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मरहटा छंद (सोम जी /भगत जी)

       मरहटा छंद
[ २९ मात्राएँ  प्रति चरण, क्रमश: १०, ८, ११ वीं यति | पहली - दूसरी यति समतुकान्त| चरणान्त में गुरु लघु (21) , चार चरण समतुकांत |]
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निज भौम सुपावन, जीवनुदावन, सबहुँक बिधि हितकार |
सौं  नित  जय  गाओ,  मंगल  पाओ,  बार  बार  शतबार |
सब तजहुँ प्रलापा, लौकिक  ब्यापा, चिन्तन रत बलिहार |
कहु जग जय भारत, पाप  बिदारत, सतत  रहे  जयकार ||

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©भगत

    मरहटा छंद

शिल्प~[10,8,11 ]मात्राएँ ,इसी प्रकार यति।चरणान्त में गुरु लघु(21),चार चरण तुकांत।

कलु कलुष निकंदन,दशरथनंदन,
                         कौशिल्या  के  लाल।
सन्तन हितकारी , अवधबिहारी,
                         मानस   मंजु मराल।।
वंदहुँ तव चरणा,भवभय हरणा,
                        सेवत सकल भुआल।
गावहुँ  गुन  ग्रामा ,पूरण-कामा,
                        सुंदर "सोम" कृपाल।।

                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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