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Showing posts from 2019

अनुशासन

             त्रिपदिक जनक छंद संस्कृत के प्राचीन त्रिपदिक छंदों (गायत्री, ककुप आदि) की तरह जनक छंद में भी ३ पद (पंक्तियाँ) होती हैं. दोहा के विषम (प्रथम, तृतीय) पद की तीन आवृत्तियों से जनक छंद बनता है. प्रत्येक पद में १३ मात्राएँ तथा पदांत में लघु गुरु या लघु लघु लघु होना आवश्यक है. पदांत में सम तुकांतता से इसकी सरसता तथा गेयता में वृद्धि होती है. प्रत्येक पद दोहा या शे'र की तरह आपने आप में स्वतंत्र होता है . जनक छंद की बात की जाए तो इसके पाँच भेद हैं🌺💐💐👌 1- शुद्ध जनक छंद - जहाँ पहले और अंतिम पद की तुक मिले। 2- पूर्व  जनक  छंद- पहले दो पद तुकांत 3- उत्तर जनक छंद- अंत के दो पद तुकांत 4- घन  जनक छंद - तीनों पद तुकांत 5- सरल जनक छंद- तीनों पद अतुकांत। राम नाम  ही सार है राम राम  कहते रहो समझो नौका पार है       ~शैलेन्द्र खरे "सोम" 🌷💐🌷💐🌷💐🌷🌷 1- शुद्ध जनक छंद - जहाँ पहले और अंतिम पद की तुक मिले। तारा नयन कमाल है| सुन्दर सूरत देखकर| बिगड़ा  मेरा हाल है| ================= 2- पूर्व   जनक  छंद - पहले दो पद तुकांत मनभावन सा साथ है| संग  मी

रमेश छन्द (डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल')

     🎍रमेश छंद🎍 विधान~ [नगण यगण नगण जगण] ( 111  122  111  121 ) 12 वर्ण, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत] मुदमय  तारा  मधुरिम  रूप| प्रियतम है तू  सुखद अनूप|| तन - मन चाहे प्रतिपल नेह| हृदय  बसा है सुरमय स्नेह|| ©डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

कुसुमविचित्रा छन्द (यौवन)

    🎍 कुसुमविचित्रा छंद 🎍 विधान~ [नगण यगण नगण यगण] (111  122  111 122 ) 12 वर्ण, 4 चरण दो-दो चरण समतुकांत हर पल  चाहूँ  प्रियवर छाया| मधुरिम लागे उजियर काया|| हलचल  जैसे  सरगम  धारा| हिय सुख पाऊँ लखकर तारा|| सुखद धनी यौवन सुख पाए| सरस वही  मोहक मन भाए|| सुखद  लगे नैनन  मन भाषा| समझ गया चाहत परिभाषा|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

दिलों की हलचलें

मुक्तक १२२२× ४ दिलों की हलचलें समझो जरा तुम प्यार तो कर लो, बढ़ी है  धड़कने सुन लो, जरा  इजहार तो  कर लो, वही अब  बन गई है  जिन्दगी की  हमसफर  मेरी, फसाने  प्रेम  के  मेरे  सभी  स्वीकार  तो  कर  लो|      ❤ साहिल 🙏         बेल/लता  🎊      (1222×4 मुक्तक) गले जब तुम लगाती हो उमंगे जाग जाती है| इशारे देखकर चाहत शराफ़त भाग जाती है| लता जैसे लिपटकर पेड़ को साथी  बनाती है| मुहब्बत़ की रवानी बेल सी चढ़ती हि जाती है|   © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

शुभमाल छन्द जय श्री राम. (माँ गोदावरी की आरती, रामघाट, चित्रकूट, विडियो)

             🌲 शुभमाल छन्द 🌲        जगण जगण (121 121) हरो  दुख  पीर| भरो  मन  धीर|| भजो  प्रभु नाम| करो शुभ काम|| भरो  मन  आस| हिया विभु प्यास|| रहे    सहकार | करे   जयकार|| बली   हनुमान| मिले सुख ज्ञान|| जपो चिर राम| सिया वर  राम|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'       🙏 जय श्री राम🙏        🍂शुभमाल छंद🍂 शिल्प:- जगण जगण (121 121), दो-दो चरण तुकांत, [6 वर्ण प्रति चरण] सजे  सुर  ताल| मृदंग   धमाल|| करो  शुभ गान| बजे मृदु  तान|| भजो प्रभु  नाम| तजो दुख काम|| मिटे  सब  दोष| रहे  नहि   रोष|| बने  सब  काम| जपो  प्रभु राम|| कहो  घनश्याम| सिया  वर  राम|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'         जय श्री राम

मंदाक्रान्ता छन्द (साहिल)

🍁 मंदाक्रान्ता छंद 🍁 विधान~ [{मगण भगण नगण तगण तगण+22} ( 222  211  111  221  221 22) 17 वर्ण, यति 4, 6,7 वर्णों पर, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत] झूमे  नाचे,  मुद  मगन  हो, संग  में गीत  गाएँ | आशा रूपी, जग सुख मिले, स्नेह की डोर पाएँ || गंगा सी है, शुभ्र  रुपहली, पीत  की श्वेत धारा | मोती  जैसे, नयन  चमके, रात  की  प्रीत  तारा || © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

शुभमाल छन्द (जय राम) डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

 🍂शुभमाल छंद🍂 शिल्प:- जगण जगण (121 121), दो-दो चरण तुकांत, [6 वर्ण प्रति चरण] सजे  सुर  ताल| मृदंग   धमाल|| करो  शुभ गान| बजे मृदु  तान|| भजो प्रभु  नाम| तजो दुख काम|| मिटे  सब  दोष| रहे  नहि   रोष|| बने  सब  काम| जपो  प्रभु राम|| सिया  वर  राम| सभी सुख धाम|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'          जय श्री राम       शुभमाल छन्द   जगण जगण (121 121) हरो  दुख  पीर| भरो  मन  धीर|| भजो  प्रभु नाम| करो शुभ काम|| भरो  मन  आस| हिया विभु प्यास|| रहे    सहकार | करे   जयकार|| बली   हनुमान| मिले सुख ज्ञान|| जपो  चिर राम| सिया वर  राम|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'       🙏 जय श्री राम🙏

बल/ बलवान पर दोहे (डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल')

🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍🎍                   🍂बल🍂 ज्ञान  बुद्धि  जन  शक्ति  से,  होता  है  उद्धार| सेहत धन है बल बड़ा, कलियुग का आधार|| धीर  वीर बलवान  वो, जो  साहस  को पाय | तन मन धन सम्पन्न हो, हनुमत सदा सहाय || धीरवान  ही  वीर  है, कर्मी  है  बलवान| धर्म राह पर जो चलै, जगत करे गुणगान|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल '

परिवार (दिलीप कुमार पाठक 'सरस')

 परिवार ~एक पृष्ठभूमि  शैली~व्यंग्यात्मक , सूत्रात्मक एवं उपदेशात्मक | 🌹🙏🏻🌹 🖊मानव जीवन की प्रथम पाठशाला कहा जाने वाला परिवार रीढ़ विहीन हो चुका है, इसमें साहब चौंकने वाली कोई बात नहीं है|आज भौतिकतावादी युग ने अनौपचारिकता की हत्या कर औपचारिकता को इतना बढ़ावा दिया है कि सारे रिश्ते नाते दम तोड़ते नज़र आते हैं |हम सब व्यक्तिवादिता की उस ऊँचाई पर पहुँच गये हैं, जहाँ से एक सोच जन्म लेती है और वह है आत्महत्या |स्वयं को ख़त्म करने के हमने सारे साधन जुटा लिए हैं, पल पल घुट रहे हैं, पल पल मर रहे हैं, पल पल अपनी मनमानी कर रहे हैं, पल पल एक दूसरे को नीचा दिखाने का मौका ढूँढ़ रहे हैं |साहब विकास की बात कौन करे?किसके विकास की बात करे?और क्यों विकास की बात करे? कैसे विकास की बात करे?स्वार्थ का अपच इतना बड़ गया है  ,कि पेट के साथ आँखों का भी पानी मर गया है |हाँ प्राचीनकाल के सम्बन्धों की दुहाई देते हुए, निज स्वार्थ को भुना रहे हैं| परिवार आज जीभ काढ़े पड़ा है ,अंतिम साँसों के साथ अलविदा भी कहने में बेबस बेचारा | कभी परिवार हुआ करते थे, जिसे संयुक्त परिवार कहते हैं |पर अब परिवार औपचारिकता

तिलका छन्द (जयराम जपो)

🍂  तिलका छंद  🍂 शिल्प (सगण सगण (112 112) दो दो चरण तुकांत ,6वर्ण मन की सुन लो| अपनी  सुन लो|| सपने  बुन   लो| अपने  चुन  लो|| तन है  मन का| मन है तन का|| हम साथ  चले| मिल हाथ गले|| पग भी  महके| जग भी महके|| भज लो महिमा| प्रभु की गरिमा|| हिय  में  हरषे | किरपा  बरसे|| हरते  दुख  हैं| भरते  सुख हैं|| अविराम जपो| सियराम जपो|| जयराम  जपो| नित राम जपो|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल ' तिलका छंद शिल्प (सगण सगण (112 112) दो दो चरण तुकांत ,6वर्ण मन से कुछ तो | अब चिंतन हो|| मुदिता मन की| शुचिता तन की|| उर ध्यान धरो| गुरु आत्म करो|| मन धीर धरो| शुभ काम करो|| प्रभु नाम भजो| मन लोभ तजो|| झुक आदर से| निकलो घर से|| बनके बदरा| सबके अधरा|| छवि छाँव छटा| घनकेश घटा|| मन प्यास जगी| कुछ आस जगी|| कर काम रुका| चल शीश झुका || 🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊 दिलीप कुमार पाठक "सरस" ◆ तिलका छंद ◆ शिल्प:- [सगण सगण(112 112), दो-दो चरण तुकांत (6वर्ण प्रति चरण) कुछ काम करो| जग नाम करो|| सब साथ खड़े| मम भ्रात बड़े|| शुरुआत करो| कुछ बात करो|

जय श्रीराम- जय हनुमान

🌲  🌲 शुभमाल छन्द 🌲        जगण जगण (121 121) हरो  दुख  पीर| भरो  मन  धीर|| भजो  प्रभु नाम| करो शुभ काम|| भरो  मन  आस| हिया विभु प्यास|| रहे    सहकार | करे   जयकार|| बली   हनुमान| मिले सुख ज्ञान|| जपो   जयराम| सिया वर  राम|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'       🙏 जय श्री राम🙏 🙏

गुरुदेव की बधाई

प्रिय, अनुज साहिल व अनुजवधू को पावन वैवाहिक वर्षगांठ की बहुत-बहुत बधाईयां संग आशीष🌿💐🍁☘🍀🌷🌹🌸🍫🍫🍫🍫🧁🍹🍸🍰🥣🥣     ®℅ चौकड़िया ℅® वैवाहिक वर्षगाँठ की भाई........                       होवै खूब बधाई। प्रिय साहिल जीवन साहिल संग,                        जैवैं दूध मलाई। सारी खुशियाँ मिलें जगत कीं,                      कृपा करें रघुराई। खिली रहे जीवन की बगिया,                    घर-बाहर अमराई। "सोम"सदा सुख सम्पत इन घर,                 नित नूतन अधिकाई। 🌿💐🌸🌹🌹🌹🍁☘🍀🌷🌷🌷🌷 आ. डॉ. राहुल साहिल दा श्री को एवं आ. कान्ति प्रभा भाभी श्री को विवाह वर्षगाँठ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ     विमोहा छंद  शुक्ल आधार की| है प्रभा प्यार की|| साथ साथी मिला| फूल सा है खिला|| वर्ष है हर्ष का| नेह आदर्श सा|| कान्ति पा दर्श की| नैन के स्पर्श की|| नेह की देह की| कान्ति है गेह की|| झूम के चूम के| देखती घूम के|| कर्म के संग में| धर्म के संग में|| प्रेम की पा गली| साथ में जो चली || 🖊🖊🖊🖊🖊🖊 दिलीप कुमार पाठक "सरस"

विमोहा छन्द

  🎍विमोहा छंद🎍 शिल्प:- [रगण रगण(212 212), दो-दो चरण तुकांत, 6 वर्ण] मोर  की   मोरनी| चाँद  की चाँदनी|| राग  की  रागिनी| मेल  है  कामिनी|| मस्त  तू  बोलना| बात  को तोलना|| भाव  हो  नेह  हो| प्रेम हो  स्नेह  हो|| मान हो  गान हो| प्रीत हो भान हो|| बोध हो  गोद हो| मीत हो मोद हो|| रात  का  द्वंद  हो| प्रेम का  छंद हो|| रीत  हो  गीत हो| शब्द की जीत हो|| रंग  हो  संग हो| रास हो ढ़ंग हो|| रूप की धार हो| मोहिनी नार हो|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'   🎍विमोहा छंद🎍 शिल्प:- [रगण रगण(212 212), दो-दो चरण तुकांत, 6 वर्ण] प्रेम की  कामना| स्नेह की साधना|| मोहनी  तारिका| सोहनी सारिका|| रूप  है   राधिका| प्रीत की साधिका|| संग   है  संगिनी| ताल  है  रागिनी|| © साहिल

जीवन की रीत (डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल')

नफरत की  मिट्टी में  पौध नफरत का ना बोना, जो प्रेम  आपसे करते हैं उनके रिश्ते ना खोना| माना संघर्षों की बगिया में स्वारथ के रिश्ते मिलते हैं, पर बीज, प्रेम का बोने से कंटक भी हँसते मिलते हैं| कंटक को पीछे छोड़, खुशियों का पुष्प खिलाएँगें| मधुर -मधुर सौगातों से जीवन बगिया महकाएँगे| जो भूल गए है हमको, उनकी करना परवाह नही, हर प्राणी में परमेश्वर है, जीवन की रीत बनाएँगे| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

प्रसाद क्या है ! डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

प्र  ~ प्रभु के सा ~ साक्षात द  ~  दर्शन आत्मा की तृप्ति ही प्रसाद है| ईश्वर की अर्चना, अराधना, पूजन एवं साधना में भगवान को सूक्ष्म रूप से अर्पित भोज्य पदार्थ/ भोग को प्रसाद कहते हैं, जिसका कुछ अंश ग्रहण करना ही शरीर में ऊर्जा एवं सात्विकता प्रदान करता है|  © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

बरवै छ्न्द

           🍁  बरवै-छंद 🍁 (विषम पदों में 12, सम पदों में 7 मात्राएँ) चरणान्त 121 रखना है । मन मन्दिर बसते हैं,जय सियराम| बिगड़े सब होते हैं, पूरन काम|| जीवन  मेरा   तारो,  तारनहार | संकट  सारे   काटो, पालनहार||  © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

दुर्मिल सवैया छन्द (सरस)

छंद दुर्मिल सवैया सगण(112*8) तुमसे मन छंद अमंद मिला, तिहुँ लोक सदैव प्रताप रहे| तुम जीत गये हम हार गये, हँसके हम तो चुपचाप रहे| मन मान समान नहीं कुछ भी, सब  अन्दर  अन्दर नाप रहे| तन की मन की गति जीवन की, सुखधाम  धरा  मम  आप  रहे| 🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊 दिलीप कुमार पाठक "सरस"

कुछ दोहे 'साहिल' की कलम से

१) नारी का सम्मान हो, नारी देवी रूप| सकल साधना मान है, नारी रूप अनूप|| २) सत्य सनातन धर्म है, हिन्दू की पहचान| मन वाणी अरु कर्म से, राम नाम सम्मान|| ३) सुख दुख में जो साथ हो, वही कहाए मित्र| संकट में  व्यवहार से, बने  हृदय पर  चित्र|| ४) चार चरण की ताल हो, भाव मधुर मकरन्द| मन  मन्दिर में प्रेम का, लिख दो प्यारा छंद|| ५) तमस देश का हट रहा, मन की यही पुकार| स्वच्छ सदा सरकार हो, सबकी  है हुंकार|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

संजीवनी वेलफेयर सोसायटी के स्नेहिल साथियों के स्वभावानुसार दोहा लेखन

*ऋषि~* बेताबी सह ना सकूँ, मीत तके है नैन| सौ बिमारी घेर रही, तन मन है बेचैन|| *गिरीश~* देश प्रेम की भावना, भजते निशदिन ईश| हमसफर नही चाहिए, मन में बसे गिरीश|| *डॉ० विशाल~* खाने के शौकीन हैं, मन के है गम्भीर| बहुत दिनों में ही मिले, देखो विकट शरीर|| *डॉ० द्विवेदी~* दवा दुआ भण्डार है, अतुल ज्ञान के वीर| सबके दिल में है बसे, बाबा है गम्भीर|| *श्रवण शुक्ल~* तन का भार बढ़ाइए, मन हो निश्चल नीर| गलत काज ना सह सके, कहकर मारे तीर|| *मिथलेश~* दवा दुआ दारू मिलै, जीवन है संग्राम| समय पे अपना काम करो, कह गय हैं श्री राम|| *सतीश~* दुनिया लगती गोल है, साहब जी के बोल| आँख नशीली कह रही , शिव भक्ति अनमोल|| *तनुज~* कम्प्यूटर सा तेज है, तन मन जिसका वीर| मोबाइल पे नाचता, देखो मनुज शरीर ||    *डॉ० पीयूष~* लम्बे चौड़े हो गये, बचपन माँगै रोज| सब के प्यारे मित्र हैं, सदा निरखते भोज||

प्यार गजल और मन की बातें

अधूरा है संसार मधुप्रीत के बिना, अधूरा है संसार  संगीत के  बिना, मन मन्दिर में बस जाए जब कोई, अधूरा है संसार मनमीत के बिना| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल' दिवाना दिल बिखर कर मोतियों सा टूट जाता है, कोई हमदम गले का हार जब रूठ जाता है| 'साहिल' कारण तो आप ही जाने प्रभु जी, गुरुवर की कृपा महान है| हृदय कोश से निकले अद्भुत, व्याकुल विकल उद्गार है| सर्जन अनुपम है सुखद सरल, घटता  जीवन  संताप  है | पल - पल गुरुवर की धारा से, मिटता कालुष जग पाप है|    © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल' बंशी धुन है प्रीत की, मनभावन है रात| दीपक जगमग लग रहे, मोर पंख सौगात|| सब रंगो की रंगोली, जैसे पंख मयूर| बंशी की धुन मोह ले, राधा मन भरपूर|| दीप जलाओ प्रीत का, रंगोली हो द्वार| तन मन में हो भावना, शुद्ध सरल सहकार||                          उदासी कभी जो पास आओ तुम गले से मैं लगा लूँगा, सुखद अनुभूतियाँ मिलकर पलों में  मैं जगा लूँगा, सुलगती प्रीत की रातें बिताई कैसे हैं दिलबर, मिली तुमसे मुहब्बत जो उदासी मैं मिटा लूँगा| कार्यकुशल  हो दृढ़  हो  दक्ष, तन-मन सुन्दर स्वच्छ पुनीत,

विश्व जनचेतना ट्रस्ट का कार्यक्रम (19/03/2019)

🎍🎍  कार्यक्रम समीक्षा  🎍🎍 🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷         विश्व जनचेतना ट्रस्ट 'भारत' आनलाइन काव्य सम्मेलन (19/03/2019) सायं ~6 बजे नवल किरण सी जग गयी, नमन बने अब आस| सरस रंग में रंग लो, सम्मेलन है पास; चलो सब मिलकर गायें, खुशी के गीत सुनाये | _अनुज नीतेन्द्र सिंह परमार 'भारत'  की अटूट सद्भावना एवं सजग प्रयासों से, प्रिय भाई दिलीप कुमार पाठक 'सरस' जी के सतत मार्ग दर्शन में, आ० ममता सिंह राठौर 'मीत' जी के सुमधुर विचारों से, होली के रंगीन अवसर पर आनलाइन काव्य सम्मेलन की रूपरेखा बन सकी |_ आ० सन्त गुरु शैलेन्द्र खरे 'सोम' जी के आशीर्वचन रूपी प्रेरक शब्दों से आनलाइन कार्यक्रम एवं सभी साथियों को संबल प्राप्त हुआ| आ० कौशल कुमार पाण्डेय 'आस' जी का आशीर्वाद भी समय- समय पर हमें प्राप्त होता रहा है, आशा है कार्यक्रम में अपनी अनमोल उपस्थिति से कार्यक्रम में रंग भरेगें| कार्यक्रम अध्यक्ष आ० सुशीला धस्माना 'मुस्कान' दीदी जी के स्नेहिल शब्दों से हमें हमेशा सशक्त संबल मिलता है और नवाचार करने को आतुर हो जाते है

कहो कुछ बात तो दिलबर

कहो कुछ बात तो दिलबर, तुम्हारी  याद  आती  है | तेरी यादों के ख्वाबों से, मुझे अब नींद आती है|     ख्वाब़ होगा हकीकत में, यही  उम्मीद  रखता  हूँ, सनम आगोश की जिन्दा, सदा  तस्वीर रखता  हूँ| दर्द  गहरा  जुदाई   का, भरेगा  प्रेम  से  दिलबर, मिलेगा  स्नेह  जो  तेरा, मैं खुद को ही बदल लूंगा| यकिं आता नही है सामने तस्वीर तेरी ही, मुहब्बत़ की कहानी में तकदीर तेरी ही|      © साहिल लफ्ज़ आपके हरदम प्रेम की बात तो करते, दिल की गहराईयों से मिलन फरियाद तो करते|                    © साहिल

विश्व जनचेतना ट्रस्ट का कार्यक्रम (19/03/2019)

🎍🎍  कार्यक्रम समीक्षा  🎍🎍 🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷         विश्व जनचेतना ट्रस्ट 'भारत' आनलाइन काव्य सम्मेलन (19/03/2019) सायं ~6 बजे नवल किरण सी जग गयी, नमन बने अब आस| सरस रंग में रंग लो, सम्मेलन है पास; चलो सब मिलकर गायें, खुशी के गीत सुनाये | _अनुज नीतेन्द्र सिंह परमार 'भारत'  की अटूट सद्भावना एवं सजग प्रयासों से, प्रिय भाई दिलीप कुमार पाठक 'सरस' जी के सतत मार्ग दर्शन में, आ० ममता सिंह राठौर 'मीत' जी के सुमधुर विचारों से, होली के रंगीन अवसर पर आनलाइन काव्य सम्मेलन की रूपरेखा बन सकी |_ आ० सन्त गुरु शैलेन्द्र खरे 'सोम' जी के आशीर्वचन रूपी प्रेरक शब्दों से आनलाइन कार्यक्रम एवं सभी साथियों को संबल प्राप्त हुआ| आ० कौशल कुमार पाण्डेय 'आस' जी का आशीर्वाद भी समय- समय पर हमें प्राप्त होता रहा है, आशा है कार्यक्रम में अपनी अनमोल उपस्थिति से कार्यक्रम में रंग भरेगें| कार्यक्रम अध्यक्ष आ० सुशीला धस्माना 'मुस्कान' दीदी जी के स्नेहिल शब्दों से हमें हमेशा सशक्त संबल मिलता है और नवाचार करने को आतुर हो जाते है

गजल संग्रह (दिलीप कुमार पाठक सरस)

ग़ज़ल बहर~221 1222 221 1222 तुम दूर खड़े हो तुमको पास बुलाना है | जब प्यार किया है तो फिर प्यार निभाना है|| संसार हमारा ये खुशहाल तुम्हीं से है| मुस्कान बिखेरे ऐसा दीप जलाना है|| ये सृष्टि तुम्हारी बन आधार गया सबका| फिर छोड़ तुम्हें कब किसका और ठिकाना है। दो बोल जरा मीठे दो बोल कि मौसम है | सरकार बना तुमको आदेश सुनाना है|  फिर गर्म हवायें प्यासी छेंड़ रहीं देखो| सब तार खिंचे तन मन स्वर साज सजाना है||        हो मौन गया उमड़ी है पीर सरस मन में| हैं क्रूर लुटेरे इज्ज़त आज बचाना है|| 🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊 दिलीप कुमार पाठक "सरस"

बलूचों पर अत्याचार

बलूचों पर पाक का अत्याचार भयानक व दर्दनाक  है| भारत, बलूचिस्तान, ईऱान, अफगान, अमेरिका, बंग्ला देश इत्यादि बहुत से ऐसे देश हैं, जो नापाक काम करने वाले पाक को पसन्द नही करते और पाक के चुप्पा आतंक और अत्याचार से परेशान हैं| सभी देशों को मिलकर वैश्विक जनाधार व राजनीतिक दवाब को संबल बनाकर पाकिस्तान का सफाया कर देना चाहिए| महाकाल के सशक्त काल में ऐसा होकर ही रहेगा| प्राकृतिक सम्पदा और खनिजों से परिपूर्ण बलूचिस्तान राज्य को पाकिस्तान ने अपने तुरन्त के फायदे के लिए कभी विकसित होने ही नही दिया| वहाँ के लोगों एवं महिलाओं का पूर्ण शारीरिक शोषण करते रहे हैं और मारने के बाद शारीरिक अंग की तस्करी भी करते हैं| इतना गैर गुजरा, आदमखोर/राक्षस/ मलेक्ष पाकिस्तानियों को दुनिया में रहने का कोई हक नही है| अल्लाह से गुजारिश है कि इन नापाकों को जहन्नुम में भी जगह न दे|    जय हिन्द जय भारत डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

एकावली छन्द

      पंकजवाटिका/एकावली छंद विधान~ [ भगण नगण जगण जगण+लघु] (211  111   121  121 1) 13 वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] गीत भजन  सुर ताल बजावत|| नित्य परम  प्रभु पुष्प चढ़ावत || छंद  सकल शुभ कर्म सुहावत| प्रीत मधुर  भव  पार  लगावत|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'     पंकजवाटिका/एकावली छंद विधान~ [ भगण नगण जगण जगण+लघु] (211  111   121  121 1) 13 वर्ण,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत] रीत जगत  करनी सुख  राहत| मीत लगन सजनी मन चाहत|| ओज सरस जननी गुन जागत | प्रेम सुखद प्रतिभा धुन लागत|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

मृगेंद्रमुख छन्द

🌸 *मृगेंद्रमुख छंद* 🌸 विधान- नगण जगण जगण रगण गुरु (111 121 121 212  2) 2-2चरण समतुकांत,4चरण। तन -मन चाहत मीत प्रीत साजे| प्रतिपल राहत राग  गीत बाजे|| मधुरिम  मोहक नीर संग  धारा| सुखमय सूरत साथ हाथ तारा|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

नमस्कार का महत्व

नमस्कार अथवा नमस्ते भारतीय महाद्वीप में अभिवादन करने का एक प्रचलित चलन है | इसका प्रयोग किसी व्यक्ति से मिलने अथवा उससे विदाई लेते समय, दोनों में किया जाता है | नमस्कार करते समय उस व्यक्ति का पीठ आगे की ओर झुकी हुर्इ, छाती के मध्य में हथेलियाँ आपस में जुड़ी हुई व उंगलियां आकाश की ओर होती है । इस मुद्रा के साथ साथ वह व्यक्ति ‘नमस्ते’ या ‘नमस्कार’ शब्द बोलते हुए अभिवादन करता है | हाथों की इस मुद्रा को नमस्कार मुद्रा कहते हैं | जापानी तरीके की तरह बिना स्पर्श के, झुक कर हाथ को लहराकर, अभिवादन  करना, लोकप्रिय तरीका होने के बावजूद, आध्यात्मिक दृष्टि से यह अभिवादन  अन्य  सभी के तरीकों से भिन्न है | इस लेख के माध्यम से हम इसके आध्यात्मिक अर्थ तथा हमें इसके आध्यात्मिक स्तर पर मिलने वाले लाभ को  समझेंगे | २. नमस्कार अथवा नमस्ते का अर्थ ‘नमस्कार’ एक संस्कृत शब्द है जो संस्कृत के ‘नमः’ शब्दसे लिया गया है, जिसका अर्थ है प्रणाम करना | हमारे लेख ” मनुष्य किन घटकों से बना है ?”, में हमने बताया है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर परमात्मा (ईश्वरीय तत्व) होता है जिसे हम आत्मा कहते हैं | नमस्कार अथवा नमस्