🍂 तिलका छंद 🍂
शिल्प (सगण सगण (112 112)
दो दो चरण तुकांत ,6वर्ण
मन की सुन लो|
अपनी सुन लो||
सपने बुन लो|
अपने चुन लो||
तन है मन का|
मन है तन का||
हम साथ चले|
मिल हाथ गले||
पग भी महके|
जग भी महके||
भज लो महिमा|
प्रभु की गरिमा||
हिय में हरषे |
किरपा बरसे||
हरते दुख हैं|
भरते सुख हैं||
अविराम जपो|
सियराम जपो||
जयराम जपो|
नित राम जपो||
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
तिलका छंद
शिल्प (सगण सगण (112 112)
दो दो चरण तुकांत ,6वर्ण
मन से कुछ तो |
अब चिंतन हो||
मुदिता मन की|
शुचिता तन की||
उर ध्यान धरो|
गुरु आत्म करो||
मन धीर धरो|
शुभ काम करो||
प्रभु नाम भजो|
मन लोभ तजो||
झुक आदर से|
निकलो घर से||
बनके बदरा|
सबके अधरा||
छवि छाँव छटा|
घनकेश घटा||
मन प्यास जगी|
कुछ आस जगी||
कर काम रुका|
चल शीश झुका ||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
◆ तिलका छंद ◆
शिल्प:- [सगण सगण(112 112),
दो-दो चरण तुकांत (6वर्ण प्रति चरण)
कुछ काम करो|
जग नाम करो||
सब साथ खड़े|
मम भ्रात बड़े||
शुरुआत करो|
कुछ बात करो||
अपना अपना|
नित क्यों जपना||
तरु डाल चढ़ी |
हर वेल बढ़ी ||
जल मूल मिला|
तरु फूल खिला||
सब हाथ गहो|
सब साथ रहो||
खुशियाँ भर लो|
कुछ तो कर लो||
मन में भरना|
मन की करना||
तब क्यों डरना|
सबको मरना||
चल प्यार करें|
हर बार करें||
हँस लें सँग में|
रँग लें रँग में||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
शिल्प (सगण सगण (112 112)
दो दो चरण तुकांत ,6वर्ण
मन की सुन लो|
अपनी सुन लो||
सपने बुन लो|
अपने चुन लो||
तन है मन का|
मन है तन का||
हम साथ चले|
मिल हाथ गले||
पग भी महके|
जग भी महके||
भज लो महिमा|
प्रभु की गरिमा||
हिय में हरषे |
किरपा बरसे||
हरते दुख हैं|
भरते सुख हैं||
अविराम जपो|
सियराम जपो||
जयराम जपो|
नित राम जपो||
© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
तिलका छंद
शिल्प (सगण सगण (112 112)
दो दो चरण तुकांत ,6वर्ण
मन से कुछ तो |
अब चिंतन हो||
मुदिता मन की|
शुचिता तन की||
उर ध्यान धरो|
गुरु आत्म करो||
मन धीर धरो|
शुभ काम करो||
प्रभु नाम भजो|
मन लोभ तजो||
झुक आदर से|
निकलो घर से||
बनके बदरा|
सबके अधरा||
छवि छाँव छटा|
घनकेश घटा||
मन प्यास जगी|
कुछ आस जगी||
कर काम रुका|
चल शीश झुका ||
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
◆ तिलका छंद ◆
शिल्प:- [सगण सगण(112 112),
दो-दो चरण तुकांत (6वर्ण प्रति चरण)
कुछ काम करो|
जग नाम करो||
सब साथ खड़े|
मम भ्रात बड़े||
शुरुआत करो|
कुछ बात करो||
अपना अपना|
नित क्यों जपना||
तरु डाल चढ़ी |
हर वेल बढ़ी ||
जल मूल मिला|
तरु फूल खिला||
सब हाथ गहो|
सब साथ रहो||
खुशियाँ भर लो|
कुछ तो कर लो||
मन में भरना|
मन की करना||
तब क्यों डरना|
सबको मरना||
चल प्यार करें|
हर बार करें||
हँस लें सँग में|
रँग लें रँग में||
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
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