"छठ मइया के अरघ के बेला" उगह सूरज देव, अर्घ्य हम दिहनी, छठ मइया तोहरा चरण चुमे धानी। गऊ-भैंसवा सब अंगना निहारे, पूरब से आवे रौशनी प्यारे। छठ मइया के अरघ के बेला, गावे सभे माई-बाबू गोदेला। छठ मइया तोहर महिमा न्यारी, सुख-शांति दे ललना के पियारी।। सूपवा में ठेकले ठेकुआ-फल, गंगा जल में नहइले सरल। चार दिन के व्रत में मन लगाई, मइया के किरपा से लाज बचाई।। भोर भइल, उगे लाल सूरजवा, घरे-घरे गूंजे छठ गीतवा। कंचन जल में परे अंजोरी, मइया सुनली सबकी गोरी।। छठ मइया की किरपा भारी, सदा रहे सुख-शांति हमारी।। © डॉ. राहुल शुक्ल 'साहिल'
जितना भी चाहता हूं, सब मिल ही जाता है, अब दुख किस बात का ॽ