ग़ज़ल बहर~221 1222 221 1222 तुम दूर खड़े हो तुमको पास बुलाना है | जब प्यार किया है तो फिर प्यार निभाना है|| संसार हमारा ये खुशहाल तुम्हीं से है| मुस्कान बिखेरे ऐसा दीप जलाना है|| ये सृष्टि तुम्हारी बन आधार गया सबका| फिर छोड़ तुम्हें कब किसका और ठिकाना है। दो बोल जरा मीठे दो बोल कि मौसम है | सरकार बना तुमको आदेश सुनाना है| फिर गर्म हवायें प्यासी छेंड़ रहीं देखो| सब तार खिंचे तन मन स्वर साज सजाना है|| हो मौन गया उमड़ी है पीर सरस मन में| हैं क्रूर लुटेरे इज्ज़त आज बचाना है|| 🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊 दिलीप कुमार पाठक "सरस"
जितना भी चाहता हूं, सब मिल ही जाता है, अब दुख किस बात का ॽ