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नवल हम हिन्दी का विकास रचेगें,
नव सृजन का इतिहास रचेगें,
आयेगी फिर जो रात,
तो नव प्रकाश रचेगें।
नूतन का सुमन का आभास रचेगें,
कविता सागर की आस रचेगें,
भावों का मरूस्थल पर,
अभिनव मधुहास रचेगें।
सरिता का मिलन कुछ खाश रचेगें,
साहित्य धरा पर मधुमास रचेगें,
हो संगम सब सृजन का
नवल प्रतिभास रचेगें।
डाॅ• राहुल शुक्ल
साहिल
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