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💐💐20/10/2016💐💐
👲👳♀चरैवेति चरैवेति👳♀👲
चरैवेति चरैवेति,
कर्म की न हो इति,
सूर्य का तेज हो,
सकल हो कर्मगति।
सोता रहा तो कलियुगी,
उठ गया तो द्वापरयुगी,
त्रेता लाये विवेक चरित्र,
सत्कर्म बना कृतयुगी ।
हार से तू न हार,
कोशिशे बार बार,
रात हो या प्रात हो,
उठो चलो भव पार।
पुरुष हो पुरुषार्थ हो,
चर हो गतिमान हो,
हो मनुज स्वाभिमान,
जन हित कल्याण हो।
चरैवेति चरैवेति,
कर्म की न हो इति,
सूर्य का तेज हो,
सकल हो कर्मगति।
धन्यवाद
✍ *डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल*
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