हर पल दिल-ओ-जान से चाहा बहुत
हर पल दिल-ओ-जान से चाहा बहुत,
तेरे हर निशां को सराहा बहुत।
ज़िन्दगी के सबक थे कठिन इस कदर,
हर कठिन दौर को मैं निभाता रहा।
जो सहारा बने थे किसी दौर में,
उनके साये भी अब डगमगाने लगे।
जिन्हें मंज़िल समझकर चले थे कभी,
वो ही राहों में दर्पण दिखाने लगे।
साथ तेरा सदा ही सुहाना लगा,
मैं हर एक रिश्ता निभाता रहा।
धार में कर्म की जो खड़ा रह गया,
वो ही साहिल से टकराता रहा।
कभी संगठन की मिसालें बने,
कभी बुझते चरागों को रोशन किया।
पर ज़माने की तेज़ आंधियों में,
खुद को हर रोज़ खोता ही जाता रहा।
© डॉ. राहुल शुक्ल 'साहिल'
Comments
Post a Comment