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आदमी को आदमी (प्रभांशु कुमार)

--आदमी में आदमी--

आदमी में आदमी को
खोजने चला हूँ आज
आदमी में आदमी तो
मिलता नहीं यहां।

आदमी आदम बना
आदमियत छोड़ दी
आदमी को आदमी तो
छोड़ता नहीं यहां।

आदमी तो रो रहा है
आदमी ही हंस रहा
आदमी ही आदमी को
दिखता नहीं यहां।

कैसे ढूँढ़ पाउँगा मैं
आदमी में आदमी को
आदमी ही बात पर
रुकता नहीं यहाँ।

                    प्रभांशु

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