त्रिपदिक जनक छंद
संस्कृत के प्राचीन त्रिपदिक छंदों (गायत्री, ककुप आदि) की तरह जनक छंद में भी ३ पद (पंक्तियाँ) होती हैं. दोहा के विषम (प्रथम, तृतीय) पद की तीन आवृत्तियों से जनक छंद बनता है. प्रत्येक पद में १३ मात्राएँ तथा पदांत में लघु गुरु या लघु लघु लघु होना आवश्यक है. पदांत में सम तुकांतता से इसकी सरसता तथा गेयता में वृद्धि होती है. प्रत्येक पद दोहा या शे'र की तरह आपने आप में स्वतंत्र होता है .
जनक छंद की बात की जाए तो इसके पाँच भेद हैं🌺💐💐👌
1- शुद्ध जनक छंद - जहाँ पहले और अंतिम पद की तुक मिले।
2- पूर्व जनक छंद- पहले दो पद तुकांत
3- उत्तर जनक छंद- अंत के दो पद तुकांत
4- घन जनक छंद - तीनों पद तुकांत
5- सरल जनक छंद- तीनों पद अतुकांत।
राम नाम ही सार है
राम राम कहते रहो
समझो नौका पार है
~शैलेन्द्र खरे "सोम"
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1- शुद्ध जनक छंद - जहाँ पहले और अंतिम पद की तुक मिले।
तारा नयन कमाल है|
सुन्दर सूरत देखकर|
बिगड़ा मेरा हाल है|
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2- पूर्व जनक छंद - पहले दो पद तुकांत
मनभावन सा साथ है|
संग मीत का हाथ है|
जीवन सुखमय प्रेम से|
3- उत्तर जनक छंद - अंत के दो पद तुकांत
सत्य सार यह जान लो।
मधुर प्रीति ही सार है।
जग झंझट बेकार है।
4. घन जनक छंद
प्रेम दान भी दीजिए|
स्नेह सभी से कीजिए|
सेवा भाव भर लीजिए|
5- सरल जनक छंद - तीनों पद अतुकांत।
प्रेम हृदय का भोज है|
सब जन में सहकार हो|
यही सत्य सब जान लें|
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
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