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Showing posts from September, 2018

रमेश छन्द (गुुरु स्तुति)

🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊      ♧  रमेश छंद  ♧ विधान ~ [ नगण यगण नगण जगण] ( 111  122  111  121 ) 12 वर्ण, 4 चरण दो-दो चरण समतुकांत]                    *गुरु महिमा* गुरुवर   मेरे  भगत   महान। तन मन बंदौ अविरल मान।। हर  दिन देते  गुरुजन  ज्ञान। जग पथ होता मन सुखवान।। जग  तम के है रविसम काल। पल -पल है जीवन विकराल।। भव भय काटैं मिलत प्रकाश। बिन गुरु जैसे जग अवकाश।। सब जन पूजैं जग गुरु सोम। नमन करूँ मैं निशदिन ओम।। गुरु हर  लेते  सब दुख शोक। जग पथ पाऊँ सुगम अशोक।। ©  डाॅ• राहुल शुक्ल "साहिल"

शिव वन्दन (शैलेन्द्र खरे 'सोम' गुरुदेव)

🌸🍀🌺🌺🍀🍀🍀👏👏👏👏👏 ◆शिव-वंदन◆    किरीट सवैया में............. शिल्प~8 भगण(211×8) कुल 24 वर्ण हे  गिरजापति  श्री  शिवशंकर,                 सोहत है अति भाल सुधाकर। दीन दयाल  दया  करिये  अब,                  दोष सभी मम नाथ क्षमाकर।। आप  त्रिलोचन  संकट मोचन,                   तेज रमें तन  कोटि प्रभाकर। राखत"सोम"विलोम गले बिच,                   ये मन है तिनको पद चाकर।। *मदिरा सवैया* में....... शिल्प~[211*7+2/यति 10,12] आदि अनंत अलौकिक हो,              प्रलयंकर शंकर काल हरे। कालन के तुम काल कहे            बलवंत महा जग पाल हरे।। हे गिरजापति देव सुनो           सब जोड़ खड़े करताल हरे। "सोम"ललाट भुजंग गले,             करुणाकर दीनदयाल हरे।। *मत्तगयन्द सवैया* में ....... शिल्प~[7 भगण+2गुरू/12,11पर यति] शेष दिनेश सुरेश जपें नित,             शारद  गावत  गावत  हारी। वेद पुराण भरें जिनके यश,             संत अनंत भजें सुखकारी।। देख रहे सचराचर ही सब,            केवल आस जगाय तिहारी। "सोम"ललाट सजे जिनके वह,            देवन   के  अधिदेव  पुरा

मनहरण घनाक्षरी (इंतजार) डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

🏆  मनहरण घनाक्षरी 🏆 शिल्प : प्रति चरण 31 वर्ण (8,8,8,7 वर्णों में पँक्तिबद्ध) चरणान्त 12 सोहत सूरत खूब, मधुर मिलन मस्त, मन मोर मचलत, मंगल बहार है। नयन हिरन सम, काजल चमक  चम, ओंठ कमल पाखुरी, जियरा में भार है। गर्दन सम गागरी, हँसी खिलत साँवरी, कमरिया लचकत, चढ़त खुमार है। तन  मन  तड़पत,धक धक धड़कत, मिलन को तरसत,तेरा  इंतजार  है।  © डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

आ० बिजेन्द्र सिंह 'सरल' जी की उत्कृष्ट समीक्षा

आज पटल पर आयी हुई रचनाओं की समीक्षा का लघु प्रयास                वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् बढ़िया प्रस्तुति बधाईयाँ आदरणीया । मुक्त सृजन की विधि अपनाई।                           सुन्दरता से कलम चलाई । । वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् बढ़िया प्रस्तुति बधाईयाँ बहन जी मोहन के गुण गाती जातीं ।                        जीवन धन्य बनाती जातीं ।। वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् अद्भुत सृजन किया है बधाईयाँ आदरणीय भगत सहिष्णु गुरुवर          नित्य नमन गुरुवर करते हैं ।                                 सबके मन में घर करते हैं ।।                               शीतल करती इनकी वानी ।                         हनुमत की महिमा पहचानी।।           वेद पुराणन की ले गाथा।                   शिवानन्द जी अपने साथा।।                             सीख दे रहे हैं संस्कृति की ।                                      चुनीं सूक्तियाँ भी संस्कृत की।। निशदिन रखते कोमल वाणी ।                               शीतलता है जग कल्याणी।।              राखी की मह

पर्यावरण दोहे (सरस /आस)

[9/1, 21:06] सरस जी विषय~पर्यावरण विधा~दोहा 1-पर्यावरण बचाइए, कहता पूरा देश | एक लगाओ पेंड़ जो, बदलेगा परिवेश|| 2-हरे भरे रखना सदा ,हरियाली के केश| महके तन मन गंध से,पर्यावरण विशेष|| 3-पर्यावरण पुकारता, ले लो प्रेम अपार| मेरे अन्तस् पैठ के, लेना मुझे निहार|| 4-सबका खुशियों से सजे,सुन्दर जीवन धाम| पर्यावरण सुधारना, सबसे उत्तम काम|| 5-दोष युक्त पर्यावरण, किसे सुहाता मीत| दोषों के परिहार से, उपजे मन में प्रीत|| 6-पर्वत नदियाँ बाग वन, पर्यावरण समूल| उन्नति के हैं देवता, रखें सदा अनुकूल|| 7-तुलसी बरगद चाँदनी ,पीपल पाकड़ नीम| हर्र बहेड़ा आँवला,पर्यावरण हकीम|| 8-स्वच्छ रहे पर्यावरण, मिलकर करें प्रयास| सरकारी है योजना, शौचालय घर पास|| 9-घेर खड़ा पर्यावरण ,फैला चारों ओर | सर्दी बरसा धूप का, सुन्दर सा चितचोर|| 10-बिना लोभ बिन मोल के, रखे समर्पण भाव| पर्यावरण उदार है, जीवन जीव पड़ाव|| 11-कहत सरस पर्यावरण, जीवन का विस्तार| हरियाली से सुख मिले, हरियाली आधार|| 12प्रणय साक्ष्य है जीव का, फूलों का वह हार| प्रेमबन्ध पर्यावरण, दुल्हन-सा श्रृंगार || 13-झूमे जीवन पेंड़ तो, मिले

पुष्प विषय पर जय जय रचनाकारों के सर्जन(29/08/2018)

न   हरिअ हि   हरि  आपहुँ  रहे, हरि  के  अटल प्रमान || 🌻 🌻🌻 ू🌻🌻🌻🌻🌻🌻 जय आज री लीक ~ आँधा   बनगुळा नपम    बापड़ा, केवल  कीचगड़  खाय | आँखें या जया    नेता  बण्या, माल   उड़ाता   जाय ; लेख करमाँ का हार्'या, बचावण पैल्याँ मार'या || 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 करो न बिपरित काम आन लो, बालाजी | सत की  बाक़ी  शान  मान  लो, बालाजी | पाप भले ही  बढ़ता  छू  ले  शिखर यहाँ, पुण्य प्रखर  अवदान  जान लो, बालाजी || 🌷🌷🌷🌹🌹🌹🌹🌷🌷🌷 ©भगत ◆तंत्री छंद◆ विधान~ प्रति चरण 32 मात्राएँ,8,8,6,10मात्राओं पर यति चरणान्त 22 , चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत। मातु शारदे,हमें सार दे,           जीवन की, हो माँ अभिलाषा| द्वार तुम्हारा,सबसे प्यारा,               आया हूँ, मैं लेकर आशा|| पथ को भूला, मद में फूला,             आजा माँ,बनकर हितकारी| चक्षु खोल दो, भाव घोल दो,             दिव्य सदा, है माँ बलिहारी|| वाह्हह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् ~जितेन्द्र चौहान " दिव्य कल क़रम मबम " ा [8/29, 07:25] भुवन बिष्ट जी: सुप्रभात वंदन ==================== तंत्री छन्द विधान- 8,8,6,10 पर