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Showing posts from March, 2019

गजल संग्रह (दिलीप कुमार पाठक सरस)

ग़ज़ल बहर~221 1222 221 1222 तुम दूर खड़े हो तुमको पास बुलाना है | जब प्यार किया है तो फिर प्यार निभाना है|| संसार हमारा ये खुशहाल तुम्हीं से है| मुस्कान बिखेरे ऐसा दीप जलाना है|| ये सृष्टि तुम्हारी बन आधार गया सबका| फिर छोड़ तुम्हें कब किसका और ठिकाना है। दो बोल जरा मीठे दो बोल कि मौसम है | सरकार बना तुमको आदेश सुनाना है|  फिर गर्म हवायें प्यासी छेंड़ रहीं देखो| सब तार खिंचे तन मन स्वर साज सजाना है||        हो मौन गया उमड़ी है पीर सरस मन में| हैं क्रूर लुटेरे इज्ज़त आज बचाना है|| 🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊 दिलीप कुमार पाठक "सरस"

बलूचों पर अत्याचार

बलूचों पर पाक का अत्याचार भयानक व दर्दनाक  है| भारत, बलूचिस्तान, ईऱान, अफगान, अमेरिका, बंग्ला देश इत्यादि बहुत से ऐसे देश हैं, जो नापाक काम करने वाले पाक को पसन्द नही करते और पाक के चुप्पा आतंक और अत्याचार से परेशान हैं| सभी देशों को मिलकर वैश्विक जनाधार व राजनीतिक दवाब को संबल बनाकर पाकिस्तान का सफाया कर देना चाहिए| महाकाल के सशक्त काल में ऐसा होकर ही रहेगा| प्राकृतिक सम्पदा और खनिजों से परिपूर्ण बलूचिस्तान राज्य को पाकिस्तान ने अपने तुरन्त के फायदे के लिए कभी विकसित होने ही नही दिया| वहाँ के लोगों एवं महिलाओं का पूर्ण शारीरिक शोषण करते रहे हैं और मारने के बाद शारीरिक अंग की तस्करी भी करते हैं| इतना गैर गुजरा, आदमखोर/राक्षस/ मलेक्ष पाकिस्तानियों को दुनिया में रहने का कोई हक नही है| अल्लाह से गुजारिश है कि इन नापाकों को जहन्नुम में भी जगह न दे|    जय हिन्द जय भारत डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

एकावली छन्द

      पंकजवाटिका/एकावली छंद विधान~ [ भगण नगण जगण जगण+लघु] (211  111   121  121 1) 13 वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] गीत भजन  सुर ताल बजावत|| नित्य परम  प्रभु पुष्प चढ़ावत || छंद  सकल शुभ कर्म सुहावत| प्रीत मधुर  भव  पार  लगावत|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'     पंकजवाटिका/एकावली छंद विधान~ [ भगण नगण जगण जगण+लघु] (211  111   121  121 1) 13 वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] रीत जगत  करनी सुख  राहत| मीत लगन सजनी मन चाहत|| ओज सरस जननी गुन जागत | प्रेम सुखद प्रतिभा धुन लागत|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

मृगेंद्रमुख छन्द

🌸 *मृगेंद्रमुख छंद* 🌸 विधान- नगण जगण जगण रगण गुरु (111 121 121 212  2) 2-2चरण समतुकांत,4चरण। तन -मन चाहत मीत प्रीत साजे| प्रतिपल राहत राग  गीत बाजे|| मधुरिम  मोहक नीर संग  धारा| सुखमय सूरत साथ हाथ तारा|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

नमस्कार का महत्व

नमस्कार अथवा नमस्ते भारतीय महाद्वीप में अभिवादन करने का एक प्रचलित चलन है | इसका प्रयोग किसी व्यक्ति से मिलने अथवा उससे विदाई लेते समय, दोनों में किया जाता है | नमस्कार करते समय उस व्यक्ति का पीठ आगे की ओर झुकी हुर्इ, छाती के मध्य में हथेलियाँ आपस में जुड़ी हुई व उंगलियां आकाश की ओर होती है । इस मुद्रा के साथ साथ वह व्यक्ति ‘नमस्ते’ या ‘नमस्कार’ शब्द बोलते हुए अभिवादन करता है | हाथों की इस मुद्रा को नमस्कार मुद्रा कहते हैं | जापानी तरीके की तरह बिना स्पर्श के, झुक कर हाथ को लहराकर, अभिवादन  करना, लोकप्रिय तरीका होने के बावजूद, आध्यात्मिक दृष्टि से यह अभिवादन  अन्य  सभी के तरीकों से भिन्न है | इस लेख के माध्यम से हम इसके आध्यात्मिक अर्थ तथा हमें इसके आध्यात्मिक स्तर पर मिलने वाले लाभ को  समझेंगे | २. नमस्कार अथवा नमस्ते का अर्थ ‘नमस्कार’ एक संस्कृत शब्द है जो संस्कृत के ‘नमः’ शब्दसे लिया गया है, जिसका अर्थ है प्रणाम करना | हमारे लेख ” मनुष्य किन घटकों से बना है ?”, में हमने बताया है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर परमात्मा (ईश्वरीय तत्व) होता है जिसे हम आत्मा कहते हैं | नमस्कार अथवा नमस्

मुक्तक

बनेगा प्रेम का बंधन, मधुर मझधार भी होगी, रहेगा प्रीत का दामन, सुहानी शाम भी होगी, मिलन की बाँसुरी, मन में मधुर सा   राग गाएगी, बजेगा राग  तेरे संग  दिवानी  ताल  भी होगी|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

बरवै छन्द (साहिल)

💐 बरवै छन्द 💐 प्रथम एवं तृतीय चरण में १२ -१२ मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में ७-७ मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में जगण (ISI )होता है। शरणागत हूँ माता, सुनो पुकार || मन मन्दिर के सारे, हरो विकार|| भाव स्नेह ममता से, भरो अगार| सुंदर सुख साधन से, भरो विचार|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

संग्राम (गीत) डाॅ0 राहुल शुक्ल साहिल

हर इंसा पत्थर नही, मन में भर लो ओज| वफा मीत की ना मिले, मीत खोजिए रोज||         _गीत_    16 ×16            ⚜ संग्राम ⚜ संग्राम  सत्य  का   लड़  लेगें| तन - मन को मन्दिर कर लेगें| ईर्ष्या कल्मष को तजकर हम| हिय   में  मृदुमयता भर  लेगें| जन -जन सेवा का प्रण लेकर, जीवन   भावों  से  भर   लेगें| तप त्याग तितिक्षा को संग कर, भव  बंधन  का  भय  हर  लेगें| पर  पीड़ा  करुणा  दुखियों  की, सुखमय   कर्मों    से  हर  लेगें|| सौहार्द  स्नेह  व  समता से, सागर को 'साहिल' कर लेगें|    © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

जत जय शिव शम्भू (घनाक्षरी)

जय जय शिव शम्भू , जय जय भोले नाथ, जय जय शंकर की, कृपा  सदा  बरसे।    तन- मन घन घूमे, जन जन सुन झूमे, बम बम बम भोले, बाल  वृद्ध   हरषे| घन - घन   घनाक्षरी, शिव-शिव शब्दाक्षरी, कण- कण  में दर्शन, मानुष  क्यूँ  तरसे | देव   महादेव   कहो, जग का आधार कहो, पूजन  अर्चन   शिव, हिय   मेरा    हरसे |      © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

दिव्य कुम्भ भव्य कुम्भ 2019 (तंत्री छंद/साहिल)

◆तंत्री छंद◆ विधान~ प्रति चरण 32 मात्राएँ,8,8,6,10मात्राओं पर यति चरणान्त 22 , चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत। निर्मल शीतल, तन - मन भावै, माँ गंगे, सब पाप मिटाए| गंगा यमुना, पावन संगम, जन्म जन्म, भव रोग भगाए| साधक याजक, संत समाजी, साधु गुणी, जुड़ आया मेला| बाल वृद्ध जन, दर्शन सुन्दर, दिव्य कुम्भ, की मधुरिम बेला|| ©डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल' [3/8, 12:52] राहुल शुक्ला: Thursday, 31 August 2017    तंत्री छन्द (सोम जी ) विधान~ प्रति चरण 32 मात्राएँ,8,8,6,10मात्राओं पर यति चरणान्त 22 , चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत। हे मनमोहन,हे मनभावन,                    जगपालक,राधा के प्यारे। हे वंशीधर, मोरमुकुटधर,                     यशुदासुत, हे  नंददुलारे।। वेणु  बजैया, धेनु  चरैया,                     दीनबंधु,जग  पालनहारे। हे मधुसूदन,कृपा करो जू,                    सोम पड़ा,है द्वार तिहारे।।                            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"               ◆तंत्री छंद◆ विधान~ प्रति चरण 32 मात्राएँ,8,8,6,10मात्राओं पर यति चरणान्त 22 , चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत। कोशि