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वन्दना

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वन्दन हो वन्दना निराकार ब्रम्ह की,

अद्भुत हो अनुपम काव्य छन्द भी,

आकाश पर संगम विचार एक से,

अटूट हो अटल हो विश्वास एक से,

आदि हो अन्त हो आकार एक से,

संगम सृजन का सुविचार विषय से,

साक्षी विश्व हो निर्विकार हृदय से,

सुबह का शाम का स्वीकार नमन हो,

रचना से समाज में साकार स्वप्न हो।

     डाॅ• राहुल शुक्ल
        धन्यवाद
          आभार
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