बेरहम सजनी
बेरहम सजनी, बेमुरव्वत तेरी अदा, हर लफ्ज़ में छलका, बेवफाई का नशा।
बेदर्द तेरी आँखें, क्यों छलनी करें, हर ख्वाब को मेरे, क्यों वीरान करें?
बेरूखी का अंदाज़, कातिल सा लगे, तेरे हर वार से, दिल सहमा रहे।
बैरी तेरा व्यवहार, जीना दुश्वार, फिर भी तेरा नाम, लब पे हर बार।
हमने तो चाहा था, तुझसे वफ़ा, तूने सिखा दी, बस बेवफाई की अदा।
अब तुझसे कोई गिला भी नहीं, बस यादें तेरी, हैं दिल में कहीं।
© डॉ. राहुल शुक्ल 'साहिल'
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