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Showing posts from May, 2019

कुसुमविचित्रा छन्द (यौवन)

    🎍 कुसुमविचित्रा छंद 🎍 विधान~ [नगण यगण नगण यगण] (111  122  111 122 ) 12 वर्ण, 4 चरण दो-दो चरण समतुकांत हर पल  चाहूँ  प्रियवर छाया| मधुरिम लागे उजियर काया|| हलचल  जैसे  सरगम  धारा| हिय सुख पाऊँ लखकर तारा|| सुखद धनी यौवन सुख पाए| सरस वही  मोहक मन भाए|| सुखद  लगे नैनन  मन भाषा| समझ गया चाहत परिभाषा|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

दिलों की हलचलें

मुक्तक १२२२× ४ दिलों की हलचलें समझो जरा तुम प्यार तो कर लो, बढ़ी है  धड़कने सुन लो, जरा  इजहार तो  कर लो, वही अब  बन गई है  जिन्दगी की  हमसफर  मेरी, फसाने  प्रेम  के  मेरे  सभी  स्वीकार  तो  कर  लो|      ❤ साहिल 🙏         बेल/लता  🎊      (1222×4 मुक्तक) गले जब तुम लगाती हो उमंगे जाग जाती है| इशारे देखकर चाहत शराफ़त भाग जाती है| लता जैसे लिपटकर पेड़ को साथी  बनाती है| मुहब्बत़ की रवानी बेल सी चढ़ती हि जाती है|   © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

शुभमाल छन्द जय श्री राम. (माँ गोदावरी की आरती, रामघाट, चित्रकूट, विडियो)

             🌲 शुभमाल छन्द 🌲        जगण जगण (121 121) हरो  दुख  पीर| भरो  मन  धीर|| भजो  प्रभु नाम| करो शुभ काम|| भरो  मन  आस| हिया विभु प्यास|| रहे    सहकार | करे   जयकार|| बली   हनुमान| मिले सुख ज्ञान|| जपो चिर राम| सिया वर  राम|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'       🙏 जय श्री राम🙏        🍂शुभमाल छंद🍂 शिल्प:- जगण जगण (121 121), दो-दो चरण तुकांत, [6 वर्ण प्रति चरण] सजे  सुर  ताल| मृदंग   धमाल|| करो  शुभ गान| बजे मृदु  तान|| भजो प्रभु  नाम| तजो दुख काम|| मिटे  सब  दोष| रहे  नहि   रोष|| बने  सब  काम| जपो  प्रभु राम|| कहो  घनश्याम| सिया  वर  राम|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'         जय श्री राम

मंदाक्रान्ता छन्द (साहिल)

🍁 मंदाक्रान्ता छंद 🍁 विधान~ [{मगण भगण नगण तगण तगण+22} ( 222  211  111  221  221 22) 17 वर्ण, यति 4, 6,7 वर्णों पर, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत] झूमे  नाचे,  मुद  मगन  हो, संग  में गीत  गाएँ | आशा रूपी, जग सुख मिले, स्नेह की डोर पाएँ || गंगा सी है, शुभ्र  रुपहली, पीत  की श्वेत धारा | मोती  जैसे, नयन  चमके, रात  की  प्रीत  तारा || © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

शुभमाल छन्द (जय राम) डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

 🍂शुभमाल छंद🍂 शिल्प:- जगण जगण (121 121), दो-दो चरण तुकांत, [6 वर्ण प्रति चरण] सजे  सुर  ताल| मृदंग   धमाल|| करो  शुभ गान| बजे मृदु  तान|| भजो प्रभु  नाम| तजो दुख काम|| मिटे  सब  दोष| रहे  नहि   रोष|| बने  सब  काम| जपो  प्रभु राम|| सिया  वर  राम| सभी सुख धाम|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'          जय श्री राम       शुभमाल छन्द   जगण जगण (121 121) हरो  दुख  पीर| भरो  मन  धीर|| भजो  प्रभु नाम| करो शुभ काम|| भरो  मन  आस| हिया विभु प्यास|| रहे    सहकार | करे   जयकार|| बली   हनुमान| मिले सुख ज्ञान|| जपो  चिर राम| सिया वर  राम|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'       🙏 जय श्री राम🙏

बल/ बलवान पर दोहे (डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल')

🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍                   🍂बल🍂 ज्ञान  बुद्धि  जन  शक्ति  से,  होता  है  उद्धार| सेहत धन है बल बड़ा, कलियुग का आधार|| धीर  वीर बलवान  वो, जो  साहस  को पाय | तन मन धन सम्पन्न हो, हनुमत सदा सहाय || धीरवान  ही  वीर  है, कर्मी  है  बलवान| धर्म राह पर जो चलै, जगत करे गुणगान|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल '

परिवार (दिलीप कुमार पाठक 'सरस')

 परिवार ~एक पृष्ठभूमि  शैली~व्यंग्यात्मक , सूत्रात्मक एवं उपदेशात्मक | 🌹🙏🏻🌹 🖊मानव जीवन की प्रथम पाठशाला कहा जाने वाला परिवार रीढ़ विहीन हो चुका है, इसमें साहब चौंकने वाली कोई बात नहीं है|आज भौतिकतावादी युग ने अनौपचारिकता की हत्या कर औपचारिकता को इतना बढ़ावा दिया है कि सारे रिश्ते नाते दम तोड़ते नज़र आते हैं |हम सब व्यक्तिवादिता की उस ऊँचाई पर पहुँच गये हैं, जहाँ से एक सोच जन्म लेती है और वह है आत्महत्या |स्वयं को ख़त्म करने के हमने सारे साधन जुटा लिए हैं, पल पल घुट रहे हैं, पल पल मर रहे हैं, पल पल अपनी मनमानी कर रहे हैं, पल पल एक दूसरे को नीचा दिखाने का मौका ढूँढ़ रहे हैं |साहब विकास की बात कौन करे?किसके विकास की बात करे?और क्यों विकास की बात करे? कैसे विकास की बात करे?स्वार्थ का अपच इतना बड़ गया है  ,कि पेट के साथ आँखों का भी पानी मर गया है |हाँ प्राचीनकाल के सम्बन्धों की दुहाई देते हुए, निज स्वार्थ को भुना रहे हैं| परिवार आज जीभ काढ़े पड़ा है ,अंतिम साँसों के साथ अलविदा भी कहने में बेबस बेचारा | कभी परिवार हुआ करते थे, जिसे संयुक्त परिवार कहते हैं |पर अब परिवार औपचारिकता

तिलका छन्द (जयराम जपो)

🍂  तिलका छंद  🍂 शिल्प (सगण सगण (112 112) दो दो चरण तुकांत ,6वर्ण मन की सुन लो| अपनी  सुन लो|| सपने  बुन   लो| अपने  चुन  लो|| तन है  मन का| मन है तन का|| हम साथ  चले| मिल हाथ गले|| पग भी  महके| जग भी महके|| भज लो महिमा| प्रभु की गरिमा|| हिय  में  हरषे | किरपा  बरसे|| हरते  दुख  हैं| भरते  सुख हैं|| अविराम जपो| सियराम जपो|| जयराम  जपो| नित राम जपो|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल ' तिलका छंद शिल्प (सगण सगण (112 112) दो दो चरण तुकांत ,6वर्ण मन से कुछ तो | अब चिंतन हो|| मुदिता मन की| शुचिता तन की|| उर ध्यान धरो| गुरु आत्म करो|| मन धीर धरो| शुभ काम करो|| प्रभु नाम भजो| मन लोभ तजो|| झुक आदर से| निकलो घर से|| बनके बदरा| सबके अधरा|| छवि छाँव छटा| घनकेश घटा|| मन प्यास जगी| कुछ आस जगी|| कर काम रुका| चल शीश झुका || 🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊 दिलीप कुमार पाठक "सरस" ◆ तिलका छंद ◆ शिल्प:- [सगण सगण(112 112), दो-दो चरण तुकांत (6वर्ण प्रति चरण) कुछ काम करो| जग नाम करो|| सब साथ खड़े| मम भ्रात बड़े|| शुरुआत करो| कुछ बात करो|

जय श्रीराम- जय हनुमान

🌲  🌲 शुभमाल छन्द 🌲        जगण जगण (121 121) हरो  दुख  पीर| भरो  मन  धीर|| भजो  प्रभु नाम| करो शुभ काम|| भरो  मन  आस| हिया विभु प्यास|| रहे    सहकार | करे   जयकार|| बली   हनुमान| मिले सुख ज्ञान|| जपो   जयराम| सिया वर  राम|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'       🙏 जय श्री राम🙏 🙏