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Showing posts from August, 2018

असबंधा छन्द 'साहिल'

🌴  असंबधा छंद  🌴 विधान~ [ मगण तगण नगण सगण+गुरु गुरु] (222  221  111  112   22) 14 वर्ण,4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत]               माया माया  में  काहे  भटकत  मनु   हैं सारे| काया से  सेवा जनसुख  कर  ले प्यारे|| आना है जाना पुनि -पुनि जग में भारी| लेखा  कर्मों  का  रघुवर  भज संसारी|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'       🌴  असंबधा छंद 🌴 विधान~ [ मगण तगण नगण सगण+गुरु गुरु] (222  221  111  112   22) 14 वर्ण,4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत] कैसी ये  माया  सब जगत नचाती है। देती है क्या साथ विलग रह जाती है।। भूला  काहे  झंझट तज जग के सारे। मानो मेरी  तो  गुण  रघुपति के गा रे।।                           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

नारी जो चाहे कर सकती (संकलन)

🔴नारी जो चाहे, कर सकती ............................... एक गांव में एक जमींदार था। उसके कई नौकरों में जग्गू भी था। गांव से लगी बस्ती में, बाकी मजदूरों के साथ जग्गू भी अपने पांच लड़कों के साथ रहता था। जग्गू की पत्नी बहुत पहले गुजर गई थी। एक झोंपड़े में वह बच्चों को पाल रहा था। बच्चे बड़े होते गये और जमींदार के घर नौकरी में लगते गये। सब मजदूरों को शाम को मजूरी मिलती। जग्गू और उसके लड़के चना और गुड़ लेते थे। चना भून कर गुड़ के साथ खा लेते थे। बस्ती वालों ने जग्गू को बड़े लड़के की शादी कर देने की सलाह दी। उसकी शादी हो गई और कुछ दिन बाद गौना भी आ गया। उस दिन जग्गू की झोंपड़ी के सामने बड़ी बमचक मची। बहुत लोग इकठ्ठा हुये नई बहू देखने को। फिर धीरे धीरे भीड़ छंटी। आदमी काम पर चले गये। औरतें अपने अपने घर। जाते जाते एक बुढ़िया बहू से कहती गई – पास ही घर है। किसी चीज की जरूरत हो तो संकोच मत करना, आ जाना लेने। सबके जाने के बाद बहू ने घूंघट उठा कर अपनी ससुराल को देखा तो उसका कलेजा मुंह को आ गया। जर्जर सी झोंपड़ी, खूंटी पर टंगी कुछ पोटलियां और झोंपड़ी के बाहर बने छ चूल्हे (जग्गू और उसके सभी बच्चे

कनक मंजरी छन्द (डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल')

       कनक मंजरी छंद  शिल्प~ [4लघु+6भगण(211)+1गुरु]=23 वर्ण चार चरण समतुकांत]                      या {1111+211+211+211                       211+211+211+2} अनहक ही मनमोहन छेड़त                     नीति भरे कछु ढंग नहीं। चल हट मैं इकली सुन केशव                   हैं सखियाँ सब संग नहीं।। नटखट रे मधुसूदन माधव                    मोहि करो अब तंग नहीं। छलबल मैं नहि जान सकूँ कछु                   भावत श्यामल रंग नहीं।।                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"           कनक मंजरी छंद  शिल्प~ [4लघु+6भगण(211)+1गुरु]=23 वर्ण चार चरण समतुकांत]                      या {1111+211+211+211                       211+211+211+2} हलचल जागत नेह बढ़ावत                     मोहक नैन पुकारत हैं| मधुरिम चाहत प्रेम सुधारस                    सोहक रैन बुलावत हैं|| सुरमय साज बजावत बाँसुरि                     लागत सुन्दर सावन हो| सुखमय सूरत नंदन के सुत                     लाग रहे मनभावन हो||                   © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

चामर छन्द (रामदास) 'साहिल'

🌺  चामर छंद 🌺 शिल्प~ [रगण जगण रगण जगण रगण]              212  121  212  121 212           (गुरुलघु ×7) + गुरु, 15 वर्ण प्रति          चरण, 4 चरण, 2-2 चरण समतुकान्त काम क्रोध लोभ छोड़ कामना जगाइए|| ज्ञानवान  हो  महान  भावना  जगाइए|| छंद  बंद  तेज  ओज  नेक  ही बनाइए| शक्ति भक्ति नीति गीत प्रेम का सुनाइए||  साहसी बनूँ विशेष जीव मान ध्यान हो| राम नाम सत्य गान मीत प्रीत भान हो|| धर्म  कर्म  हो पुनीत धीर  वीर जानिए| रामदास  रूद्र  रूप  देव तुल्य मानिए||   © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'           🌺 चामर छंद  🌺 शिल्प~ [रगण जगण रगण जगण रगण]             212  121  212  121 212            {(गुरुलघु ×7)+गुरु, 15 वर्ण प्रति            चरण, 4 चरण, 2-2 चरण समतुकांत} राम  राज  में  समाज  यूं  प्रसन्न  हो  गया। आज ये सभी कहें कि जन्म धन्य हो गया।। नैन  धन्य  होय  रूप  राम  का  निहार लो। सीय  संग  राम "सोम" आरती  उतार  लो।।                               ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

चौपाई छन्द

चौपाई गुरु गुरु की महिमा निशदिन गाऊँ| सुख - साधन  प्रतिपल पाऊँ|| शब्द सिखाते  छंद सिखाते| सरल गुनी यजु हम कहलाते|| गुरु की  कृपा  रहै सब होई| कर्म - धर्म भव बंधन जोई|| कौशल  प्रतिभा चित्त सँवारे| परम ज्ञान जग शक्ति निहारे|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

मुक्तक (सुहानी/ लता) 'साहिल'

🎊  सुहानी  🎊    _(1222×4 मुक्तक)_ चली आओ सुहानी शाम तुम बिन है अधूरी सी|  मुहब्बत की  रवानी में  खिलें  बरसात  पूरी सी| मचल जाए  हृदय मेरा  सुनो इस प्रेम सिंचन से| कि कट  जाए  हमारे  बीच की वीरान दूरी  सी||   © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'     🎊  बेल/लता  🎊     (1222×4 मुक्तक) गले जब तुम लगाती हो उमंगे जाग जाती है| इशारे देखकर चाहत शराफ़त भाग जाती है| लता जैसे लिपटकर पेड़ को साथी  बनाती है| मुहब्बत़ की रवानी बेल सी चढ़ती हि जाती है|   © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

बाढ़ (डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल')

📯📯📯📯📯📯📯📯📯📯📯                         बाढ़ ईश्वर प्रदत्त सृष्टि में प्रकृति का सौन्दर्य उपहारों से प्राणिजगत का स्वत: ही उद्धार होता रहता है| प्राकृतिक संसाधनों से मानव एवं जीव जन्तु लाभान्वित होते हैं| अविरल प्रवाहित वायु से प्राणिजन को प्राणवायु  आक्सीजन के रूप में मिलती रहती है, एवं पेड़ पौधें से मधुर पवन एवं पावन जीवन की रसधारा बहती रहती है| कुओं, नदियों, तालाबों, पोखरों एवं अन्य जल स्त्रोतों से जल की साम्यावस्था बनी रहती है| प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग आवश्यकतानुसार मानव जाति को प्राप्त करना चाहिए| शहरीकरण, आधुनिकता, औद्योगिक प्रगति, विभिन्न प्रकार के प्रदूषण, वनों के कटाव, मृदा अपरदन एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग या दोहन ही प्रकृति को कुपित होने एवं प्राकृतिक असंतुलन का कारण बनता है| असीमित अत्यधिक प्राकृतिक दोहन एवं जीव -जन्तुओं विशेषकर गाय (गौ) एवं दुधारू पशुओं का वध या काटा जाना भी प्राकृतिक आपदाओं के बुलावा है |  मानव एवं अन्य जीवों द्वारा जल संसाधनों का दुरुपयोग एक प्रकार का प्राकृतिक व्यवस्था में व्यवधान है|                   नदियों के सही कटाव , क

वेगवती छन्द 'साहिल'/सोम गुरुदेव

📯📯📯📯📯📯📯📯📯📯📯 🎊  वेगवती छंद(अर्ध सम वर्णिक). 🎊 विधान~ 4 चरण,2-2 चरण समतुकांत। विषम पाद-  सगण सगण सगण गुरु(10वर्ण)                   112   112  112  2 सम पाद-भगण भगण भगण गुरु गुरु(11वर्ण)               211  211  211   2  2 सुखदायक  गीत   सुनाऊँ| चाहत नेह सदा दिखलाऊँ|| जग  जीवन  रीत  बनाऊँ| भाव विचार दया उपजाऊँ|| फलदायक   कर्म    हमारे| पालनहार शिवा प्रभु प्यारे|| सुखसागर  सोम   सहारा| जीवन बंधन पार किनारा|| तन  पावन  होय  गुनकारी| सावन पूजन  है सुखकारी|| शिव हैं  भूतनाथ  भवहारी| सेवक  मोहक  हैं दरबारी|| © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

आ० डॉ० सर्वेशानन्द सर्वेश जी की त्वरित अद्वितीय समीक्षा

जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति पंजी० २२६ बीसलपुर पीलीभीत उ० प्र० का आनलाइन आभासी पटल _"जय जय हिन्दी"_  🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷          🌱 समीक्षा 🌱    दिनांकः१८-०८-२०१८~ 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 दो शब्द "भोर अभिनन्दनः" के साथ ही पटल के दरवाजे पर दस्तक हुई और पटल पर आज के दिन की औपचारिक शुरूआत हुयी । " भोर होत ही याद दिलावें आज है क्या क्या करना... "....बस इसी भाव और निष्ठा को हमेशा की भाँति मन में संजोये आ० सुशीला धस्माना 'मुस्कान' दीदी ने दैनिक कार्यक्रम को पटल पर रखा और सभी को आज के विषय आदि के बारे जानकारी प्रस्तुत की । इस माध्यम से मौन रूप ही सबको सृजन हेतु आमंत्रित किया। प्रातः कालीन बेला में आ० भावना प्रवीन सिंह जी ने सस्वर मधुर वाणी वन्दना करके सबकी मंगल कामना की और सभी के कल्याण हेतु माँ को पुकारा । कृष्ण के भक्ति में डूबे हुये दोहों का संकलन लेकर आ० इन्दू शर्मा शचि जी ने पलट पर उपस्थिति दी और पूरे परे पटल को कान्हा की भक्ति में सराबोर कर दिया । मित्र सुदामा का अधीर होकर कृष्ण दर्शन की व्याकुलता को सन्दर्भित करती अत्यंत सुन्दर रचना पटल पर सजीव

अमर शहीद

   अमर शहीद         गीत अमर शहीदों की है कहानी !!०००० सुन लो सब जन मेरी जुबानी|०००० भगत सिंह थे वीर सेनानी, राजगुरु सुख देव थे दानी, आजादी  के सुत  परवाने, भूल गए वो अपनी जवानी| सुन लो सब जन मेरी जुबानी!!००००० नेता जी की फौज थी भारी, गाँधी जी की सीख थी प्यारी, अंग्रेजों  से  हमके  बचाया, भारत माँ की महिमा न्यारी| सुन लो सब जन मेरी जुबानी!!००००० तिलक लगा के लाल जी आए, आजादी  का  बिगुल बजाए, भारत माँ को जनम समर्पित, नूतन युग का गीत  सुनाएँ| अमर शहीदों की है कहानी !!००००० सुन लो सब जन मेरी जुबानी!!००००० © डॉ० राहुल शुक्ल 'साहिल'

सावन में काँवरिएँ {बोल बम } (साहिल)

डॉ० लियाकत अली: विषय- सावन में कावड़ सावन माह में जब कावड़ लेकर शिव भक्त हर हर बम बम बोलते हुए निकलता है।तो भगवान शंकर माँ पार्वती सन्घ भक्तो को दर्शन देने के लिए स्वयम् भक्तो के बीच कावड़ लेकर भ्रमण करते है।बाबा भोले के इस अदभुत लीला के लिए धरती माता हरयाली की चादर बिछा कर स्वयम् सज धज कर बाबा भोले के बाल रूप से लेकर तरुण अवस्था का अलौकन करती है ।सावन माह में भाई बहन का प्यार प्रगाढ़ हो जाता।बहने भाई के कलाई पर रक्षा बांध कर अपने रक्षा केलिए सन्कल्प लेती है।उधर भगवान शंकर भी अपने ससुराल माँ पार्वती के संघ् सारंग ऋषि के पास काशी के सारनाथ में जाते है।जहां सभी कांवड़ में गंगा के जल कोलेकर जलाभिषेक करने गेरुआ रंग के परिधान में निकलकर शिवधामपहुंचते है।सावन मास में भगवान शंकर के गले में रहने वालेविषधर महाराज भी भक्तोंके दर्शन करने व दर्शन देने निकलते है।जहां ग्रामवासी शहरवासी दूध लावा चढ़ाते है।वही किसान की फसल भी हरियाली रूप में पूरी धरती पर फ़ैल जाती है ऐसा लगता है धरती माँ सावन माह में हरे परिधान पहन कर लहलहाती फसल के साथ किसानो का स्वागत करने आई है।सावन माहV में नव युवतियां भी पेड़ो पर झूले