। कृपा करें करें सब पर माँ वाणी । जिनकी महिमा जग कल्याणी।।
मन की गति वर्णित करते हैं ।
मोक्ष धाम को अनुसरते हैं ।।
पैनी कलम नवीन चलाई ।
बन्धन छूटे कैसे भाई ।।
छन्द मनहरण अति मनभाया। रक्षाबंधन जो अब यह आया ।।
हैं परमार परिश्रमी भारी ।
कृपा करें हरि रखें सुखारी।।
रक्षाबंधन पावन आया ।
बहनों के है अति मनभाया।।
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् क्या बात है अति उत्तम सृजन किया है बधाईयाँ भाई सुमित शर्मा 'पीयूष' जी
मोबाइल भारी जंजाला।
है हम सबका देखा-भाला।।
अति पावन विचार यह दीन्हा।
बहनों का मन शीतल कीन्हा।।
अलबेला है इनकी वाणी|
परम तत्व है शिव जग जाणी||
माडवक्रीड़ा अति मनभावन ।
सरस बनाते सदा सुहावन।।
प्रेम भाव अरु भाई चारा ।
ऐसा है त्यौहार हमारा ।।
डोर प्रीति की बाँधे बहना ।
भाई होता उसका गहना ।।
उल्टे सीधे शब्द मिलाये । सरल भाव मन के ले आये।। बचपन की यादें आती हैं ।
दोनों आँखें भर जाती हैं ।।
विधा सायली चुन कर लाये । सुंदर- सुंदर शब्द सजाये ।।
बंधन है यह पावन भाई । बहना थाल सजाकर लाई।। महेश अमन जी
रक्षाबंधन क्या होता है ।
भाई छुपकर क्यों रोता है ।। सदियों से ही चलता आया ।
रिश्तों की है ये सब माया ।।
अनुज दिव्य जी छन्द सजाते । मधुरिम मीठी तान सजाते ।।
आज छन्द कुंड़लिया प्यारा।
नीचे दोहा सोहे न्यारा।।
भक्ति परक सुंदर रचनायें।
नित्य सुपावन पटल सजायें।।
राखी लेकर आज पधारी।
बड़ी बहन शचि इन्दु हमारी ।।
रश्मि आज पुनि सृजन सजाया । सैनिक की पीड़ा को गाया ।।
भाई बने राष्ट्र के प्रहरी।
बात बताई है यह गहरी।।
साथी जी मुक्तक ले आये ।
अपने मन के भेद बताये ।।
असमंजस है कैसा भाई ।
क्यों निज मन की पीड़ा गाई।।
बिजेन्द्र सिंह 'सरल'
चौपाई समीक्षा
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