Skip to main content

माँ भारती के नाम पत्र

माँ भारती को हृदय से नमन करते हुए, अपनी आत्मिक अभिव्यक्ति कह रहा हूँ,

माँ वागेश्वरी की कृपा से मेरा होम्योपैथिक का ज्ञान सम्पर्कियों को लाभान्वित कर रहा है और मेरा समुचित जीवकोपार्जन भी हो रहा है, परन्तु समाज की भयावह और विकृति स्थिति को देखकर मन विचलित हो जाता है तथा हृदय स्वार्थपरता एवं एकाकी जीवन को मजबूर करता है|
    जहाँ भी देखता हूँ, मानसिक विकृति और नकारात्मकता ही नजर आती है, लोगों के आपसी सौहार्द व  सामनजस्य का अंत हो रहा है, परिवार विखण्डित हो रहे हैं, भाईयों का प्रेम, माता - पिता का सम्मान, गुरुओं का आदर शर्मशार हो रहा है| कलियुग चरम सीमा पर है|
नारियों का निरादर, गौ माता एवं अन्य पशुओं की बेकदरी, समाज को असंतुलित कर रही है|
जहाँ देखों वहाँ केवल प्रदूषण ही प्रदूषण, विकास के नाम पर सड़के और ईमारतें दिखती हैं,
प्राकृतिक सम्पदा पेड़ पौधे समाप्त हो रहे हैं | मनुज का मनुज से व्यवहार नहीं दिखता, एक दूसरे से आपस में सहकार नही दिखता| लगे हुए हैं लोग केवल अपनी स्वारथ सिद्धी में,
जन सेवा का भान नही, परेशान हैं सब देखो मिथ्या नाम प्रसिद्धि में |
        
          मनुष्य की मानसिक विकृतियाँ विचारों को भ्रष्ट करके समाज में कुरीति एवं भ्रष्टाचार फैला रही है, जिसका अंत या दमन केवल स्वस्थ मानसिक विचार, प्रेम, सौहार्द और सहकार के बल पर ही सम्भव है| स्वस्थ एवं सकारात्मक विचार एवं संस्कार स्वस्थ शारीरिक संबलता एवं शुद्ध आत्मिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आत्मिक स्वास्थ्य साम्यावस्था ही मुझे स्वस्थ एवं स्वच्छ समाज का चित्र दिखा रही है, ऐसे ही दैवीय सद्गुणों एवं प्रेम के बल पर स्वस्थ एवं शान्तिपूर्ण भारत का स्वप्न देखा जा सकता है तथा भारत देश पर बलिदान होने वाले शहीदों का कर्ज चुकाया जा सकता है|

         अंतत: बस यही गुजारिश है कि मेरा स्वप्न पूरा होनें में माँ भारती आपका शुभाशीष मिलता रहे | हे भारत माँ ! आप तो ममतामयी सर्वज्ञ एवं सहृदया हैं, बस यही चाहता हूँ कि लोगों में प्रेम का भाव हो, दीप से दीप जले, भाव से भाव मिल जाए|

शुद्ध सरल हो रहन - सहन,
सहकार नेह  हो कर्म गहन,
ना जाति धर्म का कंकड़ हो,
जीवन की राहे बने  चमन |

मन से अँधियारा हटे, नवल किरण नित आय|
प्रेमदीप की ज्योति से, जन्म सुफल हो जाय||

डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

302/4 शिवकुटी, तेलियरगंज, इलाहाबाद, उ०प्र० 211004

ई मेल ~rsrahulshukla9@gmai.com

Comments

Popular posts from this blog

वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

[18/04 1:52 PM] Rahul Shukla: [20/03 23:13] अंजलि शीलू: स्वर का नवा व अंतिम भेद १. *संवृत्त* - मुँह का कम खुलना। उदाहरण -   इ, ई, उ, ऊ, ऋ २. *अर्ध संवृत*- कम मुँह खुलने पर निकलने वाले स्वर। उदाहरण - ए, ओ ३. *विवृत्त* - मुँह गुफा जैसा खुले। उदाहरण  - *आ* ४. *अर्ध विवृत्त* - मुँह गोलाकार से कुछ कम खुले। उदाहरण - अ, ऐ,औ     🙏🏻 जय जय 🙏🏻 [20/03 23:13] अंजलि शीलू: *वर्ण माला कुल वर्ण = 52* *स्वर = 13* अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अब *व्यंजन = 37*         *मूल व्यंजन = 33* *(1) वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन -*    क ख ग घ ङ    च छ ज झ ञ    ट ठ ड ढ ण    त थ द ध न    प फ ब भ म      *25* *(2) अन्तस्थ व्यंजन-*      य, र,  ल,  व  =  4 *(3) ऊष्म व्यंजन-*      श, ष, स, ह =  4   *(4) संयुक्त व्यंजन-*         क्ष, त्र, ज्ञ, श्र = 4 कुल व्यंजन  = 37    *(5) उक्षिप्त/ ताड़नजात-*         ड़,  ढ़         13 + 25+ 4 + 4 + 4 + 2 = 52 कुल [20/03 23:14] अंजलि शीलू: कल की कक्षा में जो पढ़ा - प्रश्न - भाषा क्या है? उत्तर -भाषा एक माध्यम है | प्रश्न -भाषा किसका

तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य