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कुछ ही समय का साथ था

कुछ ही समय का साथ था... कुछ ही समय का साथ था, उनके  हाथों  में हाथ था, कहने को तो बहुत कुछ था, जो  मन  में  जज़्बात था। नज़रों  में एक ख्वाब था, दिल में हल्का सैलाब था, कुछ अनसुनी बातें रहीं, कुछ एहसास लाजवाब था। वक्त ने बदली चाल यूँ, सपनों का टूटा जाल यूँ, राहें  जुदा  हो  भी गईं, पर दिल में बाकी हाल यूँ। यादों में अब भी रोशनी है, बातों  में  उनकी सादगी है, फासले बढ़े, पर एहसास वही, मोहब्बत में उनकी बंदगी है। © डॉ. राहुल शुक्ल 'साहिल'