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शिक्षा एवं स्वास्थ्य व चिकित्सा संसाधन !

            सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य की उपयोगिता समाज के लिए सर्वविदित है। अपनी मानसिक शक्ति, समन्वय की भावना एवं आत्मिक शक्ति के बल पर मनुष्य अपना एवं अन्य जीवों का सर्वाधिक लाभ कर सकता है। मनुष्य या बालक/बालिका के जन्म से ही संस्कार, स्वास्थ्य व शिक्षा का उनके जीवन काल पर विशेष प्रभाव पड़ता है और उससेही सामाजिक नागरिकता एवं जीवन यापन का क्रम शुरू होता है। शिक्षा ऐसा साधन है जिससे मनुष्य अपने संस्कारों एवं जन्मों के गुणों/अवगुणों को परिमार्जित कर सकता है तथा आत्म परिष्करण के साथ-साथ परिवार, सामाज, देश एवं मानव जाति का परिष्कार कर सकता है। वेदों में वर्णित जो मनुष्य/प्राणी शरीर को बनाने के लिए 5 पाँच तत्व उत्तरदायी है, वह निम्न है।

    (1)    आकाश     - व्यवहार व मानसिक शक्ति को प्रदर्शित करता है।
    (2)    वायु     - जीवों/मनुष्यों के लिए ऑक्सीजन या प्राण वायु।
    (3)    अग्नि     - तापमान/शीत, भूख, पाचन आदि।
    (4)    पृथ्वी     - भूमि से वनस्पति, खनिज, भोजन प्राप्त होता है तथा मानव शरीर की कोशिका का                    निर्माण होता है।
    (5)    जल     - सभी सजीवों के लिए जल की आवश्यकता रक्त, वीर्य, ग्रन्थिस्राव आदि।

            इन पाँचों के संयोग से ही हमारा शरीर बनता है तथा इनके सामन्जस्य से ही शरीर को रोगमुक्त रखा जा सकता है। स्वस्थ रहना और विभिन्न व्याधियों से मुक्ति जल्द पा लेना भी मनुष्यों की बुद्धि व जागरुकता की पहचान है जो शिक्षा के माध्यम से ही सम्भव है। मनुष्य जीवन में शिक्षा का स्थान सर्वप्रथम होना चाहिए। निम्नलिखित श्लोक के माध्यम से हम मनुष्य के जीवन में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य गहराई से समझ सकते हैं -
        ‘‘ शौच तपस्ति विक्षा च मौनं स्वाध्यापमार्जवम्।
          ब्रह्मचर्यमहिंसा च समत्वं द्वन्द संज्ञयोः ।। ‘‘

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कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

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