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पुष्प विषय पर पं० सुमित शर्मा 'पीयूष' जी की रचना

         विषय : पुष्प
       🙏🌸🙏🌸🙏
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

एक फूल खिला बरसों के बाद,
घर    के    बंजर   ओसारे  में।
माँ  की   ममतामय   मिट्टी  में,
बाबा  की  बाँहों  के  क्यारे में।

उस  फूल  की सुंदरता  ऐसी,
जैसे  रति  ने  हो स्वांग भरा।
ज्यों भरी स्निग्धता  कूट-कूट,
पंखुड़ियों  तक में पराग भरा।

अधरों  पर  स्मित   सी लकीर,
ऐसा   कुदरत   ने  खींचा   था।
लज्जा औ लरज की डाली को,
खुद  शील-स्नेह  ने  सींचा  था।

इस डर  से  कि  न सूख  सके,
औ  रहे   सुरक्षित   डाली   में।
माँ-बाप   लगे  रहते  नित-दिन,
उस   बेटी   की  रखवाली  में।

ज्यों-ज्यों पौधा  वह बड़ा हुआ,
औ तने  पे  अपने खड़ा हुआ।
तब  सख्त-पना   था  टहनी में,
स्वभाव  पुष्प  का कड़ा हुआ।

माँ-बाप का नित सौगुण सिंचन
अब  तो  न तनिक सुहाता था।
घर की  ड्योढ़ी से  झाँक  उसे,
बाहर का पथिक  लुभाता  था।

एक रोज वह  सूर्योदय  से पूर्व,
अन्तस्   पीड़ा   से  जाग  गई।
छुप-छुप कर  के अपनों से ही,
वह पथिक संग फिर भाग गई।

माँ-बाप बिलखते थे  निशि-दिन,
अपनी उस पुष्प की करनी पर।
पत्ते   तक   करते   थे   विलाप,
सौंदर्य   बचा   न   टहनी   पर।

बीत    गए   दिन   शनै:  शनै:,
इस  बात  के अरसे गुजर गए।
उस पुष्प के अल्हड़ बचपन के,
यादें   यादों   से    उतर   गए।

तब  एक   रोज  माँ   ने  देखा,
कुछ तितलियों की आहट पर।
वह फूल विक्षत हो बिखरी थी,
अपने  ही  घर की चौखट पर।

बेजान  हुई, निष्प्राण  हुई  वह,
अब   चौखट   पर   लेटी  थी।
था  वेश  भिखारन सा उसका,
जो  इस  घर  की  ही बेटी थी।

माँ  चीख  उठी  कर हाय-हाय,
यों पीट वक्ष  को  करतल  से।
निर्वस्त्र  पुष्प  की  काया  को,
ढँक  दिया सुलगते आँचल से।

उस ममता  की  शक्ति से ऐसी,
पुष्प-देह    में    आग     उठी।
कब तक बेसुध सोई रहती वह?
सिसक-सिसक कर जाग उठी।

वह  बोली,  माँ   मैं   छली   गई,
इस जगत के मिथ-आकर्षण से।
झूठे    विश्वास    के   धागे    से,
मिथ्या    के    प्रेम-प्रदर्शन    से।

मैं  तो  अपनी   ही   करनी   से,
माँ  रोज  मौत-एक   मरती  थी।
नित  पथिक  की  बाहें  निष्ठुरता
से    मेरे    पंख    कतरती   थी।

एक रोज तो हद हो गई कि जब
उसने    भारी    मदिरा-मय   में।
एक  पशु  की  भाँति  बेच दिया,
मुझको   जबरन   वेश्यालय  में।

ज्यों-ज्यों  लिबास  कतरा जाता,
मैं  भी  कतरन   हो   जाती थी।
हर   रोज   उर्वशी   सी  सजती,
औ   फिर  उतरन हो जाती थी।

मैं   कतरा-कतरा   हुई  थी  माँ,
एक  रोज  जो आई शामत थी।
उस   होनी   का  होना  सचमुच
माँ   मेरे   लिए   कयामत   थी।

उस  कोठे  की  एक  कोठर  में,
मुझको  बेहोश  कर  चले  गए।
दस-बीस  भेड़ियों   के  सम्मुख,
मुझको   परोस  कर  चले  गए।

उन   भूखे    सभी   दरिंदों    ने,
सब   हदें   पार  कर  डाली माँ।
कर   गए  चीथड़े   अस्मत  के,
सब   तार-तार   कर  डाली माँ।

दस   दिन  भूखा-प्यासा  रक्खा,
जब  अदा  बची  न करवट पर।
तब   मार-पीट   कर  फेंक  गए,
मुझको   मेरे   ही   चौखट  पर।

किस  मुँह  से  अब माफी माँगूँ,
माँ   शब्द   मेरे   लड़खड़ा रहे।
माँ  छोड़  दो  मेरी  लाश  यहीं,
यह  चौखट  पर  ही  पड़ा रहे।

मैंने  खुद  का  तक  न  सोचा,
मैं  कितनी  बड़ी  अभागी  हूँ?
अब  सदा  के  लिये  सोने  दो,
सौ  बार  तो  मरकर  जागी हूँ।

कुछ  बोलो  माँ  आखिरी  बार,
अब  तुम्ही  को  सुनना चाहूँ मैं।
लोरी   ही   चलो   सुना   दो  न,
एक  नींद  ही  बुनना  चाहूँ   मैं।

कुछ  पल  तक  न आवाज हुई,
न  हुआ  हवा  का  कोई असर।
दो   लाशें   अब  थी  पड़ी  हुई,
दोनों   चौखट   के  इधर-उधर।

  ✍✍✍✍✍✍✍✍
रचनाकार : पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'
संपर्क : 7992272251
Code : JCBRP2235P

Comments

  1. ☮☮☮☮☮☮☮☮☮☮☮
    🔔🔔🔔🔔🔔🔔🔔🔔🔔🔔🔔

    ```~ भावनात्मक समीक्षा ~```
    प्रस्तुत कविता में कवि समाज में फैली विभिन्न कुरितियों में से एक नारी शोषण पर कटाक्ष करके उसका दर्द जनमानस के हृदय में उतारना चाहता है, जिससे वो गलत कार्य या अपराध करने से बचे, या उसका सकारात्मक उपाय खोज सके|

    आ० सुमित शर्मा 'पीयूष' जी ने बेहतरीन अप्रतिम अभिव्यक्ति प्रदर्शित की है अपनी रचना के माध्यम से, ऐसा जान पड़ता है कि उस बगिया की पुष्प रूपी बेटी की कहानी कवि के आसपास की ही है, स्वंय घटित होते हुए देखकर भावों में पिरोने का कार्य एक उत्कृष्ट साहित्यकार ही कर सकता है|

    अंत बहुत ही दर्दनाक और डरावना हुआ, कवि ने समाज की कड़वी सच्चाई को रखने का प्रयास किया है, और पूर्ण रूप से सफल भी हुए हैं परन्तु यदि कुछ सकारात्मक, सार्थक और प्रेरणाप्रद संदेश भाव को अंत में समाहित किया जाए तो उत्कृष्ट रचना सर्वोत्कृष्ट बन सकती है|
    समस्या के साथ यदि हल या समाधान की दिशा भी कवि अपनी रचना के माध्यम से दिखा दे, तो वह सर्जन सुन्दर और हितकारी बनकर साहित्य हो जाता है |

    ~ रचना शैली ~
    रचना की शैली उत्तम है, दो तीन पंक्तियों की लय में रूकावट है, जो न के बराबर ही है|
    ऐसे भाव व हृदय वेदना को कुरेदकर मार्मिक शब्दों से रचना को सजाने का कार्य, कवि की कई वर्षों की साधना/तपस्या का प्रतिफल है|

    ऐसी रचनाओं को रचनाकार की आयुवर्ग के हिसाब से सरकार या संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए, जिससे कवि को प्रोत्साहन मिल सकें एवं समाज के लिए दिशा धारा निर्धारित हो सके |

    बेहतरीन शब्द संयोजन के साथ इतनी यथार्थपरक रचना एक युवा साहित्यकार के लिए लिख पाना, ऐसी धारदार सोच होना, बहुत ही कठिन है जिसको नये जमाने के पटना, बिहार के युवा साहित्यकार पं० सुमित शर्मा 'पीयूष' जी ने बखूबी निभाया है|

    ```~ काव्यात्मक टिप्पणी ~```

    नारी की करूण कहानी से,
    मन की पीड़ा बढ़ जाती है,
    अस्मत नारी की बार-बार,
    असुरों द्वारा लूट जाती है|

    नैतिकता की बातें झूठी,
    अत्याचारी का मान बड़ा,
    गलियों पे और चौराहों पे,
    रावण का है संताप खड़ा|

    सरकारें सारे नेता भी,
    अपनी - अपनी फेंक रहे,
    दुनिया जाएँ भाड़ कहीं,
    सब अपनी रोटी सेंक रहे|

    नव युवा सोच परिवर्तन से,
    नैतिकता का उत्थान करो,
    मन में जो लाए सोच गलत,
    उसका समूल ही नाश करो|

    जय महाकाल संवर्धन से,
    दुश्मन दानव मिट जाएगा,
    सत्कर्मी सच्चे लोगों का,
    सुंदर समाज बन आएगा|


    ```~संक्षिप्त भावार्थ~```
    जिस बेटी को फूल की तरह संजोया, पाल - पोष कर बड़ा किया, उसकी उम्र के प्रज्जवलन एवं शारीरिक, मानसिक ज्वार भाटों ने उसकी आत्मा की आवाज को दबा दिया, माँ बाप के मान और संस्कार का कोई भान ना रहा| समाज में बुराई और कुरीतियों का सामना करते - करते देह दरिन्दों के भेंट चढ़ गयी, अंततः भूलोक छोड़ गयी|

    बेहतरीन लाजवाब यथार्थपरक सामाजिक चिंतनयुक्त रचना के लिए मेरी ओर से आत्मिक बधाई एवं शुभकामनाएँ|

    © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

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  2. वाह वाह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह जितनी सुंदर रचनाकार ने रचना की है, समीक्षाकार आ.साहिल जी द्वारा की गयी समीक्षा ने रचना में चार-चाँद लगाने का कार्य सफलता पूर्वक पूर्ण किया है ।रचनाकार और समीक्षक दोनों ही को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं👍🏻👍🏻👍🏻👌🏼🌷🌷🌺🌺🌺🌺🌷🌻🌻💐🌷🌺🌹
    कौशल कुमार पाण्डेय 'आस'

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  3. 🙏🌸अपने जीवनकाल में पहली बार इतनी विस्तृत, व्याख्यात्मक और निष्कर्षित समीक्षा देखी है।🌸🙏

    सबसे पहले तो आदरणीय दादा श्री को हृदयतल से धन्यवाद अर्पण करता हूँ।

    एक समीक्षक का कार्य केवल रचना की प्रशंसा ही नहीं बल्कि उसकी त्रुटियाँ और संभावित संशोधन भी करना होता है। इस कार्य को बखूबी अंजाम देने के लिए दादा श्री को हार्दिक धन्यवाद।

    मेरी रचना से बेहतर आपकी समीक्षा है और साथ ही इतने सुंदर तरीके से आपने जो काव्यात्मक टिप्पणी की उसमें आपने उस समस्या का समाधान निकाल दिया जिसे मैंने अपनी कविता के अंत में पैदा कर दिया था।

    आज के युवावर्ग को इस कविता का आशय समझने की आवश्यकता है और प्रगतिवादी स्त्रियों को इसे अन्यथा न लेकर इसे स्वीकार करने की आवश्यकता है।

    समाज को साहित्यकार ही बदलते आये हैं और आगे भी बदलाव कलम से ही होगा। ऐसे में आपकी टिप्पणी और अधिक सकारात्मक रचनाओं के लिए प्रेरित करती हैं।

    ढेर सारे प्रेम-पुष्पों के साथ सादर-पगवंदन दादा।
    🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏
    पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'

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  4. वाह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह अनुज साहिल जी वाह्ह्ह्ह्ह ! उत्कृष्ट अप्रतिम कविता की सटीक व अद्वितीय समीक्षा ! आप दोनों अनुज अपने - अपने दायित्वों को निभाने में काफी हद तक सफल रहे। आपने सही कहा यह घटना ऐसी वर्णित की गयी है मानों अनुज सुमित जी के आस- पास घटित हुई हो! अनुज सुमित जी हैं ही भावुक व्यक्तित्व के धनी! आपका कथन अक्षरशः सही है कि वे इस ज्वलंत समस्या का कुछ हल या समाधान भी दे देते तो रचना में चार चांद लग जाते! वैसे उन्होंने संकेत भर किया है कि हमें अपने बड़ों का कहना मानना चाहिए। तब शायद यह घटना न घटती ! परन्तु समस्या कुछ और है वह है रावण से भी अधिक दुर्भावना वालों के साथ क्या किया जाय ! उनको रावण कहना रावण का भी अपमान होगा ! जब बेटियाँ घरों में सुरक्षित नहीं तब क्या करना होगा! मासूम बच्चों की तो कोई गलती भी नहीं होती ! तो समाज को सोच में क्रान्तिकारी बदलाव लाना होगा ! फिल्मों व सीरियल्स के विषय बदलने होंगे। दोषियों को तुरंत पर्याप्त सजा देनी होगी! तब कुछ हो पाएगा ! अनुज साहिल जी आपने समीक्षा के अंतर्गत जो कविता बनायी है वह भी सराहनीय है!"
    असुरों द्वारा लुट जाती है " अधिक उपयुक्त होगा।
    आपकी यह बात भी सही है कि अनुज सुमित जी जैसे युवा कवियों को राष्ट्रीय सम्मान मिलना चाहिए! अवश्य मिलेगा! देश एक दिन उनकी प्रतिभा को पहचान लेगा!
    आप दोनों अनुज गणों को बहुत बहुत बधाई आपको व शुभकामनाएं !

    सुशीला धस्माना 'मुस्कान'

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  5. वाह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह्ह डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल' दादा श्री लाजवाब समीक्षा , बहुत -बहुत बधाई आपको , आज तक, व अब तक कि सबसे अप्रतिम समीक्षा , शायद ही ऐसी समीक्षा मैंने पढ़ी व देखी हो , बहुत ही बेहतरीन समीक्षा , निशब्द हूँ , ( शायद शब्द कोश मेरा कम हैं इसलिए 😜🙏) आदरणीय सुमित भाई को भी लाजवाब रचना हेतु बहुत -बहुत बधाई | आदरणीय राहुल दादा श्री व आदरणीय सुमित भाई को बहुत बहुत बधाई
    🙏🙏🙏🙏🙏🙏
    भावना प्रवीन सिंह

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वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

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