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विमोहा छन्द

  🎍विमोहा छंद🎍

शिल्प:- [रगण रगण(212 212),
दो-दो चरण तुकांत, 6 वर्ण]

मोर  की   मोरनी|
चाँद  की चाँदनी||
राग  की  रागिनी|
मेल  है  कामिनी||

मस्त  तू  बोलना|
बात  को तोलना||
भाव  हो  नेह  हो|
प्रेम हो  स्नेह  हो||

मान हो  गान हो|
प्रीत हो भान हो||
बोध हो  गोद हो|
मीत हो मोद हो||

रात  का  द्वंद  हो|
प्रेम का  छंद हो||
रीत  हो  गीत हो|
शब्द की जीत हो||

रंग  हो  संग हो|
रास हो ढ़ंग हो||
रूप की धार हो|
मोहिनी नार हो||

© डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'
 
🎍विमोहा छंद🎍
शिल्प:- [रगण रगण(212 212),
दो-दो चरण तुकांत, 6 वर्ण]

प्रेम की  कामना|
स्नेह की साधना||
मोहनी  तारिका|
सोहनी सारिका||

रूप  है   राधिका|
प्रीत की साधिका||
संग   है  संगिनी|
ताल  है  रागिनी||

© साहिल



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कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

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